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गहलोत ने पायलट नाम के कांटे को ऐसे अपने राजनीतिक जीवन से निकाल फेंका

सचिन पायलट की बगावत ने राजनीति के चुतर खिलाड़ी और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को वह मौका दे दिया, जिसका इंतजार उन्हें पिछले विधानसभा चुनाव के वक्त से था। सचिन पायलट अब न तो राजस्थान कांग्रेस...

गहलोत ने पायलट नाम के कांटे को ऐसे अपने राजनीतिक जीवन से निकाल फेंका
हिन्दुस्तान टाइम्स,नई दिल्लीWed, 15 Jul 2020 02:44 PM
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सचिन पायलट की बगावत ने राजनीति के चुतर खिलाड़ी और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को वह मौका दे दिया, जिसका इंतजार उन्हें पिछले विधानसभा चुनाव के वक्त से था। सचिन पायलट अब न तो राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष हैं और न ही उपमुख्यमंत्री। कांग्रेस अपने वकील नेताओं की राय को तवज्जो देते हुए फिलहाल सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों को पार्टी से निकाल नहीं रही है बल्कि सबकी विधायकी खत्म करने की भूमिका तैयार कर रही है। अगर गहलोत यह करने में सफल हो गए तो उनके सियासी जीवन से पायलट नाम का कांटा लंबे समय तक के लिए निकल जाएगा।

राजस्थान विधानसभा के स्पीकर पीसी जोशी की ओर से बागी नेताओं को नोटिस भेजा जाना उनकी सदस्यता रद्द करने की दिशा में ही काफी सोच-समझकर बढ़ाया गया कदम माना जा रहा है। सीएम आवास और होटल में कांग्रेस विधायक दल की बैठक, पायलट के लिए दरवाजे खुले रखना, पद छीनने के बावजूद पार्टी में बनाए रखना जैसे सभी कदम पार्टी के वरिष्ठ नेता और वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी के सलाह के बाद उठाए गए थे। 

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पांच कांग्रेस नेताओं गहलोत, रणदीप सुरजेवाला, अजय माकन और अविनाश पांडे संघवी से लगातार सलाह लेते रहे, जिनकी मदद मोहम्मद खान कर रहे थे। खान ही वह यंग लीगल एक्सपर्ट हैं जिन्होंने 2013 में भूमि अधिग्रहण बिल को तैयार करने में जयराम रमेश की मदद की थी। सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों की अयोग्यता का केस बनाने के लिए उन्होंने राजस्थान के दलबदल विरोधी कानून, भारतीय संविधान की 10वीं अनुसूची का इस्तेमाल किया। 

रणनीति तैयार करने में शामिल एक नेता ने कहा, ''बीजेपी का साया बड़ा होने के साथ, हमें अहसास हुआ कि हमें कांग्रेस सरकार बचाने के लिए सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना है। हमने पायलट और उनके समर्थकों को अयोग्य घोषित करने का फैसला किया, क्योंकि इससे सदन में संख्या घट जाएगी और कांग्रेस के लिए संभावना चमकदार रहेगी।''

उन्होंने पायलट को कांग्रेस से नहीं निकालने का फैसला किया, क्योंकि इससे उन्हें फायदा मिलता। कानून के मुताबिक यदि किसी जनप्रतिनिधि को पार्टी से निकाल दिया जाता है तो वह निर्दलीय के रूप में सदन का सदस्य बना रहता है। ऐसे कदम से पायलट को फायदा मिलता और कांग्रेस का उद्देश्य पूरा नहीं हो पाता। 

एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा कि गहलोत को सलाहकारों ने बताया कि यह एक तीर से तीन निशाना साधने का मौका है। इससे वह उनकी सरकार गिराने की बीजेपी की कोशिश की संभावना को कम कर सकते हैं, पायलट को बाहर का रास्ता दिखा सकते हैं पार्टी में उनकी साख बढ़ेगी, क्योंकि वह दिखाएंगे कि एक साथ कई मोर्चें पर वह किस तरह लड़ रहे हैं।

यह तय है कि सिंघवी, खान और कई दूसरे केंद्रीय नेताओं के पायलट के साथ अच्छे संबंध हैं। कुछ वरिष्ठ नेता उन्हें भविष्य में पार्टी का चेहरा मानते हैं। पायलट के कई प्रशंसक नेताओं ने कहा कि उन्होंने संगठन में अपनी और गहलोत की ताकत का अनुमान गलत लगाया।  

चर्चा में शामिल एक अन्य नेता ने कहा, ''हमने भी महसूस किया कि पायलट अपनी बगावत को बहुत दूर लेकर चले गए। उन्होंने मनाने वाले नेताओं से मिलने से इनकार कर दिया और पार्टी को बीच का रास्ता निकालने का मौका नहीं दिया। जब गहलोत को लगा कि पायलट अपनी पूरी ताकत लगा चुके हैं, उसके बाद उन्होंने आसानी से कैबिनेट से निकाल दिया।'' पार्टी प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने का फैसला नई दिल्ली में लिया गया था। लीगल टीम ने राजीव नायर और बीएस येदियुरप्पा सहित सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों को ध्यान में रखा। 

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