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सोशल मीडिया ने कश्मीर के हालात ज्यादा बिगाड़े

सरहद पर फिर कुछ जवान शहीद हुए, फिर दुश्मनों ने मर्यादाओं का उल्लंघन किया, हमारे जवानों के शव क्षत-विक्षत किए गए, पूरा देश पीड़ा और आक्रोश में डूबा है। सवाल उठ रहे हैं कि यह सिलसिला कब तक चलेगा?...

सोशल मीडिया ने कश्मीर के हालात ज्यादा बिगाड़े
निर्मल पाठक Sun, 07 May 2017 11:42 PM
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सरहद पर फिर कुछ जवान शहीद हुए, फिर दुश्मनों ने मर्यादाओं का उल्लंघन किया, हमारे जवानों के शव क्षत-विक्षत किए गए, पूरा देश पीड़ा और आक्रोश में डूबा है। सवाल उठ रहे हैं कि यह सिलसिला कब तक चलेगा? सर्जिकल स्ट्राइक से आखिर क्या फर्क पड़ा? कश्मीर और कितनी कुर्बानियां लेगा? वह कब शांत होगा? इन तमाम सवालों पर पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल बिक्रम सिंह से हिन्दुस्तान के राजनीतिक संपादक निर्मल पाठक ने लंबी बात की। प्रस्तुत हैं उस बातचीत के अंश:  

- सीमा पर जिस तरह के हालात बने हैं, उससे क्या लगता है? क्या हम पाकिस्तान के साथ एक और युद्ध की दिशा में बढ़ रहे हैं?
देखिए, पाकिस्तान ने जो किया है, उसका मुंहतोड़ जवाब तो दिया जाएगा। लेकिन कितनी आक्रामकता से, किस स्तर पर, कितने बड़े पैमाने पर दिया जाएगा, यह राजनीतिक फैसले पर निर्भर करेगा। आमतौर पर सेना खुद जवाबी कार्रवाई करती है, लेकिन जब राजनीतिक नेतृत्व की तरफ से बयान आ जाता है, तो रणनीति इस तरह तैयार करनी पड़ती है, जिससे राजनीतिक मकसद हासिल हो सके या दुश्मन को राजनीतिक संदेश दिया जा सके। पिछले साल सितंबर में सर्जिकल स्ट्राइक की गई थी, तो वह भी राजनीतिक बयान के बाद ही की गई थी। सरकार का रुख देखते हुए मुझे लगता है कि इस बार की कार्रवाई पहले से कम नहीं होगी। आप सब जानते हैं कि रक्षा मंत्री की ओर से कहा गया है कि शहादत बेकार नहीं जाएगी। इसके साथ यकीनन मुंहतोड़ जवाब तो दिया ही जाएगा... हम हिट बैक करेंगे... ज्यादा आक्रामक और सक्रिय तरीके से करेंगे। लेकिन क्या करेंगे... किस लेवल पर होगा, यह सेना व सरकार कैबिनेट की सुरक्षा मामलों की समिति में तय करेंगे।

- पिछली बार उन्हें सबक सिखाने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक की गई थी। पर उससे तो कोई फर्क नहीं पड़ा?
देखिए, सर्जिकल स्ट्राइक यदि आइसोलेशन में करते हैं, तो जो मकसद हम चाहते हैं, वह हासिल नहीं होगा। हमारा मकसद क्या है? यही न कि पाक आतंकवाद परोसना बंद कर दे। अगर यह मुदद है, तो सर्जिकल स्ट्राइक के साथ और भी कार्रवाई करनी होगी। अगर सर्जिकल स्ट्राइक करके छोड़ देंगे, तो वे फिर से हमारे ऊपर हमला करेंगे। सर्जिकल स्ट्राइक के साथ हमें उनके आतंकवादियों और उनकी सेना का लगातार खून बहाना होगा। साथ ही उनको आर्थिक और कूटनीतिक तौर पर भी अलग-थलग करना होगा। उनको यह एहसास कराना होगा कि जो कुछ वे कर रहे हैं, उन्हें बहुत महंगा पड़ रहा है। दरअसल, फर्क क्या है कि हमारा एक जवान शहीद होता है, तो हमें बहुत दर्द होता है। उस पार ऐसी स्थिति नहीं है। उनके 50 भी मर जाएं, तो उन्हें परवाह नहीं होती। वे आतंकियों को भेजकर फिर कुछ न कुछ कार्रवाई करेंगे। हम सौ मार देंगे, तब भी उन्हें फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि वे अपने जवानों की कद्र नहीं करते। वे अपने जवानों को तोपों की भूख मिटाने का चारा समझते हैं। इसलिए एक समग्र रणनीति अपनानी होगी। कई मोर्चों पर सब तरह से दबाव बनाना होगा। यह जल्दी नहीं होगा। हो सकता है कि इसमें पांच या सात साल या और भी ज्यादा समय लग जाए। हमें उनकी कमजोरियों को भुनाना होगा। उनके लोगों का इस्तेमाल कर उनका खून बहाना होगा। बलूचिस्तान, खैबर पख्तूनख्वा व सिंध में ऐसे बहुत से लोग मिल जाएंगे।

- आप जब सेनाध्यक्ष थे, तब से अब तक कश्मीर में सेना की चुनौती में किस तरह का बदलाव आया है? 
सबसे बड़ा बदलाव तो यह आया है कि कट्टरपंथ (रेडिकलाइजेशन) बहुत बढ़ गया है। पहले इतना कट्टरपंथ नहीं था। कट्टरपंथ आधुनिक ख्यालों को कमजोर कर देता है। घाटी के नौजवानों को बरगलाने में पाकिस्तान की ओर से जारी मनोवैज्ञानिक ऑपरेशन की बड़ी भूमिका है। पाकिस्तानी दुष्प्रचार के प्रभाव में आकर हमारे युवा कानून तोड़ रहे हैं, सरकार की ताकत को चुनौती दे रहे हैं, पथराव कर रहे हैं। यह पाकिस्तान के मनोवैज्ञानिक ऑपरेशन की वजह से हुआ है। पाकिस्तान ने हमारे बच्चों को बरगलाने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल, धर्म उपदेशकों और छद्म (प्रॉक्सी) तरीकों का इस्तेमाल किया है। कट्टरपंथ के बढ़ने से कश्मीरियत कमजोर हुई है, और धीरे-धीरे इस कश्मीरियत को खत्म करने की कोशिशें हो रही हैं। 

- आपको लगता है कि जिस तरह के आज हालात हैं, उनमें सेना की चुनौती और जिम्मेदारी बढ़ गई है?
देखिए, चुनौतियां तो बढ़ेंगी। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई्र और छद्म युद्ध यानी प्रॉक्सी वॉर लंबे समय तक चलता है। यह माइंड और आइडिया का वॉर है। इसमें वक्त लगता है। जब हम बात करते हैं काउंटर-इनसर्जेंसी और काउंटर-प्रॉक्सी वार की, तो इसमें आबादी केंद्र में होती है। हमें आबादी को अपने साथ रखना है। वे हमारे नागरिक हैं। हमारे लोग हैं। सिर्फ पांच प्रतिशत या इससे भी कम कश्मीरी होंगे, जो पाकिस्तान समर्थक हैं या जिनमें भारत विरोधी भावना है। बाकी 95 फीसदी भारत के साथ रहना चाहते हैं। लेकिन आतंकियों की गोली के डर से वे उनकी ही बात सुन रहे हैं। जैसे ही हम बंदूक का यह डर खत्म कर देंगे, वे हमारी बात सुनने लगेंगे। डर दूर करने के लिए फोर्स का लेवल बढ़ाना पडे़गा। खुफिया व ऑपरेशनल एजेंसियों का तालमेल बढ़ाना पड़ेगा। तभी हो पाएगा। 

- कुछ राजनीतिक दलों ने मांग की है कि सेना को फ्री हैंड मिलना चाहिए? क्या सेना को फ्री हैंड नहीं है?
मैं किसी राजनीतिक व्यक्ति के बयान पर टिप्पणी नहीं करना चाहूंगा। लेकिन जहां तक लाइन ऑफ कंट्रोल की बात है, तो सेना को वहां हमेशा फ्री हैंड मिला है। और यह हमेशा से रहा है। ऐसा नहीं कि कोई अभी शुरू हुआ है। हम जो करना चाहते हैं, करते रहे हैं एलओसी पर। जहां तक जम्मू-कश्मीर का सवाल है, तो वहां हम अपने देश के कानून और मानवाधिकारों, नैतिक दायित्वों को ध्यान में रखकर कार्रवाई करते हैं। कश्मीर के अंदर सेना जो कुछ करती है, उसमें हमारे नागरिक ध्यान में रहते हैं। हमारा नजरिया पीपुल फें्रडली रहता है, क्योंकि आबादी महत्वपूर्ण है। लोगों के समर्थन के बिना यह लड़ाई नहीं जीती जा सकती। वे हमारे साथ हैं भी, लेकिन जैसा कि मैंने पहले कहा, उनके सामने से आतंकवादी की बंदूक का डर निकालना है। इसके लिए हमें सेना के और दस्ते राज्य में भेजने होंगे।
 
- हाल में एक घटना घटी है, जिसमें दंगाइयों से निपटने के लिए सेना ने एक कश्मीरी को ढाल बनाया।
जो घटना हुई है, उसे हमें कांप्रिहेन्सिव (समग्र) रूप में देखना चाहिए। अगर इसे आइसोलेट (पृथक) करके देखेंगे, तो निश्चित ही यह गलत कार्रवाई मानी जाएगी। लेकिन अगर आप इसे समग्र रूप में देखेंगे, तो इसकी सराहना करेंगे। कारण यह है कि उस अफसर (राष्ट्रीय राइफल्स के मेजर गोगोई) को पता था कि आईटीबीपी के जवानों को करीब 900 लोगों की भीड़ ने घेर लिया है। पथराव हो रहा है। अगर वह टाइम पर नहीं पहुंचे, तो आईटीबीपी गोली चला देगी। अगर उन्हें पहुंचने में देर होती, तो यह कल्पना की जा सकती है कि हिंसक हो रही भीड़ से अपनी रक्षा के लिए आईटीबीपी के जवानों के पास गोली चलाने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचता। इस अफसर ने भीड़ में मौजूद उन नागरिकों को बचाया, जो आईटीबीपी के जवानों पर पथराव कर रहे थे, और अपने साथियों को भी वहां से सुरक्षित निकाला। उस समय उन्होंने जो कुछ किया, उसमें उसकी मंशा गलत नहीं थी। लेकिन भविष्य में ऐसी कार्रवाई से निश्चित ही बचना चाहिए। इस अफसर को परेशान नहीं किया जाना चाहिए। 

- लेकिन इस घटना से सेना की छवि पर खराब असर पड़ा है।
कुछ बुद्धिजीवी इसकी बहुत आलोचना कर रहे हैं। मुझे लगता है कि उनकी आशंकाएं निराधार हैं। देखिए, हमारे फौजी बहुत ही अनुशासित है। उन्हें यह सिखाया गया है कि जो अपने देश के आतंकी हैं, वे दुश्मन नहीं हैं। उन्हें हम समाज के गुमराह तत्व के रूप में देखते हैं। कहीं कोई घटना होती है, तो उन्हें बाकायदा सरेंडर करने का मौका दिया जाता है। फौज के लिए दुश्मन केवल पाकिस्तान है... उन्हें हम सरेंडर का मौका नहीं देते। अशांत इलाकों में अपने नागरिकों से डील करते समय सेना कभी अपने आदर्शों से अलग नहीं होती। मानवाधिकारों को लेकर हमारा रिकॉर्ड इसका गवाह है।

- कश्मीर में हालात ठीक करने के लिए तुरंत क्या किए जाने की जरूरत है?
सरकार ने एक बहुत अच्छा काम किया है, वहां सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाकर। घाटी में सोशल मीडिया का बहुत गलत इस्तेमाल हो रहा था। जैस-जैसे सोशल मीडिया नियंत्रण में आएगा, आप देखिएगा स्थिति में बदलाव आता जाएगा। सेना ठीक कार्रवाई कर रही है। कश्मीरी हमारे देशवासी हैं। आप देखिए, जब नौकरी के लिए जगह निकलती है, तो 50 जगह के लिए 15 हजार नौजवान आवेदन करते हैं। लेकिन जब ये घर में जाते हैं, तो इन्हें अपना बचाव करना होता है। उन्हें आतंकवादियों की बंदूक का डर है। यह डर हमें दूर करना है। सरकार कार्रवाई कर रही है, और मुझे लगता है कि कार्रवाई सही दिशा में हो रही है।

- ऐसा कहा जा रहा है कि बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद हालात ज्यादा खराब हुए हैं।
यह सही है कि हमारे बच्चे हिज्बुल मुजाहिदीन में गए हैं। यह हमारी नाकामी थी, हम समय पर मॉनीटर नहीं कर पाए। अन्यथा अगर कश्मीर में यूनीफाइड मुख्यालय ठीक से काम कर रहा है, तो कार्रवाई ठीक रहेगी। मेरा मानना है कि ये अपने बच्चे हैं और हमें कोशिश करनी चाहिए कि हम उन्हें ठीक रास्ते पर ला सकें।... उन्हें पता होना चाहिए कि भारतीय सेना के सामने वे कुछ भी नहीं हैं। अगर वे इस गलत रास्ते को नहीं छोड़ेंगे, तो मारे जाएंगे। सोशल मीडिया ने इन लोगों को रॉबिनहुड बना दिया है। अगर ये सही रास्ता नहीं अपनाए, तो इन्हें पता होना चाहिए कि इनके दिन आ चुके हैं।

- आप मानते हैं कि पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा से सावधान रहने की जरूरत है?
पाकिस्तान का कोई भी सेनाध्यक्ष नहीं चाहेगा कि कश्मीर का मुद्दा सुलझे, क्योंकि इससे वहां आर्मी का प्रभुत्व कम होगा। कश्मीर और सीमा पर तनाव की वजह से ही पाकिस्तानी फौज को वहां के समाज में एक उच्च ओहदा मिला हुआ है। वे कभी नहीं चाहेंगे कि उनका दर्जा समाज में कम हो। न मौजूदा पाक आर्मी के लोग चाहेंगे, और न ही रिटायर हो चुके लोग। अभी वास्तव में पाकिस्तान में सेना ही देश चला रही है। अगर पाक फौज की पकड़ कमजोर हुई, तो वहां की सरकार प्रभावी हो जाएगी। और वे ऐसा नहीं होने देंगे। हम पाकिस्तानी सेना से कहीं ज्यादा ताकतवर हैं। हमें किसी से सावधान रहने की जरूरत नहीं हैं। जरूरत पड़ने पर हमारी सेना उन्हें सबक सिखाने में सक्षम है।

- आप क्या मानते हैं, कश्मीर में क्या चूक हुई?
जब तक स्थिति सामान्य नहीं हो जाती, कश्मीर में सेना की तैनाती कम नहीं करनी चाहिए। हमने सोशल मीडिया को ठीक से मॉनीटर नहीं किया। पाकिस्तान ने इसका बखूबी इस्तेमाल करके हमारा भारी नुकसान किया। हम उनके दुष्प्रचार का जवाब नहीं तैयार कर पाए। हमने फौज की संख्या समय से पहले कम कर दी। इसके अलावा, हमारे सूचना प्रसारण और परसेप्शन मैनेजमेंट की कार्रवाई में भी बहुत ढील आई है।  

- कश्मीर में कोई एक सफलता? उपलब्धि?
सरकार ने वास्तविकता का आकलन करके अब एक व्यावहारिक नजरिया अपनाया है। अमरनाथ यात्रा ठीक से संपन्न कराई है। पर्यटन में बढ़ोतरी हुई है। लेकिन इस बार हमें ज्यादा ध्यान देना पड़ेगा। पाकिस्तान अमरनाथ यात्रा में व्यवधान डालने के प्रयास करेगा। इसलिए सुरक्षा बलों को बालटाल और पहलगाम के रास्ते पर सुरक्षा बढ़ानी होगी।

यह भी कहा
- कश्मीर में चीन-पाकिस्तान गठजोड़ पर

पाकिस्तान व चीन की रणनीतिक भागीदारी है। चीन पाक अधिकृत कश्मीर में आर्थिक गलियारा बना रहा है। करीब 62 बिलियन यूएस डॉलर की यह योजना है। इसकी सुरक्षा की चिंता स्वाभाविक रूप से उन्हें होगी। इसके लिए चीन ने पाकिस्तान से रणनीतिक साझेदारी की है। जहां तक कश्मीर का सवाल है, तो उनके शामिल होने का कोई इनपुट नहीं है। पर यह जरूर है कि चीन ने एक गलत नजरिया अपनाया हुआ है। जब भी हम संयुक्त राष्ट्र में जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को आतंकी घोषित कराना चाहते हैं, चीन वीटो लगाकर रोक देता है। इसका संदेश ठीक नहीं जाता है।
 

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