ट्रेंडिंग न्यूज़

Hindi News देशचार्जशीट 'पब्लिक डॉक्यूमेंट' है या नहीं, क्या RTI के तहत आता है यह? जानें सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

चार्जशीट 'पब्लिक डॉक्यूमेंट' है या नहीं, क्या RTI के तहत आता है यह? जानें सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा

जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस सी टी रविकुमार की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की। बेंच ने कहा कि आरोप पत्र को वेबसाइट पर साझा करना दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के प्रावधानों के विपरीत होगा।

चार्जशीट 'पब्लिक डॉक्यूमेंट' है या नहीं, क्या RTI के तहत आता है यह? जानें सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
Niteesh Kumarपीटीआई,नई दिल्लीFri, 20 Jan 2023 08:20 PM

इस खबर को सुनें

0:00
/
ऐप पर पढ़ें

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपने एक अहम फैसले में कहा कि शार्टशीट सूचना के अधिकार (RTI) के तहत नहीं आता है। अदालत ने कहा कि आपराधिक मामलों में जांच एजेंसी की ओर से दाखिल आरोप पत्र को आमजन की पहुंच के लिए सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। SC ने आरोप पत्र को सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध कराने की अपील वाली जनहित याचिका को खारिज कर दिया। 

जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस सी टी रविकुमार की पीठ ने कहा कि आरोप पत्र को वेबसाइट पर साझा करना दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के प्रावधानों के विपरीत होगा। पीठ ने कहा कि आरोप पत्र एक 'सार्वजनिक दस्तावेज' नहीं है और इसे ऑनलाइन प्रकाशित नहीं किया जा सकता है। वकील प्रशांत भूषण ने अदालत से कहा, 'आमजन को यह जानने का अधिकार है कि कौन अभियुक्त है और किसने संबंधित अपराध किया है।'

अदालत ने अपने फैसले में क्या कहा
एससी पत्रकार सौरव दास की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था। अदालत ने कहा कि जरूरी डाक्यूमेंट्स के साथ चार्जशीट की कॉपी को साक्ष्य अधिनियम की धारा 74 के अनुसार सार्वजनिक दस्तावेजों की परिभाषा के तहत नहीं लाया जा सकता है। एससी ने कहा, 'साक्ष्य अधिनियम की धारा 75 के अनुसार इसी एक्ट धारा 74 में शामिल दस्तावेजों के अलावा अन्य सभी डाक्यूमेंट्स निजी हैं।'

प्रशांत भूषण का दावा था कि पुलिस विभाग या जांच एजेंसी की ओर से दायर आरोप पत्र, अधिनियम की धारा 76 के अनुशासन के अधीन होगा। हालांकि, कोर्ट ने इन दलीलों को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि सभी आरोप पत्रों को सार्वजनिक डोमेन में डालने का निर्देश CRPC की योजना के विपरीत है। पीठ ने कहा , 'ऐसा करने से अभियुक्तों के साथ-साथ पीड़ित और जांच एजेंसी के अधिकारों का भी उल्लंघन हो सकता है। वेबसाइट पर FIR डालने को चार्जशीट को सार्वजनिक करने के बराबर नहीं मान सकते हैं।'

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें