ट्रेंडिंग न्यूज़

Hindi News देशसुप्रीम कोर्ट: अयोध्या केस को 'पूरी तरह से ज़मीनी विवाद' मान होगी सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट: अयोध्या केस को 'पूरी तरह से ज़मीनी विवाद' मान होगी सुनवाई

अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर अब अगली सुनवाई 14 मार्च को होगी। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के खिलाफ अपील करनेवाले पक्षों से कहा है कि वह दो हफ्तों के भीतर ट्रांसलेशन और...

सुप्रीम कोर्ट: अयोध्या केस को 'पूरी तरह से ज़मीनी विवाद' मान होगी सुनवाई
नई दिल्ली, लाइव हिन्दुस्तान टीम। Fri, 09 Feb 2018 12:29 AM
ऐप पर पढ़ें

अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर अब अगली सुनवाई 14 मार्च को होगी। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के खिलाफ अपील करनेवाले पक्षों से कहा है कि वह दो हफ्तों के भीतर ट्रांसलेशन और बाकी डॉक्यूमेंट्स जमा कराएं।

14 मार्च को होगी अगली सुनवाई
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली विशेष खंडपीठ ने कहा कि वह अब इस मामले की सुनवाई 14 मार्च को करेगी। इसके साथ ही उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि उनका ऐसा कभी नहीं था कि इस केस की रोजना सुनवाई हो।
 
दो हफ्ते में करें इंग्लिश में ट्रांसलेशन
प्रधान न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा के अलावा खंडपीठ में शामिल जस्टिस अशोक भूषण और एस.एस. नज़ीर की बेंच ने कहा कि इसे ‘पूरी तरह जमीनी विवाद’ मानकर इस पर सुनवाई की जाएगी। उच्चतम अदालत ने कहा कि मातृभाषा में लिखी सभी चीजें  जिस पर यह सारा केस निर्भर है उन्हें इंग्लिश में रूपांतरित कर उसे दो हफ्ते के भीतर फाइल किया जाना चाहिए। शीर्ष अदालत ने रजिस्ट्रार को यह निर्देश दिए कि सभी पक्षों को वीडियो कैसेट्स की कॉपी भी दें जो हाईकोर्ट के रिकॉर्ड्स में हिस्सा रहे थे। 

ये भी पढ़ें: कुछ ऐसा रहा अयोध्या राम जन्मभूमि-मस्जिद विवाद का अदालती सफर

क्यों खास है यह सुनवाई
यह सुनवाई इस मायने में काफी महत्व रखती है क्योंकि इससे पहले सुन्नी वक्फ बोर्ड और अन्य की तरफ से दायर याचिकाओं में यह मांग की गई थी कि इसे पर सुनवाई अगले लोकसभा से पहले ना हो।

5 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था
इससे पहले पांच दिसंबर को सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच ने कहा था कि वह याचिकाओं पर 8 फरवरी से अंतिम सुनवाई शुरू करेगी। इसके साथ ही सभी पार्टियों से निश्चिम समय सीमा के भीतर अपने दस्तावेज जमा करने को कहा था। वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और राजीव धवन ने इस बात पर जिरह की कि इस मामले को या तो पांच या सात सदस्यी बेंच के पास भेजा जाना चाहिए या नहीं तो इसकी संवेदनशीलता को देखते हुए 2019 तक टाल देना चाहिए।  

2010 में आया था इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला

शीर्ष अदालत की विशेष बेंच उन 14 अपीलों पर सुनवाई कर रही है जो इलाहबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ की गई है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की तीन सदस्यीय जजों की बेंच ने 2:1 साल 2010 में अपना फैसला सुनाया था। इस फैसले में जमीन को तीन टुकड़ों में बांटकर इसे सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला को देने के लिए कहा गया था।
ये भी पढ़ें: 'अयोध्या मामले में कोर्ट का फैसला मुसलमानों को होगा स्वीकार' 

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें