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सुप्रीम कोर्ट अपनी कार्यवाही की लाइव वीडियो स्ट्रीमिंग के लिए तैयार

सुप्रीम कोर्ट अपनी कार्यवाही की लाइव वीडियो स्ट्रीमिंग के लिए तैयार हो गया है। कोर्ट इस बारे में विस्तृत फैसला देगा जिसमें यह तय किया जाएगा कि यह प्रसारण कैसे हो, किस चैनल पर हो, कितने कैमरे...

सुप्रीम कोर्ट अपनी कार्यवाही की लाइव वीडियो स्ट्रीमिंग के लिए तैयार
नई दिल्ली। श्याम सुमनFri, 24 Aug 2018 04:26 PM
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सुप्रीम कोर्ट अपनी कार्यवाही की लाइव वीडियो स्ट्रीमिंग के लिए तैयार हो गया है। कोर्ट इस बारे में विस्तृत फैसला देगा जिसमें यह तय किया जाएगा कि यह प्रसारण कैसे हो, किस चैनल पर हो, कितने कैमरे लगाए जाएं और किन केसों का प्रसारण हो और किनका नहीं।

मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा, एएम खानविल्कर और डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने शुक्रवार को अटार्नी जरनल केके वेणुगोपाल के लाइव प्रसारण को लेकर दिए गए सुझावों से सहमति व्यक्त की और फैसला सुरक्षित रख लिया। पीठ ने कहा कि लोगों को पता लगाना चाहिए कि कोर्ट कैसे कार्यवाही कर रहा है, जज कैसे टिप्पणियां कर रहे हैं, उनकी बाडी लैंग्वेज क्या है और वकील कैसे बहस कर रहे हैं। इसमें कोई दिक्कत नहीं है।

पीठ ने एक वकील के इन तर्कों को खारिज कर दिया कि अगर लाइव स्ट्रीमिंग की गई तो लोग कुछ ऐसी वीडियो क्लिपों को उठा लेंगे जिनमें जज की कोई तल्ख टिप्पणी होगी और उन्हें वायरल कर देंगे कि देखिए जज का क्या रुख है। जबकि वह एक टिप्पणी भर ही होगी जिसका कोई अर्थ नहीं होगा। ऐसे में कोर्ट के पास कोई विकल्प नहीं होगा। क्योंकि कोई भी चीज एक बार इंटरनेट पर चली गई तो उसे वापस नहीं लिया जा सकता।

इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यह रूढ़ीवादी सोच है। हम जो भी बोलते हैं वह कुछ देर बाद ही शब्दश: वेबसाइटों पर टीवी पर और अगले दिन विस्तृत रूप से अखबारों में हू-ब-हू छपता है। हम देखकर खुद हैरान हो जाते हैं। अब यदि लोग यह सब आंखों से देखें तो क्या दिक्कत है। आंखों से देखने और सुनने की एक अलग ही बात होती है। 

पीठ ने कहा हम कोर्ट को खुद खोल रहे हैं रास्ते चौड़े कर रहे हैं ताकि वकीलों को आने जाने में दिक्कतें न हों। खुली अदालत की कल्पना तभी साकार होगी जब इसकी कार्यवाही का वीडियो प्रसारण होगा। 

शीर्ष कोर्ट वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह और कानून की छात्रा स्वनिल त्रिपाठी की रिट याचिका पर सुनवाई कर रही है जिसमें उन्होंने राष्ट्रहित महत्वपूर्ण मामलों तथा संविधान पीठ की कार्यवाही की यू ट्यूब पर लाइव स्ट्रीमिंग करने का आग्रह किया है।

अब तक किए गए उपाए :

सुप्रीम कोर्ट ने कोर्ट में प्रेस को मोबाइल फोन की अनुमति दी है

जजों को नियुक्ति करने वाली कोलेजियम के प्रस्तावों का सार्वजिनक किया गया है

जजों ने अपनी संपत्ति का ब्योरा वेबसाइट पर दिया है

अटार्नी जनरल के सुझाव:

पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लाइव स्ट्रीमिंग कोर्ट नंबर-एक यानी देश के मुख्य न्यायाधीश की कोर्ट से शुरू की जाए। यह प्रसारण सिर्फ संविधानिक मामलों की कार्रवाही का ही किया जाए।

इस प्रोजेक्ट की सफलता के बाद यह देखा जाए कि इसे सभी अन्य कोर्टों तथा देशभर की अदालतों में लागू किया जाए।

कोर्ट में पर्याप्त आधारभूत ढांचे के साथ एक मीडिया रूम बनाया जाए जहां पत्रकार, वकील, आगन्तुक कार्यवही को देख पाएं,इससे भीड़ कम होगी तथा मूक बधिरों के लिए विशेष व्यस्था की जा सकती है।

लाइव स्ट्रीमिंग के बाद कोर्ट इनका रिकार्ड भी रखवा सकता है जो लोगों को तथा कानून के छात्रों अहम मसलों के बारे में ज्ञान बढ़ाने के लिए इस्तेामल किए जा सकेंगे। 

कोर्ट को जब यह लगे कि इस प्रसारण से निष्पक्ष ट्रायल या पक्षों के अधिकार प्राभावित हो रहे तो उसे इस प्रसारण को सीमित करने,कुछ समय के लिए रोकने निलंबित की शक्ति होनी चाहिए 

कोर्ट को यह भी तय करना चाहिए किन केसों को प्रसारण हो किसका नहीं।

उन्होंने कहा कि जैसा कि स्काट बनाम स्काट केस(1913) में कहा गया है कि कोर्ट को सुनिश्चित करना चाहिए कि न्याय हो। ऐसे में किन मामलों का प्रसारण न हो यह भी देखना चाहिए।

इन मामलों का प्रसारण न हो :

वैवाहिक विवाद, बच्चों से जुड़े मामले, राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले, यदि किसी केस में गवाह पेश हो रहा है तो उसका चेहरा न दिखाया जाए और उसे ब्लर कर दिया जाए।

यौन अपराधों की संवदेनशील सूचनाएं न दी जाएं। ऐसे मामले जिनके प्रसारण से न्याय का प्रसासन प्रभावित हो,भावनाओं को भड़काने तथा समुदायों में वैमनस्य पैदा करने वाले मामले आदि।

रोकथाम और दंड :

फुटेज का व्यावसायिक,विज्ञापन तथा कटाक्ष करने के लिए इस्तेमाल न करने दिया जाए तथा इनका प्रयोग शैक्षिक, न्यूज तथा करेंट अफेयर के लिए ही किया जाए।

सुप्रीम कोर्ट की पूर्व अनुमति के बिना लाइव स्ट्रीमिंग और वेबकास्ट को रिप्रोडयूस, ट्रांसमिट,अपलोड, पोस्ट, मोडीफाई,पब्लिश और रिपब्लिश न किया जाए।

फुटेज का अनधिकृत प्रयोग कापीराइट एक्ट, 1957 तथा आईटी एक्ट, 2000 के अधीन अपराध होगा साथ ही अवमानना के कानून भी इस पर लागू होंगे। इसके लिए निषेध तथा जुर्माने के प्रावधान बनाने होंगे।

प्रसारण तथा इसके लिए आवश्यक उपकरणों के बारे में नियम बनाए जाएं

इस मामले में केस प्रबंधन तकनीक इस्तेमाल की जाएं जिससे केस त्वरित रूप से निपटें तथा वकील समय सीमा का पूरा ध्यान रखें। सुनवाई से पहले वकील लिखित बहस कोर्ट में दें

इंग्लैंड में कोर्ट आफ अपील ने 2013 से 70सेकंड की देरी से कोर्ट की कार्यवाही यू ट्यूब पर दिखाने की अनुमति दी है। यदि जजों को लगता है कि कोई टिप्पणी जनता के लिए उचित नहीं है तो वह उसे म्यूट करवा देते हैं।

इंग्लैंड की तरह सुप्रीम कोर्ट भी सिर्फ दो कैमरों की इजाजत दे एक जजों की तरफ फोकस हो तथा दूसरा वकील की ओर। यह वकील के दस्तावेजों पर केंद्रित न हो।

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