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अयोध्या सुनवाई का 26वां दिन: केंद्रीय गुंबद के सामने चबूतरा बनना जरूरी

उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को अयोध्या मामले की सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष के वकील से पूछा कि विवादित ढांचे पर 1855 में रेलिंग लगने के साथ केंद्रीय गुंबद के सामने चबूतरे का बनना बेहद महत्वपूर्ण...

अयोध्या सुनवाई का 26वां दिन: केंद्रीय गुंबद के सामने चबूतरा बनना जरूरी
नई दिल्ली | श्याम सुमनThu, 19 Sep 2019 05:34 AM
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उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को अयोध्या मामले की सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष के वकील से पूछा कि विवादित ढांचे पर 1855 में रेलिंग लगने के साथ केंद्रीय गुंबद के सामने चबूतरे का बनना बेहद महत्वपूर्ण है। क्योंकि चबूतरे पर सामने की ओर पूजा कर श्रद्धालु यह मानते थे कि वे केंद्रीय गुंबद में उस स्थान की ही पूजा कर रहे हैं जहां रामलला का जन्म हुआ। हम जानना चाहते हैं कि ये चबूतरा रेलिंग के साथ क्यों और कैसे बना। रेलिंग लगने के बाद भी लोगों का विश्वास नहीं हिला और वे उस ओर मुंह करके पूजा करते रहे। 

मूर्तियां चबूतरे पर ही थीं 

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने यह सवाल तब पूछा जब अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि मूर्तियां चबूतरे पर ही थीं और उन्हें 1949 में गुंबद के अंदर रखा गया। धवन ने इसके जवाब में पीठ से कहा कि यह जजों का अंदाजा हो सकता है। ये आपकी कल्पना हो सकती है। इसमें सच्चाई नहीं है। पूरा ढांचा चाहरदीवारी में था। 

1855 में गंभीर सामुदायिक संघर्ष हुए 

वर्ष 1855 में बहुत गंभीर सामुदायिक संघर्ष हुए थे। हिंदू, सिख और मुस्लिम एक दूसरे के पूजा स्थलों के लिए लड़ रहे थे। ये भीषण दंगे थे जो 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम की पृष्ठभूमि में हो रहे थे। ब्रिटिश सरकार ने नियंत्रण करने के लिए गुंबदों को लोहे की रेलिंग से बंद कर दिया था ताकि झगड़े रुकें। चबूतरा और वेदी को किसी ने नहीं नकारा है। फिरंग यात्री ट्रिफेंथेलर (सौ वर्ष पूर्व 1755 में) ने अपने वृतांत में बताया कि ढांचे के सामने वेदी थी। इसे ही अब चबूतरा कहा जाता है। 

सबूत है तो लाएं 

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि जिसे आप हमारी कल्पना कह रहे हैं यदि इसकी तार्किक संभावनाएं हुई तो इसे स्वीकार किया जा सकता है। इसके बाद जस्टिस अशोक भूषण ने भी कहा कि लोगों ने हाईकोर्ट में इस बारे में मौखिक सबूत दिए हैं कि बीच वाले गुंबद को जन्मभूमि माना जाता है। इस पर जस्टिस एसए बोबडे राजीव धवन से कहा कि वह रेलिंग को लेकर कोई सबूत है तो उसे लाएं। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने जस्टिस बोबडे का समर्थन करते हुए कहा कि कल रेलिंग से संबंधित सूबत लेकर आएं। यह बेहद रोचक है। 

सबूत दे देंगे

धवन ने कहा वह इसके सबूत कल दे देंगे। उन्होंने कहा कि सभी जिन्होंने बयान दिए हैं वे गवाह कभी विवादित स्थल तक नहीं गए। एक गवाह ने कहा कि जब 1949 में मूर्ति रखी गई तब उनका उचित संस्कार किया गया था। लेकिन इसमें नौ दिन लगते हैं। 

 मार्बल स्लैब मिला था 

अंग्रेज कमिश्नर के 24.12.1885 के फैसले में लिखा है कि स्थल पर अल्लाह लिखा हुआ था। इस स्थान पर वहां एक मार्बल स्लैब मिला था उस पर विष्णुहरि लिखावट थी। लेकिन इस लिखावट पर विवाद है। धवन ने इस विवाद को आरएसएस के कार्यकर्ता से जोड़ा और कहा कि यह लिखावट सही नहीं है। मामले की सुनवाई कल जारी रहेगी। 

रिपोर्ट को सबूत नहीं माना 

शीर्ष न्यायालय ने मंगलवार को राजीव धवन की इस बात को मानने से इनकार कर दिया था कि एसके सहाय, सूर्यभान, इरफान हबीब और डीएन झा समेत चार इतिहासकारों ने अपनी रिपोर्ट में इस बात कोई सबूत नहीं पाया था कि विवादित स्थल पर राम का जन्म हुआ। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी इस रिपोर्ट को सबूत के तौर पर स्वीकार नहीं किया था। 

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