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दुनिया को सबसे ज्यादा गर्म कर रहे अमीर, गरीबों को ऐसा करने में लगेंगे 1500 साल

Carbon Emission: ऑक्सफैम की रिपोर्ट के अनुसार अमीरों के इस अत्यधिक कार्बन उत्सर्जन के कारण 13 लाख अतिरिक्त लोगों की मौतें गर्मी से होंगी। यह डबलिन तथा आयरलैंड की आबादी के लगभग बराबर है।

दुनिया को सबसे ज्यादा गर्म कर रहे अमीर, गरीबों को ऐसा करने में लगेंगे 1500 साल
Nisarg Dixitएजेंसी,नई दिल्लीTue, 21 Nov 2023 07:27 AM
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दुनियाभर में 66 फीसदी गरीबों की तुलना में 1 फीसदी अमीर लोग धरती को अधिक गर्म कर रहे हैं। दुनियाभर में 7.7 करोड़ धनकुबेरों ने 2019 में दुनियाभर में कार्बन उत्सर्जन का 16 फीसदी अकेले ही उत्सर्जित किया। ऑक्सफैम की ओर से सोमवार को जारी रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि अमीरों के अत्यधिक कार्बन उत्सर्जन के कमजोर समुदायों और जलवायु आपातकाल से निपटने के वैश्विक प्रयासों पर गंभीर परिणाम होंगे। यह रिपोर्ट दुबई में आयोजित संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन से पहले आई है।

गर्मी से 13 लाख अतिरिक्त लोगों की मौतें होंगी
रिपोर्ट के अनुसार अमीरों के इस अत्यधिक कार्बन उत्सर्जन के कारण 13 लाख अतिरिक्त लोगों की मौतें गर्मी से होंगी। यह डबलिन तथा आयरलैंड की आबादी के लगभग बराबर है। इनमें से अधिकांश मौतें 2020 और 2030 के बीच होंगी। ऑक्सफैम की रिपोर्ट में कहा गया है कि अमीरों पर अत्यधिक कर लगाने से जलवायु परिवर्तन और असमानता दोनों पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी।

अमीरों ने किया 5.9 अरब टन कार्बन उत्सर्जन
ऑक्सफैम की रिपोर्ट में कहा गया है कि सबसे अमीर 1% लोग जो वातानुकूलित जीवन जीते हैं, उन्होंने 2019 में 5.9 अरब टन कार्बन उत्सर्जन किया। अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी द्वारा तय मॉर्टेलिटी कॉस्ट फॉर्मूला के अनुसार प्रति मिलियन टन कार्बन के लिए दुनिया भर में 226 अतिरिक्त मौतें होती हैं। 1990 से 2019 की अवधि में, 1% का उत्सर्जन पिछले साल की यूरोपीय संघ के मकई, अमेरिकी गेहूं, बांग्लादेशी चावल और चीनी सोयाबीन की फसल को नष्ट करने के बराबर था।

गरीबों पर पड़ रही मार
अमीरों के कार्बन उत्सर्जन की मार गरीबों पर पड़ रही है। रिपोर्ट में पाया गया है कि गरीबी में रहने वाले 99% लोगों में से किसी को भी उतना कार्बन पैदा करने में लगभग 1,500 साल लगेंगे, जितना अमीर अरबपति एक साल में करते हैं। इसका असर गरीबी में रहने वाले लोगों, हाशिये पर रहने वाले समुदायों, प्रवासियों और महिलाओं पर पड़ता है। क्योंकि ये बाहर या घरों में काम करते हैं तथा चरम मौसम के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। बाढ़, सूखे, हीटवेव और जंगल की आग से अधिक खतरे में पड़ते हैं। संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि चरम मौसम से संबंधित 91% मौतें विकासशील देशों में होती हैं।

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