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वायुसेना ने सुप्रीम कोर्ट में कहा- राफेल चाहिए, हमें इसकी जरूरत है

सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को राफेल सौदे की जांच से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान वायुसेना ने भी अपना पक्ष रखा। वायुसेना अधिकारियों ने कोर्ट में कहा कि भारत को राफेल जैसे पांचवीं पीढ़ी के...

वायुसेना ने सुप्रीम कोर्ट में कहा- राफेल चाहिए, हमें इसकी जरूरत है
नई दिल्ली। विशेष संवाददाताThu, 15 Nov 2018 09:09 AM
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सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को राफेल सौदे की जांच से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान वायुसेना ने भी अपना पक्ष रखा। वायुसेना अधिकारियों ने कोर्ट में कहा कि भारत को राफेल जैसे पांचवीं पीढ़ी के अत्याधुनिक विमान की दरकार है, जो दुश्मन के रडार और निगरानी उपकरणों को चकमा दे सकें। दरअसल, सुनवाई के दौरान प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वह राफेल सौदे को लेकर विवाद पर वायुसेना के अधिकारियों से बात करना चाहते हैं। इस पर वायुसेना के शीर्ष अधिकारी एयर वाइस मार्शल जे चेलापति, एयर मार्शल अनिल खोसला और एयर मार्शल वी आर चौधरी बहुत कम समय के बुलावे पर अदालत पहुंचे। 

अधिकारियों ने कहा कि इन अत्याधुनिक विमानों में रडार से बच निकलने जैसी तकनीक और बेहतर इलेक्ट्रानिक युद्धक क्षमताएं हैं। कोर्ट ने कहा कि हम वायुसेना से ही पूछना चाहते हैं कि क्या उन्हें इन विमानों की जरूरत है। कोर्ट ने एक एयर मार्शल चेलापति से विमानों के घरेलू उत्पादन के बारे में पूछा। चेलापति ने बताया कि सबसे ताजा विमान सुखोई 30 लिए गए थे और उससे पहले 1985 में तीसरी पीढ़ी के मिराज थे। इसके बाद कोई विमान वायुसेना के बेड़े में नहीं जोड़ा गया। उन्होंने कहा कि भारत को पांचवी पीढ़ी के विमान चाहिए, जिसमें रडार को चकमा देने वाली स्टील्थ तकनीक से लैस हों और इसी को देखते हुए ही राफेल विमानों को चुना गया था। अधिकारियों की बात सुनने के बाद कोर्ट ने उन्हें रुखसत कर दिया। 

कोर्ट इस मामले को न देखे : अटार्नी जनरल
इससे पहले अटार्नी जनरल वेणुगोपाल ने पीठ से कहा कि इन विषयों पर विशेषज्ञों को गौर करना चाहिए। शीर्ष अदालत न्यायिक रूप से यह फैसला करने के लिए सक्षम नहीं है कि कौन सा विमान और कौन से हथियार खरीदे जाएं, क्योंकि यह विशेषज्ञों का काम है। उन्होंने कहा कि केंद्र ने राफेल विमानों, इसमें फिट किए जाने वाले हथियारों और अन्य जरूरतों की पूरी जानकारी पहले ही सीलबंद लिफाफे में न्यायालय को सौंप दी हैं। उन्होंने कहा कि मामला बहुत संवेदशनशील है और यह देश की सुरक्षा से जुड़ा है। इसके बाद वायुसेना के अधिकारियों ने अपनी बात रखी

सुनवाई के दौरान पूर्व भाजपा नेता अरुण शौरी ने भी बहस की। उन्होंने कहा कि यह मामला विमानों की कीमत का नहीं बल्कि इससे आगे है क्योंकि विमानों की संख्या 126 से घटाकर 36 करना देश की सुरक्षा के साथ समझौता है। उन्होंने कहा कि पीएम ने अंबानी को 2015 में ही रक्षा क्षेत्र में आने का इशारा कर दिया था। इस मामले में कोर्ट को नोटिस जारी करना चाहिए। आप नेता संजय सिंह के वकील ने कोर्ट में कहा कि सरकार कीमतों के बारे में गोपनीयता बरत रही है जबकि यह कीमतें दो बार संसद में खोली जा चुकी हैं। वहीं वकील एमएल शर्मा ने कहा कि सरकार ने रिलायंस को फायदा पहुंचाने के लिए उसे आफसेट पार्टनर चुनवाया और बढ़ी हुई कीमतों पर विमान खरीदे। 
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सरकार के हित कैसे सुरक्षित होंगे : कोर्ट
सरकार के इस रुख पर कि आफसेट पार्टनर चुनने में सरकार की कोई भूमिका नहीं है, पर कोर्ट ने रक्षा उप सचिव से पूछा कि यदि आफसेट पार्टनर अनुबंध के अनुसार उत्पादन समय पर शुरू नहीं करता है तो सरकार के हित कैसे सुरक्षित किए जाएंगे।  क़्या सरकार को आफसेट पार्टनर के बारे में जानकारी नहीं होनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि आफसेट दिशानिर्देशों में बदलाव क्यों किया गया और उन्हें पिछली तिथि से लागू क्यों किया गया। दरअसल, याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि अंबानी को आफसेट में लाने के लिए ये नियम बदले गए। 

जुर्माना लगाने का हक : सरकार 
इस पर सचिव ने कहा कि राफेल बनाने वाली दसाल्ट द्वारा जानकारी देने के बाद सरकार आफसेट पार्टनर की जानकारी ले सकती है। उन्होंने कहा कि यदि आफसेट पार्टनर दोषी निकलता है तो मूल आपूर्तिकर्ता दसाल्ट पर जुर्माना लगाया जा सकता है। इस पर कोर्ट ने कहा कि आफसेट पार्टनर की शर्तों को करार का हिस्सा बनाना चाहिए था। 
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सरकारी गारंटी नहीं दी गई : याचिकाकर्ता
याचिकाकर्ता प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया था कि इस सौदे के लिए फ्रांस ने कोई सरकारी गारंटी नहीं दी है जबकि इस बारे में कानून मंत्रालय ने भी आपत्ति दर्ज की थी। इस पर उन्होंने आफसेट साझेदार को चुनने में खामी बताई और कहा कि सरकार के इशारे पर ही रिलायंस को चुना गया है। लिहाजा मामले को जांच के लिए सीबीआई को सौंपा जाए। इस पर कोर्ट ने प्रशांत भूषण को चेताया कि वह सिर्फ उतना ही बोलें जितनी जरूरत हो।  

सहूलियत पत्र गारंटी की तरह : सरकार
अटार्नी जनरल ने स्वीकार किया कि कोई सरकारी गारंटी नहीं दी गई है लेकिन कहा कि फ्रांस ने सहूलियत पत्र दिया है जो सरकारी गारंटी की तरह ही है।
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