जाति जनगणना पर कांग्रेस में ही रार, पार्टी नेता हुए दो फाड़; CM बनाम डिप्टी CM में बन गई नाक की लड़ाई
Karnataka Cabinet Rift: राज्य के स्थायी पिछड़ा वर्ग आयोग ने जाति जनगणना या सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार कर ली है और इसे प्रस्तुत करने के लिए सीएम के संकेत का इंतजार कर रहा है।
आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर कांग्रेस एक तरफ जाति जनगणना के मुद्दे को जोर-शोर से उठा रही है, तो दूसरी तरफ उसी की सरकार में शामिल मंत्री (कैबिनेट) जाति जनगणना के मुद्दे पर दो फाड़ नजर आ रहे हैं। कर्नाटक में जाति जनगणना के समर्थक और विरोधी कांग्रेसी नेता और मंत्री अपनी-अपनी ताकत का इजहार करने वाले हैं। इस मुद्दे पर समर्थक और विरोधी के बीच बंटे जाति समूहों के नेता इस महीने एक बड़े शक्ति प्रदर्शन की तैयारी कर रहे हैं। इससे कर्नाटक में सत्तारूढ़ कांग्रेस के लिए राजनीतिक संकट पैदा हो गया है।
बता दें कि कर्नाटक में जाति जनगणना हो चुकी है लेकिन उसकी रिपोर्ट अब तक जारी नहीं हो सकी है। इस पर विवाद है। प्रभावशाली कांग्रेस विधायक शमनूर शिवशंकरप्पा के नेतृत्व में वीरशैव महासभा ने जाति जनगणना रिपोर्ट जारी करने का विरोध किया है। वह मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और पार्टी को एक राजनीतिक संदेश भेजने के लिए 24 दिसंबर को दावणगेरे में बड़ी रैली करने की योजना बना रहे हैं। अगर सरकार जाति जनगणना की रिपोर्ट स्वीकार करती है तो राज्य में वीरशैव समुदाय अलग-थलग पड़ सकता है।
सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार
राज्य के स्थायी पिछड़ा वर्ग आयोग ने जाति जनगणना या सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार कर ली है और इसे प्रस्तुत करने के लिए सीएम के संकेत का इंतजार कर रहा है। राज्य में लिंगायत और वीरशैव सबसे बड़ा और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली जाति समूह है। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने 10 मई के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का समर्थन किया था जिससे उसे भारी जीत हासिल करने में मदद मिली।
दूसरे सबसे बड़े समुदाय वोक्कालिगा ने पहले ही सीएम को याचिका दायर कर रिपोर्ट को स्वीकार न करने का आग्रह किया है। हस्ताक्षरकर्ताओं में डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार और कृषि मंत्री एन चेलुवरायस्वामी के अलावा कांग्रेस के कुछ और विधायक भी शामिल हैं।
दूसरी तरफ मुख्यमंत्री सिद्धारमैया का खेमा
दूसरी तरफ, मुख्यमंत्री सिद्धारमैया खेमे से जुड़े ओबीसी नेताओं का एक समूह है, जो 30 दिसंबर को पड़ोसी चित्रदुर्ग में एक जवाबी प्रदर्शन की योजना बना रहा है। दावा किया जा रहा है कि चित्रदुर्ग में दावणगेरे की तुलना में बड़ी संख्या में लोग शामिल होंगे। चूंकि सिद्धारमैया अल्पसंख्यकों, पिछड़े वर्गों और दलितों (अहिंदा) के भी समर्थक हैं, इसलिए उनका अनुमान है कि ये जाति समूह कुल मिलाकर आकार में लिंगायतों से कहीं बड़ी है।
विवाद की क्या वजह?
दरअसल, विवाद की वजह वे अटकलें हैं, जिसमें दावा किया जा रहा है कि राज्य में कराए गए 2015 के जाति सर्वे में लिंगायत और वोक्कालिगा की आबादी क्रमश: 17 और 14 फीसदी से घटकर 10 फीसदी हो गई है। इस बीच, सीएम सिद्धारमैया ने कहा कि रिपोर्ट के प्रकाशित होने से पहले ही अटकलों के आधार पर इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाना सही नहीं होगा। रिपोर्ट को सार्वजनिक डोमेन में रखने के पक्ष में बोलते हुए उन्होंने कहा कि यह सवाल कि रिपोर्ट को स्वीकार किया जाना चाहिए या नहीं, औपचारिक रूप से रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद ही उठेगा।
सिद्धारमैया के लिए तुरूप का पत्ता
सूत्रों ने कहा कि सीएम उस अहिंदा सम्मेलन के समर्थक हैं जिसकी उनके समर्थक और रिपोर्ट को सार्वजनिक करने के समर्थक योजना बना रहे हैं। माना जा रहा है कि रिपोर्ट को स्वीकार करने और इसे सार्वजनिक डोमेन में रखने से सीएम सिद्धारमैया की स्थिति मजबूत हो सकेगी और सत्ता पर भी पकड़ मजबूत हो सकेगी क्योंकि सत्ता पर मजबूत पकड़ रखने वाली दो जाति समूहों की आबादी कम होने से उनकी स्थिति कमजोर हो जाएगी। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, स्वयं पिछड़े समुदाय के सदस्य सिद्धारमैया इस रिपोर्ट को ओबीसी समूहों के चैंपियन के रूप में अपनी छवि को आगे बढ़ाने और आगामी लोकसभा चुनावों में ओबीसी मतदाताओं को कांग्रेस का समर्थन करने के अवसर के रूप में देखते हैं।
कर्नाटक से आगे निकला बिहार
बता दें कि कर्नाटक मॉडल पर ही बिहार में कराई गई जाति जनगणना की रिपोर्ट ना सिर्फ सार्वजनिक हो चुकी है बल्कि उसके आंकड़ों के आधार पर विधान मंडल ने नई आरक्षण नीति भी पारित कर दी है और वह लागू हो चुका है। बिहार में सर्वेक्षण से पता चला कि वहां ओबीसी और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) की आबादी 63% से अधिक है।
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