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प्रियंका गांधी वाड्रा के सवालों से बड़े-बड़ों को छूट रहा पसीना

नजरें लक्ष्य पर। कोशिश चुनाव साधने की। चुनौती बिखरे संगठन को एकजुट रखने की। सहज-आत्मीय माहौल। चेहरे पर मुस्कान। कोई तल्खी नहीं। धीमी आवाज और बातचीत एकदम अपनों जैसी, लेकिन सवाल ऐसे कठोर कि प्रियंका की...

प्रियंका गांधी वाड्रा के सवालों से बड़े-बड़ों को छूट रहा पसीना
लखनऊ | रचना सरन Thu, 14 Feb 2019 07:48 AM
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नजरें लक्ष्य पर। कोशिश चुनाव साधने की। चुनौती बिखरे संगठन को एकजुट रखने की। सहज-आत्मीय माहौल। चेहरे पर मुस्कान। कोई तल्खी नहीं। धीमी आवाज और बातचीत एकदम अपनों जैसी, लेकिन सवाल ऐसे कठोर कि प्रियंका की पाठशाला में बड़ों-बड़ों को माघ के महीने में पसीना छूट गया। आम कार्यकर्ता में उम्मीद जगी है कि अब जमीन पर काम करने वालों के दिन बहुरेंगे। सबको एक ही संदेश-'बूथ स्तर तक मेहनत करो, सब मिलकर लोकसभा चुनाव जिताओ।'

दादी जैसी कार्यशैली की छाप छोड़ रहीं प्रियंका: रोड शो के दूसरे दिन मंगलवार को दोपहर 1.30 बजे से भोर में 5.15 तक लगातार बैठक कर प्रियंका गांधी ने एक इतिहास तो रच ही दिया। आज तक प्रदेश कांग्रेस दफ्तर में यूपी प्रभारी राष्ट्रीय महासचिव तो दूर कोई प्रदेश अध्यक्ष तक इतनी देर नहीं बैठा। बैठक से पहले लंच में थोड़ा सादा भोजन किया। उसके बाद कुछ नहीं। सिर्फ बैठक दर बैठक...। कांग्रेस की युवा विधायक आराधना मिश्रा मोना भी सुबह उनके साथ ही कांग्रेस दफ्तर से निकलीं। गर्वभरे स्वर में कहती हैं, 'मुझे खुद तो नहीं मालूम, लेकिन बड़े लोग बता रहे हैं कि इंदिराजी ऐसे ही काम करती थीं।' 

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इंदिराजी की झलक देखने वालों की फेहरिस्त काफी लंबी है। प्रदेश के गृह मंत्री रहे पं. गोपीनाथ दीक्षित की बेटी और सक्रिय महिला नेता आरती बाजपेयी बताती हैं कि प्रियंका का चलने, बात करने, बैठने, कपड़े पहने का तरीका सब दादी जैसा है। विधायक मोना को ही नहीं आम कार्यकर्ता बृजेन्द्र कुमार सिंह (गोण्डा) को भी प्रियंका में दादी इंदिरा की झलक दिखती हैं। 

शालीनता से माहौल नियंत्रित किया: दो दिन में करीब डेढ़ दर्जन लोकसभा सीटों की बैठक हो चुकी हैं और एक भी बैठक में उन्होंने अपना आपा नहीं खोया। तब भी नहीं, जब एक बैठक में शहर अध्यक्ष पर 12 लाख रुपये लेने का आरोप लगा या पदाधिकारियों के मुंह पर कार्यकर्ताओं ने संगठन में अपनी गोटें बिठाने, हवा-हवाई लोगों को टिकट देने, जमीनी कार्यकर्ताओं को कोई पद न देने जैसे आरोप लगाए। माहौल को नियंत्रित करते हुए बड़ी शालीनता और सहजता से बोलीं, 'पार्टी को मिलकर मजबूत करोगे। जो प्रत्याशी देंगे, उसे जिताओगे?' उनका पूछना होता है और माहौल शान्त, सब हामी भरने लगते हैं। 

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लंबी बातें करने वालों का मुंह बंद कर दिया
अवध की एक लोकसभा सीट की बैठक में तो शुरुआत से ही लगा कि माहौल अनियंत्रित हो जाएगा। माहौल बिगड़ता, इससे पहले प्रियंका बोलीं, हम एक-एक कर मिलते हैं और फिर अलग-अलग मिलीं।

इसी तरह अपने पक्ष में लंबी-लंबी बातें करने वाले बड़े नेताओं और पदाधिकारियों की वह क्लास लेना नहीं भूलतीं। ऐसे ही एक नेता से उन्होंने पूछा कि क्या किया? जवाब में वह प्रेस कांफ्रेंस की कटिंग दिखाने लगा तो बोलीं कि आंदोलन कोई किया? नेता जी बोले प्रदेश से कोई निर्देश नहीं आया। इस पर बोलीं, 'इसी इंतजार में आप बैठे रहें।' ऐसे कई लोगों से उन्होंने बूथ और ब्लॉक का नाम पूछ लिया तो बता नहीं पाए। 

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हर किसी से सवाल, कांग्रेस पार्टी कैसे खड़ी होगी
हर बैठक में प्रियंका गांधी के कुछ चुनिंदा सवाल होते हैं- कांग्रेस कमजोर क्यों है? कैसे खड़ी होगी पार्टी? क्या करना होगा? कांग्रेस सरकार में क्या ऐसे काम हुए थे, जिन्हें बाद में रोक दिया गया? कांग्रेस हारी तो क्यों हारी? जातीय समीकरण...। किसको टिकट दिया जाए। बैठक में शामिल नेताओं की मानें तो उनका सारा जोर लोकसभा चुनाव में बेहतर नतीजे लाने पर है। चुनाव नजदीक है, लिहाजा फिलहाल रातों-रात संगठन खड़ा होना मुश्किल है। इसका अहसास बखूबी है, इसलिए कार्यकर्ताओं में जोश भरना ज्यादा जरूरी है और संगठन जितना खड़ा हो सके, इसी में वह लगी हैं। गुरुवार को बैठकों का दौर खत्म करने के बाद वह लोकसभा क्षेत्रों में जाएंगी।  

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