अतीक अहमद का अतीत: कभी पूरा पूर्वांचल कांपता था जिसके नाम से, आज उसकी घिग्घी बंधी गई
विधानसभा में योगी के ऐलान से अतीक अहमद थर्र-थर्र कांप रहा है और उसी कानून का दरवाजा खटखटा रहे हैं, जिसकी उसने कभी परवाह नहीं की। कोर्ट से गुहार लगा रहा है कि यूपी पुलिस मेरा एनकाउंटर कर देगी।

अतीक अहमद वो नाम ... जिसे सुनकर पूरा पूर्वांचल सहम जाता था, आज काल का चक्र ऐसा घूमा कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने माफिया को मिट्टी में मिलाने की कसम खा ली और एनकाउंटर के डर से उसकी ही घिग्घी बंधी गई है। विधानसभा में योगी के ऐलान से अतीक थर्र-थर्र कांप रहा है और उसी कानून का दरवाजा खटखटा रहे हैं, जिसकी उसने कभी परवाह नहीं की। कोर्ट से गुहार लगा रहा है कि यूपी पुलिस मेरा एनकाउंटर कर देगी, सुरक्षा की गुहार लगाते हुए कह रहा है कि पुलिस की गाड़ी में कहीं न ले जाया जाए, पूछताछ भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए ही की जाए।
अतीक अहमद अपराधियों के राजनीति में आने का वो स्याह पन्ना है, जिससे भारतीय लोकतंत्र का एक पूरा अध्याय कलंकित है। बात शुरू से शुरू करते हैं। यानी अतीत के पैदा होने से। अतीक का जन्म आज के प्रयागराज और तब के इलाहाबाद में 10 अगस्त 1962 को हुआ। पिता फिरोज अहमद तांगा चलाकर गुजर-बसर करते थे तो जाहिर है कि घर की माली स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। महज 17 साल की उम्र में ही अतीक ने हत्या के मुजरिम के रूप में जुर्म की दुनिया में एंट्री मारी। इसके बाद अतीक तेजी से जुर्म की सीढ़ियां चढ़ने लगा। 21-22 की उम्र आते-आते अतीक इलाहाबाद में चकिया का बड़ा गुंडा बन गया और रंगदारी का उसका धंधा चल निकला। लेकिन, अतीक इतने भर से खुश नहीं था क्योंकि उस समय इलाहाबाद के पुराने इलाके में चांद बाबा का खौफ हुआ करता था। अतीक को अपराध की दुनिया का सरताज बनना था और चांद बाबा उसके रास्ते का सबसे बड़ा कांटा था।
खाकी और खादी का साथ पाकर गुंडा बना अतीक
पुलिस और नेता, दोनों चांद बाबा के खौफ को खत्म करना चाहते थे। ये अतीक के लिए मौका था, चांद बाबा के खात्मे के लिए उसे खाकी और खादी दोनों का साथ मिल गया। इसके बाद अतीक इस कदर बेलगाम हो गया कि पुलिस के लिए ही नासूर बन गया। 1986 में पुलिस ने एक दिन अतीक को उठा लिया और थाने नहीं ले गई। शोर मच गया कि पुलिस अतीक का एनकाउंटर कर देगी। घरवाले अतीक को बचाने के लिए कांग्रेस के एक सांसद की शरण में पहुंचे और दिल्ली से वाया लखनऊ होते हुए इलाहाबाद फोन पहुंचा, पुलिस को मजबूरन अतीक को छोड़ना पड़ा। इस घटना के बाद अतीक को यह बात समझ में आ गई कि अपराध की दुनिया में बादशाहत बनाने के लिए सियासत का सादा लिबास ओढ़ना होगा। इधर इलाहाबाद पुलिस भी अतीक नाम के कांटे को हमेशा के लिए निकालने की तैयारी में लगी थी।
यह बात अतीक को भी समझ में आ गई थी कि बाहर उसे पुलिस खत्म कर देगी तो एक पुराने मामले में जमानत तुड़वाकर उसने सरेंडर कर दिया और बाहर अपने लोगों के जरिए वह यह बात फैलाने में सफल हो गया कि पुलिसिया कहर की वजह से अतीक बर्बाद हो गया। इससे लोगों में सहानुभूति पैदा हो गई। एक साल बाद अतीक जेल से बाहर आ गया तो उसकी यह धारणा मजबूत हो चुकी थी कि जान और आपराध का साम्राज्य बचाना है तो सियासत में कूदना पड़ेगा। यहां उसे साथ मिला उसी कांग्रेसी सांसद का, जिसकी वजह से पहली बार उसकी जान बची थी। उसने लोगों की सहानुभूति का फायदा उठाया और 1989 के विधानसभा चुनाव में इलाहाबाद पश्चिम से निर्दलीय पर्चा भर दिया। यहां उसका सीधा मुकाबला चांद बाबा से हुआ, लेकिन अतीक भारी पड़ा और विधायक बन गया।
पांच बार इलाहाबाद पश्चिम से विधायक बना
अतीक के विधायक बनते ही चांद बाबा का पूरा गैंग खत्म हो गया और चांद बाबा की भी हत्या हो गई। जाहिर है आरोप अतीक पर लगा। चांद बाबा के मारे जाने का अतीक को भरपूर फायदा मिला और उसके खौफ का साया इलाहाबाद से निकलकर पू्रे पूर्वांचल तक फैलने लगा। इसके बाद 1991 और 1993 में भी अतीक इलाहाबद पश्चिम से निर्दलीय विधायक बना। इस दौरान समाजवादी पार्टी से उसकी नजदीकियां बढ़ने लगीं। साल 1995 में बहुचर्चित गेस्ट हाउस कांड में भी अतीक का नाम आया और इनाम में उसे 1996 में सपा टिकट मिला और जीत भी मिली। चार बार विधायक बनने के बाद अतीक अब संसद में बैठने का सपना देखने लगा।
साल 1999 में अपना दल के टिकट पर प्रतापगढ़ से लोकसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन मुंह की खानी पड़ी। 2002 में अपनी पुरानी इलाहाबाद पश्चिमी सीट से अतीक पांचवीं बार विधायक बना, पर संसद जाने की बेकरारी उसे चैन से बैठने नहीं दे रही थी। 2004 के लोकसभा चुनाव में अतीक अहमद सपा के टिकट पर इलाहाबाद की फूलपुर सीट से चुनाव जीत गया। इससे इलाहाबाद पश्चिम सीट खाली हो गई, जिससे वह अपने छोटे भाई अशरफ को चुनाव लड़ाने की तैयारी करने लगा।
राजू पाल से मिली शिकस्त से बौखला गया
इधर अशरफ के खिलाफ बसपा ने राजू पाल को टिकट दे दिया और वह 4 हजार वोटों से जीत भी गया। ये हार अतीक को बर्दाश्त नहीं हुई और एक महीने में ही राजू पाल के ऑफिस के पास बमबाजी और फायरिंग हुई। इस हमले में राजू पाल बच गए। दिसंबर 2004 में फिर उनकी गाड़ी पर फायरिंग की गई, लेकिन किस्मत ने फिर उनका साथ दे दिया। 25 जनवरी 2005 में तीसरी बार राजू पर हमला हुआ और इस बार किस्मत ने उसका साथ नहीं दिया। 19 गोलियों से छलनी हो चुका राजू का शरीर जब अस्पताल पहुंचा तो डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
वर्ष 2007 में मायावती की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी और सपा ने भी अतीक को पार्टी से निकालकर अपना पल्ला झाड़ लिया। यही अतीक के जीवन का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। राजू पाल की पत्नी पूजा पाल उसके भाई अशरफ को चुनाव में हरा चुकी थी और मायावती ने अतीक को मोस्ट वॉन्टेड घोषित करके ऑपरेशन अतीक शुरू कर दिया। 1986 से 2007 के दौरान के एक दर्जन से ज्यादा मामले अतीक पर गैंगस्टर एक्ट के तहत दर्ज किए गए और उसके सिर पर 20 हजार का इनाम रख दिया गया। उसकी करोड़ों की संपत्ति सीज कर दी गईं, बिल्डिंगें गिरा दी गईं। इसके बाद उसे दिल्ली से गिरफ्तार कर लिया गया।
समय बीतता गया और अगले विधानसभा चुनाव का वक्त आ गया। साल 2012 में विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए उसने अपना दल से पर्चा भरा और इलाहाबाद हाईकोर्ट में बेल की अर्जी दी। उसके आतंक का आलम ये था कि हाईकोर्ट के 10 जजों ने एक-एक करके केस की सुनवाई से ही खुद को अलग कर लिया। 11वें जज ने सुनवाई की और अतीक को बेल दे दी। इस बार पूजा पाल के सामने अतीक खुद मैदान में थे, लेकिन जीत नहीं पाए। हालांकि, राज्य में एक बार फिर सपा की सरकार बन गई। यह अतीक के लिए मन की मुराद पूरा होने जैसा था। 2014 के लोकसभा चुनाव में उसे सुल्तानपुर से टिकट मिला लेकिन सपा में ही विरोध हो गया तो उसे श्रावस्ती शिफ्ट कर दिया गया। यहां भाजपा के दद्दन मिश्रा ने उसे हरा दिया।
अखिलेश के अध्यक्ष बनने के बाद बंद हो गए सपा के दरवाजे
इस बीच मुलायम सिंह परिवर में आपसी खींचतान शुरू हो चुकी थी, जो आगे चलकर अतीक के लिए मुसीबत का सबब बनने वाली थी। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए 2016 में सपा के उम्मीदवारों की जो लिस्ट निकली उसमें अतीक का नाम कानपुर कैंट से उम्मीदवार के रूप में था। 22 दिसंबर को अतीक 500 गाड़ियों के काफिले के साथ कानपुर पहुंचा। आलम ये था कि जिधर से काफिला गुजरता, जाम लग जाता। तब तक अखिलेश यादव सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन चुके थे और उन्होंने साफ कर दिया कि उनकी पार्टी में अतीक के लिए कोई जगह नहीं। अतीक पार्टी से बाहर कर दिए गए। कॉलेज में तोड़फोड़ करने और अधिकारियों को धमकाने के मामले में हाई कोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए पुलिस को फटकार लगाई और अतीक को गिरफ्तार करने का आदेश दिया।
चुनाव से एक महीने पहले फरवरी 2017 में अतीक को गिरफ्तार कर लिया गया। सारे मामलों में उसकी जमानत रद्द हो गई और तब से अतीक जेल में ही है। कानून के साथ आंख मिचौली का खेल खेल रहे अतीक के ताबूत में आखिरी कील योगी सरकार के रूप में आई। योगी के सीएम बनते ही अतीक के खिलाफ कई मामलों की जांच शुरू हो गई। इसके बाद से लेकर अब तक अतीक की सैकड़ों करोड़ रुपए से ज्यादा की गैर कानूनी संपत्तियों पर बुलडोजर चल चुका है। अतीक का भाई अशरफ भी मरियाडीह डबल मर्डर मामले में जेल में बंद है। इस बीच एक सप्ताह पहले राजू पाल हत्याकांड के गवाह उमेश पाल की इलाहाबाद में हत्या हो गई। साथ में उसके दो सुरक्षाकर्मी भी मारे गए। आरोप फिर एक बार अतीक और उसके लगों पर है। इसके बाद सूबे के मुख्यमंत्री योगी हुंकार भर रहे हैं कि माफिया को मिट्टी में मिला देंगे।