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क्या चुनाव हारने पर मुख्यमंत्री बनने में है संवैधानिक अड़चन? कैसे और कब तक बन सकता है CM, जानें हर सवाल का जवाब

तृणमूल कांग्रेस ने बंगाल में चुनाव जीत लिया है, लेकिन इसकी नेता ममता बनर्जी नंदीग्राम विधानसभा सीट से चुनाव हार गई हैं। वह शीघ्र ही (आज) राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाली हैं। पर सवाल है कि...

क्या चुनाव हारने पर मुख्यमंत्री बनने में है संवैधानिक अड़चन? कैसे और कब तक बन सकता है CM, जानें हर सवाल का जवाब
श्याम सुमन,नई दिल्लीWed, 05 May 2021 06:51 AM
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तृणमूल कांग्रेस ने बंगाल में चुनाव जीत लिया है, लेकिन इसकी नेता ममता बनर्जी नंदीग्राम विधानसभा सीट से चुनाव हार गई हैं। वह शीघ्र ही (आज) राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाली हैं। पर सवाल है कि क्या चुनाव में हारा हुआ व्यक्ति मुख्यमंत्री के संवैधानिक पद की शपथ ले सकता है? क्या कोई संवैधानिक बाधा है? इसके जवाब में विशेषज्ञों का कहना है कि चुनाव हार जाने पर मुख्यमंत्री बनने में कोई संवैधानिक अड़चन नहीं है।

आपके मन में उठने वाले कुछ सवाल
-एक ऐसा व्यक्ति जो चुनाव नहीं लड़ा, क्या वह छह माह तक मंत्री या मुख्यमंत्री रह सकता है? 
-ऐसा व्यक्ति जो चुनाव मे हार गया, क्या वह व्यक्ति छह माह के लिए मुख्यमंत्री बन सकता है?
-क्या छह माह की अवधि बीतने के कुछ दिन बाद फिर से छह माह के लिए मुख्यमंत्री बन सकता है?

संविधान के अनुच्छेद 164 में जवाब
इन सवालों का जवाब संविधान के अनुच्छेद 164 में है। यह अनुच्छेद कहता है कि राज्यपाल मुख्यमंत्री की नियुक्ति करेंगे और मुख्यमंत्री की सिफारिश पर राज्यपाल अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करेंगे। ये राज्यपाल की सहमति तक मुख्यमंत्री और मंत्री पद पर बने रहेंगे। अनुच्छेद 164.4 के अनुसार, ऐसा मंत्री जो छह माह तक विधानसभा का सदस्य नहीं बना है, वह छह माह की अवधि बीतने के बाद पदच्युत हो जाएगा। 

1971 में आया था मसला
देश की सर्वेच्च अदालत के सामने यह मसला 1971 में आया था, जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद पर त्रिभुवन नारायण सिंह को मुख्यमंत्री बनाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। इसके बाद सीताराम केसरी को केंद्रीय मंत्री बनाने और एचडी देवगौड़ा को प्रधानमंत्री बनाने के मामले भी सुप्रीम कोर्ट आए थे। ये सभी अपने चयन के समय किसी सदन के सदस्य निर्वाचित नहीं हुए थे।

इलाहबाद हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी याचिका
यूपी के मामले में सिंह किसी सदन के सदस्य नहीं थे। याचिकाकर्ता का कहना था कि अनुच्छेद 164.1 के तहत जो व्यक्ति किसी विधायी सदन का सदस्य नहीं है, उसे मंत्री या मुख्यमंत्री नहीं बनाया जा सकता। उनकी यह याचिका इलाहबाद हाईकोर्ट ने खारिज कर दी थी और कहा था कि मुख्यमंत्री भी बिना चयन के अन्य मंत्रियों की तरह छह माह तक पद पर रह सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 164.1 में लिखे मंत्री शब्द में मुख्यमंत्री भी शामिल हैं।

संविधान सभा की बहस का हवाला दिया 
हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने संविधान सभा की बहस का हवाला दिया और कहा कि संविधान सभा में भी यह नहीं आया था कि जो व्यक्ति विधायक या सांसद नहीं है, उसे मंत्री या मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री नहीं बनाया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि हर मामले में अनुच्छेद 164.4 लागू होगा यानी छह माह बाद किसी सदन का सदस्य नहीं चुने जाने की स्थिति में वह व्यक्ति अपने पद से स्वत: ही हटा हुआ माना जाएगा। 

क्या गैर निर्वाचित व्यक्ति कुछ अवधि बीतने के बाद दो बार पद पर आ सकता है?
इस सवाल का जवाब सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब के एक मामले में दिया। कोर्ट ने कहा कि किसी सदन का सदस्य निर्वाचित हुए बगैर किसी व्यक्ति को बार-बार छह माह की अवधि बीतने के बाद मंत्री या अन्य पद नहीं दिए जा सकते। यह संविधान के अनुच्छेद 146.4 की आत्मा के खिलाफ होगा और संविधान के साथ खिलवाड़ होगा। कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 164.4 सामान्य नियमों के एक अपवाद की तरह से है, जो एक छोटी अवधि के लिए बनाया गया है। इस प्रावधान का स्पष्ट निर्देश है कि यदि व्यक्ति छह माह की ग्रेस अवधि के अंदर निर्वाचित होने में असफल रहता है तो वह पद पर नहीं रह सकता। छह माह की अवधि बीतने के बाद कुछ दिनों के गैप के बाद फिर से पद पर नियुक्त करना इस प्रावधान को पराजित करना होगा। यह कहकर कोर्ट ने पंजाब में नियुक्त किए गए मंत्री की नियुक्ति को अवैध करार दिया। 

सिर्फ नैतिकता का सवाल  
कोर्ट ने इन मामलों मे यह भी स्पष्ट किया था कि चुनाव में परास्त हुआ व्यक्ति या जिसने चुनाव नहीं लड़ा, उसमें कोई फर्क नहीं है। वरिष्ठ अधिवक्ता और संविधानविद डॉ. एचपी शर्मा कहते हैं यह सवाल सिर्फ नैतिकता का है कि चुनाव में हारा हुआ व्यक्ति मुख्यमंत्री बन सकता है या नहीं। लेकिन, नैतिकता पर अदालतें कोई फैसला नहीं देतीं।

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