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धारा 377 खत्म होने पर बोले सुब्रमण्यम स्वामी, 'खुलेंगे गे-बार, फैलेगा HIV'

सुप्रीम कोर्ट ने आज ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए समलैंगिकता संबंध को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया है। कोर्ट के इस फैसले पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के...

धारा 377 खत्म होने पर बोले सुब्रमण्यम स्वामी, 'खुलेंगे गे-बार, फैलेगा HIV'
नई दिल्ली। लाइव हिन्दुस्तानFri, 07 Sep 2018 01:18 AM
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सुप्रीम कोर्ट ने आज ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए समलैंगिकता संबंध को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया है। कोर्ट के इस फैसले पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के वरिष्ठ नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने कोर्ट के फैसले के बाद इस मामले पर बयान दिया है। स्वामी ने कहा कि बेशक सबकी अपनी निजी जिंदगी है और इससे किसी का कुछ लेना देना नहीं है। लेकिन अब एचआईवी एड्स के मामले बढ़ेंगे। 

स्वामी ने कहा कि ये एक अमेरिकन खेल है। अब गे-बार खुलेंगे जहां समलैंगिक लोग जा सकेंगे। लेकिन अब एचआईवी के मामलों में इजाफा होगा। इन परिस्थितियां को देखते हुए मैं उम्मीद करता हूं कि अगली सरकार इस मामले को सात जजों वाली बेंच तक ले जाएगी। इस निर्णय को सात जजों की बेंच द्वारा पलटा जा सकता है। आरएसएस ने भी इस फैसले को लेकर बयान दिया है। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के पदाधिकारी अरूण कुमार ने कहा कि आरएसएस समलैंगिकता को अपराध नहीं मानता लेकिन समान लिंग के जोड़ों के बीच विवाह प्रकृति के विरुद्ध है।

आरएसएस की यह टिप्पणी तब आई है जब सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने एकमत से 158 साल पुरानी भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के उस हिस्से को निरस्त कर दिया जिसके तहत परस्पर सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध बनाना अपराध था। न्यायालय ने कहा कि यह प्रावधान संविधान में प्रदत्त समता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
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अरुण कुमार ने एक बयान में कहा, सुप्रीम कोर्ट के फैसले की तरह हम भी इसे (समलैंगिकता) अपराध नहीं मानते। बहरहाल, उन्होंने संघ के पुराने रुख को दोहराते हुए कहा कि समलैंगिक विवाह और ऐसे संबंध प्रकृति के साथ संगत नहीं होते हैं। ये संबंध प्राकृतिक नहीं होते इसलिए हम इस तरह के संबंध का समर्थन नहीं करते। उन्होंने दावा किया कि भारतीय समाज पारंपरिक तौर पर ऐसे संबंधों को मान्यता नहीं देता है। कुमार ने कहा कि मनुष्य आमतौर पर अनुभवों से सीखता है इसलिए इस विषय पर चर्चा की जरुरत है और इसके सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक स्तर से निपटने की जरुरत है।
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