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संपत्ति विवाद का मुकदमा 65 साल के बाद निपटा, जानें क्या है पूरा मामला

कहावत है कि ‘जहां चाह है वहां राह है’, लेकिन कानून की दुनिया में जहां विल (वसीयत) है, वहां मुकदमा है। यह बात मद्रास के एक मामले में सही साबित हुई। जहां वसीयत के कारण 65 साल तक मुकदमा...

 संपत्ति विवाद का मुकदमा 65 साल के बाद निपटा, जानें क्या है पूरा मामला
श्याम सुमन,नई दिल्लीSun, 19 Jul 2020 12:26 PM
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कहावत है कि ‘जहां चाह है वहां राह है’, लेकिन कानून की दुनिया में जहां विल (वसीयत) है, वहां मुकदमा है। यह बात मद्रास के एक मामले में सही साबित हुई। जहां वसीयत के कारण 65 साल तक मुकदमा चला और अन्ततः सुप्रीम कोर्ट ने इसे शुक्रवार को विराम दे दिया। मामला 1955 में शुरू हुआ था।

लक्षमीया और रंगा नायडू आरवी नायडू के बेटे थे। रंगा की कोई संतान नहीं थी, जबकि लक्षमीया के चार पुत्र थे। रंगा के निधन के बाद परिवार में विवाद शुरू हुआ। भतीजों ने रंगा की पत्नी के खिलाफ जमीन के कब्जे के लिए सीआरपीसी की धारा 148 (विल के आधार पर बंटवारा) के तहत मजिस्ट्रेट के सामने अर्जी दी। लखमिया ने भी पुत्रों के खिलाफ अर्जी दाखिल की। पुत्रों का कहना था कि चाचा मरने पहले वसीयत उनके लिए कर गए हैं कि जमीन उनकी रहेगी। 

मजिस्ट्रेट ने जमीन पुत्रों के नाम घोषित कर दी। रंगा की विधवा ने इस मामले में  1958 में अपील दायर की। यह मुकदमा आपस में केस सुलह से समाप्त हो गया, लेकिन 1963 में परिवार के कुछ अन्य सदस्य अलागिरी और कल्यानास्वामी ने वाद दायर किए। ये मुक़दमा भी सुलह डिक्री से समाप्त हो गया। 1976 में रंगा के एक पुत्र और चाची की 1978 में मृत्यु हो गई।

अलागिरी ने फिर कोयंबटूर की कोर्ट में एक मुक़दमा किया कि जमीन का विभाजन किया जाए। 1982 में लक्षमीया के पुत्र, उसकी विधवा और बेटी ने अलागिरी के खिलाफ केस किया। क्योंकि उसने रंगा की कथित वसीयत के हिसाब से जमीन का कुछ हिस्सा बेच दिया था। साथ में अलागिरी ने भी फिर से 1983 में बंटवारे के लिए मुक़दमा दायर किया। 

कोर्ट ने अलागिरी का मुक़दमा खारिज कर दिया और लक्षमीया के पुत्र और विधवा का मुक़दमा डिक्री कर दिया। मगर, अपील कोर्ट ने केस पलट दिया और कहा कि इसका कोई सबूत नहीं है कि 1932 में जमीन का बंटवारा हुआ था। बाद में दूसरी अपील पर मद्रास हाईकोर्ट ने 2007 में उस फैसले को पलट दिया। वर्ष 2008 में विभिन्न पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहरा दिया।

चर्चित मुकदमे
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बिहार के भोजपुर जिले में अप्रैल 1974 में दायर मुक़दमा : दो परिवारों में अब तक चल रहा है। ये मुक़दमा 9 एकड़ जमीन को लेकर है।
देश की अदालतों में तीन करोड़ से ज्यादा मुक़दमे लंबित हैं, जिनमें 8.3 लाख से ज्यादा केस 10 साल से ज्यादा पुराने हैं।

 

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