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अयोध्या विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को दिया 3 महीने का समय, 5 दिसंबर को होगी अगली सुनवाई

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद मामले पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट की विशेष पीठ सुनवाई करेगी। इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ लंबित चुनौतियों के साथ यूपी शिया वक्फ बोर्ड की ओर से दायर...

Arunविशेष संवाददाता, नई दिल्लीFri, 11 Aug 2017 04:20 PM

अयोध्या विवाद: मामले की अगली सुनवाई 5 दिसंबर तक के लिए टली

अयोध्या विवाद: मामले की अगली सुनवाई 5 दिसंबर तक के लिए टली 1 / 2

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद ने आज सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को ऐतिहासिक दस्तावेजों के अनुवाद के लिए 3 महीने का समय दिया है।  इस मामले की अगली सुनवाई 5 दिसंबर को होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, पहले हम दो मुख्य पक्षों को चुनेंगे, सभी पक्ष अपने कागजात तैयार रखें। बता दें कि शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ लंबित चुनौतियों के साथ यूपी शिया वक्फ बोर्ड की ओर से दायर हलफनामे पर विशेष पीठ सुनवाई करनी थी। 

सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों से कहा कि वे जिन दस्तावेज को आधार बना रहे हैं , उनका 12 सप्ताह के भीतर अंग्रेजी में अनुवाद करायें। ये दस्तावेज आठ भाषाओं में हैं। सुप्रीम कोर्ट ने उप्र सरकार से कहा कि  उच्च न्यायालय में मालिकाना हक के वाद का निर्णय करने के लिये दर्ज साक्ष्यों का अनुवाद 10 सप्ताह के भीतर पूरा कराए।

रामलला विराजमान, हिन्दू महासभा और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड समेत तमाम पक्षकारों हाईकोर्ट के तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ के 30 सितंबर 2010 के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने दो-एक के बहुमत से फैसला सुनाते हुए राम जन्मभूमि को तीन बराबर हिस्सों में रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी बोर्ड मे बांटने का आदेश दिया था। सर्वोच्च अदालत ने 9 मई 2011 को हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल याचिकाएं विचारार्थ स्वीकार की थीं और हाईकोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी थी। साथ ही कहा था कि मामला लंबित रहने तक संबंधित पक्षकार विवादित भूमि पर यथास्थिति बनाए रखेंगे। इसके बाद भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने दर्शनार्थियों के लिए मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने की मांग की जिसका विरोध मुख्य याचिकाकर्ता मोहम्मद हाशिम ने की थी। लेकिन अदालत ने स्वामी की मांग को मुख्य मामले के साथ सुनवाई करने का निर्णय लिया। 

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में तीन न्यायाधीशों जस्टिस दीपक मिश्रा, अशोक भूषण और अब्दुल नज़ीर की विशेष पीठ का गठन मामले पर सुनवाई के लिए किया। शुक्रवार, 11 अगस्त को दोपहर दो बजे से इस मामले पर नियमित सुनवाई होगी या फिर अंतरिम राहत की मांग वाले आवेदनों पर विचार किया जाएगा। यह सुनवाई के दौरान ही विशेष पीठ स्पष्ट करेगी। दरअसल इस मामले की सुनवाई के लिए विशेष पीठ का गठन करते हुए अदालत ने यह स्पष्ट नहीं किया है और रजिस्ट्री ने संबंधित पक्षकारों को ऐसी कोई सूचना दी है जिससे यह साफ हो कि विशेष पीठ मामले के किस पहलू पर गौर करेगी। साथ ही अदालत से स्वामी ने भी आवेदन में जल्द सुनवाई की मांग कई बार की है और अदालत ने उन्हें जल्द सुनवाई करने का भरोसा भी दिलाया था।

सुनवाई की तिथि से कुछ दिन पहले ही शिया बोर्ड ने हलफनामा दाखिल कर मामले में समुचित समझौते का रुख व्यक्त किया। उसने कहा कि विवादित स्थल से समुचित दूरी पर मुस्लिम बहुल इलाके में एक मस्जिद का निर्माण किया जा सकता है। इसके बाद ठीक अगले दिन शिया बोर्ड ने ढहाए जा चुके विवादिल स्थल की जमीन के मामले में 1946 में दिए गए ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दे दी। सात दशक बाद दायर याचिका में उसने विवादित स्थल पर मालिकाना हक जताते हुए ट्रायल कोर्ट के फैसले में खामी बताई और सुप्रीम कोर्ट से मामले पर विचार कर फैसला करने की गुजारिश की। इस अपील में कहा गया है कि मस्जिद बाबर ने नहीं, मीर बाकी ने बनवाई थी जो एक शिया था।  

खास बात ये है कि हलफनामे में शिया वक्फ बोर्ड ने यह भी कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड शांतिपूर्ण तरीके से इस विवाद का हल नहीं चाहता। इस मसले को सभी पक्ष आपस में बैठकर सुलझा सकते हैं जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट उन्हें समय दे। बोर्ड ने कहा कि इसके लिए एक उच्चस्तरीय कमेटी बनाई जाए। सर्वोच्च अदालत इस मामले को बातचीत के जरिए हल करने को पहले ही कह चुका है। ऐसे में शिया बोर्ड का हलफनामा इस मामले का अदालत का रुख बदल सकता है और सभी पक्षकारों से समझौते को लेकर अदालत सवाल कर सकती है। 

अगली स्लाइड में पढ़ें क्या था इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला

पढ़ें क्या है अयोध्या का राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद

पढ़ें क्या है अयोध्या का राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद2 / 2


इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला-
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने 2010 में जन्मभूमि विवाद में फैसला सुनाते हुए 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों में बांटने का आदेश दिया था। उसने जमीन को रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में समान रूप से बांटने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि जिस जगह पर रामलला की मूर्ति स्थापित है उसे रामलला विराजमान को दे दिया जाए। राम चबूतरा और सीता रसोई वाली जगह निर्मोही अखाड़े को दिया जाए। शेष भाग एक तिहाई हिस्सा सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को दिया जाए। 

अयोध्या का राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद-
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को विवादिल स्थल पर मालिकाना हक के दावे पर फैसला दिया था। इससे पहले 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद के ढांचे को गिरा दिया गया था जिसको लेकर आपराधिक मामले का मुकदमा भी चल रहा है और मालिकाना हक विवाद से संबंधित मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। हाईकोर्ट ने फैसले में कहा था कि विवादित जमीन को 3 बराबर हिस्सों में बांटा जाए। जिस जगह रामलला की मूर्ति है उसे रामलला विराजमान को दिया जाए। सीता रसोई और राम चबूतरा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए, जबकि बाकी का एक तिहाई भूमि सुन्नी वक्फ बोर्ड को दी जाए। इसके बाद हाईकोर्ट में पक्षकार रहे विभिन्न पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

विवादित स्थल को लेकर रामलला विराजमान और हिंदू महासभा ने सर्वोच्च अदालत में याचिका दायर की। दूसरी ओर सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने भी हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की। इसके अलावा कई अन्य पक्षकारों ने याचिकाएं लगाईं। सर्वोच्च अदालत ने 9 मई 2011 को इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए मामले की सुनवाई करने को कहा था। साथ ही पूरे मामले पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था, तब से यह मामला शीर्षस्थ अदालत में लंबित है।