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सैनेटरी नैपकिन कचरे से पर्यावरण को गंभीर खतरा, वैज्ञानिकों ने निपटान की खोजी नई तकनीक

हर साल देश में करीब 12 अरब सैनेटरी नैपकिन कचरे के रूप में लैंडफिल में समा रहे हैं और वैज्ञानिकों का कहना है कि यह कचरा पर्यावरण को एक गंभीर चुनौती है। इससे निपटने के लिए अब वैज्ञानिकों ने एक नयी...

सैनेटरी नैपकिन कचरे से पर्यावरण को गंभीर खतरा, वैज्ञानिकों ने निपटान की खोजी नई तकनीक
एजेंसी,कोच्चिMon, 12 Aug 2019 11:58 PM
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हर साल देश में करीब 12 अरब सैनेटरी नैपकिन कचरे के रूप में लैंडफिल में समा रहे हैं और वैज्ञानिकों का कहना है कि यह कचरा पर्यावरण को एक गंभीर चुनौती है। इससे निपटने के लिए अब वैज्ञानिकों ने एक नयी तकनीक विकसित की है जिसके तहत सैनेटरी नैपकिन कचरे को आंशिक रूप से छांट कर उसका पर्यावरण अनुकूल तरीके से निपटान किया जाएगा। महाराष्ट्र में स्थित 'पैडकेयर लैब्स' द्वारा विकसित इस तकनीक के तहत सैनेटरी नैपकिन कचरे को छांटकर उसका निपटान करने वाली मशीन का प्रोटोटाइप तैयार किया गया है लेकिन इसे अभी बाजार में पेश नहीं किया गया है।

केरल सरकार की नयी पहल ''केरल स्टार्टप मिशन'' के तहत पिछले दिनों कोच्चि में ''विमेन स्टार्टअप समिट 2019'' का आयोजन किया गया। 'पैड केयर लैब्स :पीसीएल: द्वारा इसी सम्मेलन में इस तकनीक को पेश किया गया। पीसीएल से जुड़े अजिंकिया धारिया ने 'भाषा' को बताया कि 'नेशनल कैमिकल लैबोरेट्री के तहत पुणे में ''पैड केयर लैब्स'' को स्टार्टअप के तौर पर शुरू किया गया है और इस स्टार्टअप ने दुनिया की पहली ऐसी मशीन विकसित की है जो सैनेटरी नैपकिन कचरे का पर्यावरण अनुकूल तरीके से कीटाणुशोधन करती है, उसे अलग करती है और उसका निपटान करती है ।
उन्होंने बताया कि इस मशीन से कचरा प्रबंधन की समस्या से छुटकारा पाया जा सकेगा।

धारिया के अनुसार, ''देशभर के घरों में से एक साल में करीब 12 अरब सैनेटरी नैपकिन कचरे के रूप में लैंडफिल में जा रहे हैं । इन नैपकिन में जो प्लास्टिक इस्तेमाल की जाती है, वह प्राकृतिक तरीके से नष्ट नहीं होती, ऐसे में यह इसे इस्तेमाल करने वाली महिलाओं की सेहत के लिए ही एक बड़ा खतरा नहीं है, बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी गंभीर खतरा है ।'' उन्होंने बताया, ''इससे पैदा हो रहे खतरे का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ये नैपकिन लैंडफिल में करीब 800 साल तक पड़े रहेंगे। ये ठोस कचरा श्रेणी में आते हैं और अगर इनका उचित निपटान नहीं किया जाए तो ये एचआईवी, एचबीवी तथा कई अन्य बीमारियों के वाहक बन सकते हैं।''

'मैन्स्ट्रुअल हाईजीन एलायंस ऑफ इंडिया' (एमएचएआई) के अनुमान भारत में 33 करोड़ 60 लाख महिलाएं ऐसी हैं जिन्हें माहवारी होती है और इनमें से 36 फीसदी सैनेटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं। इस प्रकार कुल 12 करोड़ 10 लाख महिलाएं सैनेटरी नैपकिन इस्तेमाल करती हैं। 'पैड केयर लैब्स' उन 20 स्टार्ट अप में शामिल था जिन्होंने अपने स्टार्टअप के बारे में 'विमेन स्टार्टअप समिट में प्रस्तुति दी। हालांकि इस तकनीक के बारे में धारिया ने ज्यादा बताने से इनकार करते हुए कहा कि यह केवल अभी प्रोटोटाइप चरण में है और अभी इसे बाजार में पेश नहीं किया गया है, इसलिए वह इसके बारे में अधिक जानकारी नहीं दे सकते। 

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