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त्रिपुरा चुनाव नतीजे: वाम के पुरानी सफलताओं पर भारी पड़े हाल के मुद्दे

त्रिपुरा की 20 साल कमान संभालने वाले माणिक सरकार की पुरानी बड़ी सफलताओं पर हाल के मुद्दे भारी पड़े। उग्रवाद की आग में झुलस रहे राज्य में शांति बहाल करना उनकी बड़ी सफलता थी, पर इसके साथ लोगों की...

त्रिपुरा चुनाव नतीजे: वाम के पुरानी सफलताओं पर भारी पड़े हाल के मुद्दे
नई दिल्ली, प्रशांत झाSun, 04 Mar 2018 06:50 PM
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त्रिपुरा की 20 साल कमान संभालने वाले माणिक सरकार की पुरानी बड़ी सफलताओं पर हाल के मुद्दे भारी पड़े। उग्रवाद की आग में झुलस रहे राज्य में शांति बहाल करना उनकी बड़ी सफलता थी, पर इसके साथ लोगों की आकंक्षाएं भी बढ़ रही थीं, जिसे पूरा करने में सरकार सफल नहीं रही। सरकारी कर्मचारी नाराज थे, क्योंकि उन्हें अभी तक चौथा वेतन आयोग का वेतनमान मिल रहा है। जबकि भाजपा ने उन्हें सातवां वेतनमान देने का वादा किया है। नए छात्रों में रोजी-रोजगार को लेकर निराशा थी। भाजपा लोगों को ये समझाने में सफल रही है कि हम राज्य में विकास लेकर आएंगे। भले ही माणिक दादा की छवि बेदाग रही, पर भाजपा लोगों को यह समझाने में सफल रही कि उनकी सरकार के मंत्रियों ने भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया है और जनजातीय लोगों की उपेक्षा हुई है। 

पूर्वोत्तर चुनाव नतीजे: BJP को हल्का समझने से वाम को जोर का झटका

राजधानी अगरतला और दूसरे शहरों के लोग कहते हैं कि सरकार अच्छे आदमी हैं, पर अब बदलाव का वक्त आ गया है। बीस साल बाद त्रिपुरा ने ऐसे नेता को सत्ता से बाहर कर दिया है जिसने राज्य के इतिहास से बुरे दौर को खत्म किया था। पर सरकार के लिए ये एक क्रूर विदाई है क्योंकि राज्य में उनकी विरोधी विचारधारा की सरकार आ रही है। माणिक सरकार को देश के वामदल के इतिहास में विलक्षण व्यक्तित्व के तौर पर याद किया जाएगा। उन्होंने आम आदमी के लिए कानून व्यवस्था के महत्व को समझा। उन्होंने न सिर्फ हर वर्ग के महत्व बल्कि उनके पहचान के महत्व को भी समझा। 

पूर्वोत्तर चुनाव नतीजे:कांग्रेस के सामने अब सिर्फ करो या मरो का विकल्प

1998 में जब माणिक सरकार ने सत्ता संभाली तो त्रिपुरा और बंगाली और आदिवासी जनता के बीच संघर्ष के हालात थे। उग्रवादी गुट जो ज्यादातार बांग्लादेश से ऑपरेशन को अंजाम दे रहे थे वे लगातार राज्य में हिंसक घटनाओं को अंजाम दे रहे थे। सरकार ने काफी तत्परता से उग्रवाद पर काबू पाने में सफलता पाई। उनकी बंगाली पहचान ने उन्हें बंगालियों में मान्यता दिलाई तो उन्होंने आदिवासी आवाम को पूरे भरोसे में लिया कि उनका पूरा ख्याल रखा जाएगा। इसलिए 60 सीटों की विधानसभा में उनकी पार्टी सभी 20 जनजातीय सीटों पर जीत दर्ज करती रही। उन्होंने राज्य के सामाजिक विकास पर पूरा ध्यान दिया।पर पिछले कुछ सालों में जनता में असंतोष भी बढ़ रहा था। साल 2013 के चुनाव में विरोधी दल कांग्रेस ने 36 फीसदी मत प्राप्त किए थे। पर 2018 आते-आते में भाजपा ने ज्यादा ऊर्जावान विपक्षी दल की भूमिका निभाई।

तीन राज्यों के जनादेश: पूर्वोत्तर में भगवा का वर्चस्व

पूर्वोत्तर कभी कांग्रेस का गढ़ माना जाता था। सभी प्रदेशों में कांग्रेस की सरकार थी। पर पिछले चार साल में पार्टी चार राज्य गंवा चुकी है। असम में हार के बाद मणिपुर भी कांग्रेस के हाथ से चला गया। अरुणाचल प्रदेश में मुख्यमंत्री पेमा खांडु समेत 33 विधायक कांग्रेस छोड़कर पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल में शामिल हो गए। इसके बाद मणिपुर में सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद वह सरकार नहीं बना पाई। अब सिर्फ मिजोरम बचा है। वहां भी इस साल के अंत में चुनाव हैं।

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