हेट स्पीच पर सुप्रीम कोर्ट गरम, कहा- राज्य सरकारें नपुंसक हो गई हैं
कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से शीर्ष अदालत के आदेशों के बावजूद दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा नफरत भरे भाषणों को नियंत्रित करने में विफल रहने के लिए उसके खिलाफ दायर एक अवमानना याचिका का जवाब देने को कहा।

हेट स्पीच को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बेहद अहम टिप्पणियां कीं। कोर्ट ने महाराष्ट्र समेत उन राज्यों की सरकारों पर कड़ा रुख अपनाया, जहां हेट स्पीच के मामलों में कोई रोक नहीं लग सकी है। जस्टिस केएम जोशेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने ऐसी राज्य सरकारों को नपुंसक करार दिया। बेंच ने स्पष्ट तौर पर कहा कि राज्य में हेट स्पीच की घटनाओं के लिए राज्य सरकार जिम्मेदार है।
कोर्ट ने कहा कि किसी को भी अपनी इज्जत सबसे ज्यादा प्यारी होती है। ऐसे बयान दिए जाते हैं कि पाकिस्तान चले जाओ... लेकिन सच्चाई यह कि उन्होंने इस देश को चुना। बेंच ने नफरती भाषण देने वालों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने में विफल रहने को लेकर महाराष्ट्र सहित विभिन्न राज्य प्राधिकरणों के खिलाफ एक अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणियां कीं। कोर्ट ने कहा कि "हर दिन तुच्छ तत्व टीवी और सार्वजनिक मंचों पर दूसरों को बदनाम करने के लिए भाषण दे रहे हैं।"
नफरत एक दुष्चक्र है: शीर्ष अदालत
कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार से शीर्ष अदालत के आदेशों के बावजूद दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा नफरत भरे भाषणों को नियंत्रित करने में विफल रहने के लिए उसके खिलाफ दायर एक अवमानना याचिका का जवाब देने को कहा। न्यायमूर्ति केएम जोसेफ और बीवी नागरत्ना की बेंच मामले की अगली सुनवाई 28 अप्रैल को करेगी। बेंच ने कहा, "नफरत एक दुष्चक्र है और राज्य को कार्रवाई शुरू करनी होगी।"
केरल के शाहीन अब्दुल्ला द्वारा एक समाचार रिपोर्ट पर अवमानना याचिका दायर की गई है जिसमें कहा गया, "पिछले चार महीनों में राज्य में कम से कम 50 रैलियां आयोजित की गईं, जहां कथित रूप से नफरत फैलाने वाले भाषण दिए गए।" हालांकि शीर्ष अदालत ने हिंदू समाज द्वारा उन घटनाओं का हवाला देते हुए दायर याचिकाओं को भी स्वीकार कर लिया, जिनमें हिंदुओं के खिलाफ नफरत फैलाने वाले भाषण दिए गए थे।
पाकिस्तान चले जाओ...
सुनवाई के दौरान जस्टिस केएम जोसेफ ने हिंदू समाज के वकील से कहा, "सबसे जरूरी चीज है मर्यादा को बनाए रखना। कुछ बयान दिए जाते हैं जैसे पाकिस्तान चले जाओ... असल में उन्होंने ही इस देश को चुना था। वे आपके भाई-बहन हैं। हम सभी को एक विरासत सौंपी गई थी।" उन्होंने कहा, "सहिष्णुता क्या है? सहिष्णुता किसी के भिड़ना नहीं बल्कि मतभेदों को स्वीकार करना सहिष्णुता है।"
न्यायमूर्ति जोसेफ ने आगे कहा, "यदि आप एक महाशक्ति बनना चाहते हैं तो कानून का शासन होना चाहिए।" न्यायमूर्ति नागरत्ना ने भी घृणास्पद भाषणों पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा, "सभी पक्ष इस तरह के बयान दे रहे थे।" बेंच ने हैरानी जताई कि अदालतें कितने लोगों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू कर सकती हैं और भारत के लोग अन्य नागरिकों या समुदायों को अपमानित नहीं करने का संकल्प क्यों नहीं ले सकते।
मेहता और बेंच के बीच हुई तीखी बहस
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने केरल में एक व्यक्ति द्वारा एक खास समुदाय के खिलाफ दिए गए अपमानजनक भाषण की ओर बेंच का ध्यान दिलाया और कहा कि याचिकाकर्ता शाहीन अब्दुल्ला ने देश में नफरती भाषणों की घटनाओं का चुनिंदा रूप से जिक्र किया है। इस पर मेहता एवं बेंच के बीच तीखी बहस हुई। मेहता ने द्रमुक के एक नेता के एक बयान का भी जिक्र किया और कहा कि याचिकाकर्ता के वकील ने उन्हें और उन राज्यों को अवमानना याचिका में पक्ष क्यों नहीं बनाया।
बेंच ने उन भाषणों का उल्लेख करते हुए कहा, "हर क्रिया की समान प्रतिक्रिया होती है... हम संविधान का पालन कर रहे हैं और हर मामले में आदेश कानून के शासन की संरचना में ईंटों के समान हैं। हम अवमानना याचिका की सुनवाई कर रहे हैं क्योंकि राज्य समय पर कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। क्योंकि राज्य शक्तिहीन हो गया है और समय पर कार्य नहीं करता। यदि यह मौन है तो कोई राज्य क्यों होना चाहिए?"
'कृपया ऐसा नहीं करें'
तब मेहता ने कहा, "...केंद्र ने पीएफआई पर प्रतिबंध लगा दिया है। कृपया केरल राज्य को नोटिस जारी करें ताकि वे इसका जवाब दे सकें।" अदालत ने मेहता को अपनी दलीलें जारी रखने के लिए कहा। इसके बाद मेहता ने कहा, "कृपया ऐसा नहीं करें। इसका व्यापक प्रभाव होगा। हम क्लिप को देखने से क्यों बच रहे हैं? अदालत मुझे भाषणों की वीडियो क्लिप चलाने की अनुमति क्यों नहीं दे रही है।? केरल को नोटिस क्यों नहीं जारी किया जा सकता है और उसे याचिका में पक्ष क्यों नहीं बनाया जा सकता ... मैं क्लिप दिखाने की कोशिश कर रहा हूं जो सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है। यह अदालत उन भाषणों पर स्वत: संज्ञान ले सकती थी।’’
इसे नाटक न बनाएं, यह कानूनी कार्यवाही- कोर्ट
बेंच ने कहा, "इसे नाटक न बनाएं। यह कानूनी कार्यवाही है... वीडियो क्लिप देखने का एक तरीका है। यह सब पर समान रूप से लागू होता है। यदि आप (मेहता) चाहें तो इसे अपनी दलीलों में शामिल कर सकते हैं।" याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील निजाम पाशा ने कहा कि नफरत का कोई धर्म नहीं होता और वह अधिकारों की रक्षा के लिए यहां आए हैं। पाशा ने कहा कि महाराष्ट्र में पिछले चार महीनों में 50 ऐसी रैली हुई हैं, जहां नफरती भाषण दिए गए हैं।
केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस. वी. राजू ने कहा कि इस अदालत द्वारा निर्धारित कानून के अनुसार, अगर कोई संज्ञेय अपराध होता है, तो राज्य आपत्ति नहीं कर सकता और वह प्राथमिकी दर्ज करने के लिए बाध्य है। शीर्ष अदालत ने इस मामले में अगली सुनवाई के लिए 28 अप्रैल की तारीख तय की और याचिका पर महाराष्ट्र सरकार को जवाब देने को कहा।