मैरिटल रेप में पति दोषी या नहीं, सुप्रीम कोर्ट में 13 अगस्त को सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में मैरिटल रेप यानी वैवाहिक बलात्कार से जुड़ी याचिकाओं पर 13 अगस्त को सुनवाई होगी। इस मामले में अदालत यह निर्णय लेगी कि इस तरह के अपराध में पति को दोषी ठहराया जा सकता है नहीं।
मैरिटल रेप यानी वैवाहिक बलात्कार से जुड़े मामलों पर सुप्रीम कोर्ट में जल्द सुनवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट में वैवाहिक बलात्कार में पति को छूट देने के संबंध में याचिकाओं पर 13 अगस्त को सुनवाई होगी। गौरतलब है कि जनवरी 2023 से इस मामले में कोई ठोस सुनवाई नहीं हुई है। इस मामले में पीठ का नेतृत्व करने वाले भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि मामले में अगले सप्ताह मंगलवार से बहस शुरू होने की संभावनाएं हैं। वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह और करुणा नंदी द्वारा मामले का उल्लेख किए जाने के बाद सीजेआई ने यह बातें कही हैं।
सुप्रीम कोर्ट में भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की धारा 375 में दिए गए अपवाद से संबंधित कई याचिकाएं लंबित हैं। इसके तहत किसी व्यक्ति को अपनी पत्नी के साथ जबरन यौन संबंध बनाने को बलात्कार का दोषी नहीं माना गया है। कई याचिकाओं में विवाहित महिलाओं के साथ भेदभाव के आधार पर आईपीसी के इस सेक्शन की वैधता को चुनौती दी गई है। मई 2022 में दिल्ली हाईकोर्ट के स्प्लिट डिसीजन के बाद इसकी अंतिम सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में होनी है। दिल्ली हाईकोर्ट के जजों ने अपने 2022 के फैसले में एक-दूसरे से असहमति जताई थी। जहां एक जज ने पति को पत्नी के साथ बिना सहमति के यौन संबंध बनाने को आपराधिक श्रेणी से बाहर रखे जाने को नैतिक रूप से गलत बताया, वहीं दूसरे जज ने कहा कि यह किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं करता है।
2022 में SC ने एक मामले में पति पर मुकदमा चलाए जाने पर लगाई थी रोक
कर्नाटक हाईकोर्ट ने मार्च 2022 में एक व्यक्ति पर पत्नी के साथ बलात्कार के आरोप में का मुकदमा चलाने की अनुमति दी थी। इसके खिलाफ उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है जिसकी याचिका पर भी सुनवाई होगी। जुलाई 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई पर रोक लगा दी थी लेकिन तत्कालीन बीजेपी की कर्नाटक सरकार ने पिछले साल नवंबर में पति के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने का समर्थन करते हुए अपना हलफनामा दायर किया था। तत्कालीन बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाली सरकार ने तर्क दिया था कि आईपीसी एक व्यक्ति पर अपनी पत्नी के साथ बलात्कार करने के लिए मुकदमा चलाने की अनुमति देता है और इसलिए धारा 375 के तहत पति का मुकदमा वैध है। कर्नाटक की नई सरकार का मामले पर रुख अभी स्पष्ट नहीं है।
विषय को सिर्फ कानूनी नजरिए से नहीं देखा जा सकता- सॉलिसिटर जनरल
16 जनवरी 2023 को एक आदेश के जरिए कोर्ट ने एडवोकेट पूजा धर और जयकृति एस जडेजा को मामले में नोडल वकील नियुक्त किया ताकि मामलों को इकठ्ठा किया जा सके और मामले की सुनवाई की जा सके। उस दिन केंद्र सरकार ने कोर्ट से कहा था कि वैवाहिक बलात्कार को आपराधिक अपराध बनाने के सामाजिक परिणाम होंगे इसीलिए उसने राज्यों और दूसरे स्टेकहोल्डर के साथ बातचीत शुरू कर दी है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पिछले साल कहा था कि इस विषय को सिर्फ कानूनी नजरिए से नहीं देखा जा सकता है और इसके सामाजिक प्रभाव पर भी विचार किया जाना चाहिए। हालांकि केंद्र ने अभी तक अपना अंतिम रुख बताने के लिए हलफनामा दाखिल नहीं किया है।
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत जबरन सेक्स को माना गया है बलात्कार
गर्भपात से जुड़े एक मामले में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर में कहा था कि पति द्वारा जबरन सेक्स के कारण विवाहित महिला के गर्भधारण को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत बलात्कार माना जा सकता है। यह भारतीय कानून के तहत वैवाहिक बलात्कार की पहली कानूनी मान्यता थी। 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 375 के मामले में हस्तक्षेप किया था। हालांकि कोर्ट ने सिर्फ यह कहा था कि पति को बलात्कार के आरोप के तहत छूट उन्हीं मामलों में दी जा सकती है जब पत्नी की उम्र 15 साल से ज्यादा हो।
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