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देश में घुसे पाकिस्तानी और बांग्लादेशी मुसलमानों को निकालो: शिवसेना

शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में कहा है कि देश में घुसे पाकिस्तानी और बांग्लादेशी मुसलमानों को निकालो। उन्हें निकालना ही चाहिए, इसमें कोई दो राय नहीं लेकिन इसके लिए किसी राजनीतिक दल को अपना झंडा...

 देश में घुसे पाकिस्तानी और बांग्लादेशी मुसलमानों को निकालो: शिवसेना
लाइव हिन्दुस्तान टीम,मुंबईSat, 25 Jan 2020 09:09 AM
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शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में कहा है कि देश में घुसे पाकिस्तानी और बांग्लादेशी मुसलमानों को निकालो। उन्हें निकालना ही चाहिए, इसमें कोई दो राय नहीं लेकिन इसके लिए किसी राजनीतिक दल को अपना झंडा बदलना पड़े, ये मजेदार है। हाल ही में राज ठाकरे की पार्टी मनसे ने अपनी पार्टी का झंडा बदला है इस पर तंज कसते हुए शिवसेना ने कहा है कि दूसरी बात ये कि इसके लिए एक नहीं, दो झंडों की योजना बनाना ये दुविधा या फिसलती गाड़ी के लक्षण हैं। राज ठाकरे और उनकी 14 साल पुरानी पार्टी ने मराठी के मुद्दे पर पार्टी की स्थापना की लेकिन अब उनकी पार्टी हिंदुत्ववाद की ओर जाती दिख रही है। इसे रास्ता बदलना कहना ही ठीक होगा। 

सामना में लिखा है कि शिवसेना ने मराठी के मुद्दे पर बहुत काम किया हुआ है। इसलिए मराठियों के बीच जाने के बावजूद उनके हाथ कुछ नहीं लगा और लगने के आसार भी नहीं हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी को जैसी चाहिए, वैसी ही ‘हिंदू बांधव, भगिनी, मातांनो…’ आवाज राज ठाकरे दे रहे हैं। यहां भी इनके हाथ कुछ लग पाएगा, इसकी उम्मीद कम ही है। शिवसेना ने प्रखर हिंदुत्व के मुद्दे पर देशभर में जागरूकता के साथ बड़ा कार्य किया है। मुख्य बात ये है कि शिवसेना ने हिंदुत्व का भगवा रंग कभी नहीं छोड़ा। यह रंग ऐसा ही रहेगा। इसलिए दो झंडे बनाने के बावजूद राज के झंडे को वैचारिक समर्थन मिल पाएगा, इसकी संभावना नहीं दिख रही। 

शिवसेना ने कांग्रेस और राष्ट्रवादी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बनाई। इसे रंग बदलना वैसे कहा जा सकता है? इस बारे में लोगों को आक्षेप कम लेकिन पेट दर्द ज्यादा है। भाजपा या दूसरे लोग महबूबा या किसी और से निकाह करते हैं तो चलता है लेकिन यही राजनीतिक व्यवस्था कोई और करे तो इसे पाप साबित किया जाता है। हमने जो सरकार बनाई, ये पाप नहीं बल्कि समाजिक कार्य है। सरकार का उद्देश्य और नीति स्पष्ट है। सरकार संविधान के अनुसार चलाई जाएगी तथा रोटी, कपड़ा, मकान, रोजगार, किसान, मेहनतकशों के कल्याण और सुरक्षा जैसे समान नागरी कार्यक्रमों को लेकर आगे बढ़ेगी। तीन पार्टियों की विचारधारा अलग हो सकती है लेकिन ‘राज्य और जनता का कल्याण करने के लिए सरकार चलानी है’ इस संदर्भ में तीनों एकमत हैं। 

गत पांच वर्षों में भारतीय जनता पार्टी जो कुछ नहीं कर पाई, वो महाविकास आघाड़ी सरकार ने 50 दिनों में कर दिखाया है। जनता का सरकार को समर्थन प्राप्त है। ये देखकर कि उद्धव ठाकरे के नेतृत्ववाली सरकार नहीं गिरनेवाली, पुराने प्यादों को रंग बदलकर नचाया जाने लगा है। संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली में हर राजनीतिक दल अपना-अपना एजेंडा और झंडा लेकर काम करता रहता है। लेकिन शिवसेना जैसी पार्टी ‘एक झंडा एक नेता’ के साथ 55 वर्षों से काम कर रही है। यह एक तपस्या और त्याग है। सत्ता के लिए शिवसेना ने रंग बदला है, ये ऐसी बात कहनेवाले लोगों के दिमागी दिवालिएपन की निशानी है। 

शिवसेना पर रंग बदलने का आरोप लगानेवाले पहले खुद के चेहरे पर लगे मुखौटे और चेहरे पर लगे बहुरंगी मेकअप को जांच लें। भारतीय जनता पार्टी द्वारा 2014 और 2019 में गिरगिट की तरह रंग बदलने के कारण ही शिवसेना भगवा रंग कायम रखते हुए महाविकास आघाड़ी में शामिल हुई और अब शिवसेना कांग्रेस-राष्ट्रवादी के साथ मिलकर सत्ता बनाकर ‘तेवर’ बदलने को तैयार नहीं है, इसका अंदाजा लगते ही हिंदुत्ववादी वोटों में फूट डालने के लिए यह साजिश रची गई है। गत 14 वर्षों में राज ठाकरे ‘मराठी’ के मुद्दे पर कुछ नहीं कर पाए और अब हिंदुत्व के मुद्दे पर भाग्य आजमा पाएंगे क्या? इसमें भी संदेह है। ‘मनसे’ प्रमुख को अपने मुद्दे रखने और उसे आगे बढ़ाने का पूरा अधिकार है लेकिन उनकी आज की नीति और इसी मुद्दे पर 15 दिन पहले की नीति में कोई मेल नहीं दिख रहा। उन्होंने कल कहा कि नागरिकता कानून को हमारा समर्थन है और कानून के समर्थन के लिए हम मोर्चा निकालनेवाले हैं लेकिन एक महीने पहले उनकी अलग और उल्टी नीति थी। राज ठाकरे ने तिलमिलाकर इस कानून का विरोध किया था। उनका कहना था कि आर्थिक मंदी-बेरोजगारी जैसे गंभीर मसलों से देश का ध्यान भटकाने के लिए अमित शाह इस कानून का खेल खेल रहे हैं और इसमें वे सफल होते दिख रहे हैं लेकिन एक महीने के भीतर ही राज ठाकरे इस खेल का शिकार हो गए और उन्होंने ‘सीएए’ कानून के समर्थन का नया झंडा कंधे पर रख लिया है। 

दो झंडे क्यों? इससे ये बात साफ हो जाती है। एनआरसी और सीएए कानून पर देश में कोलाहल मचा है और सरकार को इसका राजनीतिक लाभ उठाना है। इस कानून का फटका सिर्फ मुसलमानों को ही नहीं बल्कि 30 से 40 प्रतिशत हिंदुओं को भी लगेगा, इस सच को छुपाया जा रहा है। असम या ईशान्य राज्यों में हाहाकार मचा है। पूर्व राष्ट्रपति के रिश्तेदारों को राष्ट्रीय जनगणना से अलग रखा गया। कहीं पति का नाम है तो पत्नी का नाम नहीं है। भाई का नाम है तो बहन का नाम नहीं है। कारगिल युद्ध में शौर्य चक्र विजेता, 30-35 साल सेना में सेवा देनेवाले नागरिक को इस कानून ने ‘बाहरी’ ठहराया है। इस कानून की हालत ये है कि सेना में सेवा देने के बाद सेवानिवृत्त हुए हजारों लोगों को ‘विदेशी’ बताया गया है। ये केवल हिंदू या मुसलमान तक सीमित मामला नहीं है। राज ठाकरे ने एक महीने पहले कहा था, ‘हमारे देश में 135 करोड़ लोग रहते हैं। इतने लोगों की जनसंख्या को संभालने में मुश्किल हो रही है। ऐसी परिस्थिति में नागरिकता संशोधन कानून के कारण बाहरी लोगों को हम हिंदुस्थान में ले रहे हैं। इसकी व्यवस्था कौन करेगा? यहां की व्यवस्था चरमरा उठी है। जो यहां के मुस्लिम नागरिक हैं उन्हें खुद को असुरक्षित नहीं समझना चाहिए। हालांकि बांग्लादेश, पाकिस्तान और नेपाल से कितने मुसलमान आए हैं, इसकी जांच होनी चाहिए।’ 

एक महीना पहले इस तरह का ‘पारदर्शी’ मत प्रदर्शित करनेवाले अब मोर्चा निकालने की योजना बना रहे हैं, ये इस बात का द्योतक है कि प्यादों को कोई और नियंत्रित कर रहा है। शिवसेना से पेटदर्द तो है ही। भाजपा के शिवसेना द्वेष की बवासीर दूसरे रास्तों से बाहर निकल रही है और ये उनका पुराना खेल है। बालासाहेब के किसी पुराने भाषण की हू-ब-हू ‘कॉपी’ पढ़ी गई। फिर मंदिर में आरती, मुसलमानों की नमाज और बांग्लादेशियों की हकालपट्टी के मुद्दे भी आए। वीर सावरकर और हिंदूहृदयसम्राट बालासाहेब ठाकरे का हिंदुत्व का मुद्दा लेकर चलना बच्चों का खेल नहीं। फिर भी देश में कोई हिंदुत्व की बात पर अपनी घड़ी फिट कर रहा है तो हमारे पास उनका स्वागत करने की दिलदारी है। विचार ‘उधार’ के भले हों लेकिन हिंदुत्व के ही हैं। हो सके तो आगे बढ़ो!

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