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उमर अब्दुल्ला की रिहाई की याचिका पर न्यायमूर्ति शांतानागौडर ने खुद को किया अलग, 14 फरवरी को सुनवाई

जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की बहन सारा अब्दुल्ला पायलट ने पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) के तहत उनकी हिरासत के मामले के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट ने इसपर...

उमर अब्दुल्ला की रिहाई की याचिका पर न्यायमूर्ति शांतानागौडर ने खुद को किया अलग, 14 फरवरी को सुनवाई
लाइव हिन्दुस्तान टीम, नई दिल्लीWed, 12 Feb 2020 12:08 PM
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जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की बहन सारा अब्दुल्ला पायलट ने पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) के तहत उनकी हिरासत के मामले के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। सुप्रीम कोर्ट ने इसपर सुनवाई के लिए आज सहमति जताई है। सारा पायलट की याचिका पर सुनवाई के लिए न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति शांतानागौडर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की तीन न्यायाधीशों वाली पीठ के समक्ष आई थी। न्यायमूर्ति शांतानागौडर ने सुनवाई के प्रारंभ में कहा, “मैं मामले में शामिल नहीं हो रहा हूं।”

इसपर शुक्रवार 14 फरवरी को सुनवाई का फैसला लिया गया। सारा की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने मामले को त्वरित सुनवाई की सूची में डाला था। बता दें कि सारा ने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के तहत उमर अब्दुल्ला को हिरासत में लिए जाने का विरोध किया था।

बता दें कि उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती के खिलाफ जन सुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत मामले दर्ज किए जाने के लिए नेकां नेता की पार्टी की आंतरिक बैठकों की कार्यवाहियों और सोशल मीडिया पर उनके प्रभाव तथा पीडीपी प्रमुख के ''अलगाववादी" समर्थक रुख का अधिकारियों ने जिक्र किया है। उमर (49) और महबूबा (60) को पिछले साल पांच अगस्त से एहतियातन हिरासत में रखा गया है, जब केंद्र ने जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को हटाने और इस पूर्ववर्ती राज्य को दो केंद्र शासित क्षेत्रों- लद्दाख एवं जम्मू कश्मीर- में बांटने की घोषणा की थी।

उनके एहतियातन हिरासत की मियाद खत्म होने से महज कुछ ही घंटे पहले उनके खिलाफ छह फरवरी की रात पीएसए के तहत मामला दर्ज किया गया। नियमों के अनुसार एहतियातन हिरासत को छह महीने से आगे तभी बढ़ाया जा सकता है जब 180 दिन की अवधि पूरा होने से दो सप्ताह पहले गठित कोई सलाहकार बोर्ड इस बारे में सिफारिश करे।

हालांकि, इस संबंध में ऐसे किसी बोर्ड का गठन नहीं हुआ और कश्मीर प्रशासन के पास दो ही विकल्प थे या तो उन्हें रिहा किया जाए या पीएसए लगाया जाए। उमर के खिलाफ तीन पृष्ठ के डॉजियर में जुलाई में नेशनल कांफ्रेंस की आंतरिक बैठक में कही गई उनकी कुछ बातों का जिक्र है जिसमें उन्होंने कथित रूप से कहा था कि सहयोग जुटाने जरूरत है ताकि केंद्र सरकार राज्य के विशेष दर्जे को हटाने की अपनी योजना को पूरा नहीं कर पाए।

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