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जेल में लिखी कविता ने कैदी को मौत की सजा से बचाया

पश्चाताप के शब्द सिर्फ दिल को ही सुकून नहीं पहुंचाते बल्कि जान भी बचा सकते हैं। जेल में लिखी कविता की कुछ पंक्तियों ने नाबालिग के अपहरण और हत्या के एक दोषी की जान बचा ली। सुप्रीम कोर्ट ने कविता के...

जेल में लिखी कविता ने कैदी को मौत की सजा से बचाया
श्याम सुमन,नई दिल्ली। Fri, 01 Mar 2019 05:53 AM
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पश्चाताप के शब्द सिर्फ दिल को ही सुकून नहीं पहुंचाते बल्कि जान भी बचा सकते हैं। जेल में लिखी कविता की कुछ पंक्तियों ने नाबालिग के अपहरण और हत्या के एक दोषी की जान बचा ली। सुप्रीम कोर्ट ने कविता के भावों को देखते हुए देखते हुए उसकी मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया।

जस्टिस एके. सीकरी, एसए. नजीर और एमआर. शाह की पीठ ने यह आदेश देते हुए दोषी दयानेश्वर की मौत की सजा को माफ कर दिया। इन पंक्तियों में दोषी ने अपने जुर्म पर गहरा पश्चाताप व्यक्त कर अपनी गलती का अहसास किया था। पीठ ने कहा कि जेल में लिखी कविताओं को देखने से लगता है कि उसे अपनी गलती का अहसास है। अब वह सुधरने के रास्ते पर है। हमें लगता है वह ऐसा अपराध फिर कभी नहीं करेगा और वह समाज के लिए खतरा नहीं है। इसलिए हमारी राय में इस मामले में मौत की सजा वांछित नहीं है। पीठ ने आगे कहा कि उसका अपराध गंभीर और क्रूर है, लेकिन इसके बावजूद इसमें फांसी की सजा नहीं बनती।

कोर्ट ने कहा कि अपनी उम्रकैद की सजा की माफी के लिए दोषी राज्य सरकार से अपील कर सकता है। सरकार उसके आग्रह पर कानून के अनुसार तथा उसके मामले के गुण-दोषों के आधार पर विचार करेगी और स्वतंत्र फैसला लेगी। उसे आईपीसी की धारा 302 हत्या, अपहरण 364 और धारा 201 सबूत नष्ट करने के आरोप में दंडित किया था। इस मामले में ट्रायल कोर्ट पुणे ने उसे मौत की सजा सुनाई जिसे बंबई हाईकोर्ट ने 2005 में बरकरार रखा। इसके खिलाफ उसने शीर्ष कोर्ट में अपील की थी। 

जेल में रहते हुए पढ़ाई की
दयानेश्वर को 22 साल की उम्र में नाबालिग का अपहरण व हत्या की थी। दोषी पिछले 11 वर्ष से जेल में था। उसने जेल में रहते हुए बीए भी कर लिया है और गांधी फाउंडेशन द्वारा चलाए जा रहे गांधी विचारधारा में प्रशिक्षण भी ले लिया है। 

‘हमने पाया है दोषी पेशेवर हत्यारा नहीं है और न ही उसका कोई पूर्व आपराधिक रिकॉर्ड है। इसलिए हमें नहीं लगता कि उसे फांसी की सजा दी जाए।’ -सुप्रीम कोर्ट

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