कोर्ट की अवमानना मामले में 1 रुपये के दंड को प्रशांत भूषण ने दी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
न्यायपालिका के खिलाफ दो ट्वीट की वजह से अवमानना के दोषी पाए गए प्रशांत भूषण ने एक रुपये के दंड के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। कोर्ट की अवमानना मामले में वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने...
न्यायपालिका के खिलाफ दो ट्वीट की वजह से अवमानना के दोषी पाए गए प्रशांत भूषण ने एक रुपये के दंड के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। कोर्ट की अवमानना मामले में वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की है। इस याचिका में भूषण ने कोर्ट की अवमानना को लेकर 31 अगस्त को सुनाए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले और उन्हें एक रुपये का जुर्माना लगाने के फैसले पर समीक्षा करने की मांग की है।
इससे पहले एक्टिविस्ट अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने न्यायपालिका के प्रति अपमानजनक दो ट्विट के कारण अवमानना का दोषी ठहराने के सुप्रीम कोर्ट के 14 अगस्त फैसले पर पुनर्विचार के लिए न्यायालय में याचिका दायर की। प्रशांत भूषण ने न्यायालय की रजिस्ट्री में अवमानना के मामले में सजा के रूप एक रूपए का सांकेतिक जुर्माना अदा करने के बाद 14 अगस्त के फैसले पर पुनर्विचार के लिये याचिका दायर की। पुनर्विचार याचिका में कहा गया है कि उन्हें दोषी ठहराने वाले निर्णय में कानून और तथ्यों की नजर में अनेक त्रुटियां हैं।
Lawyer Prashant Bhushan files petition before Supreme Court, seeking review of its August 31 judgement slapping a fine of Re 1 on him for contempt of the court. pic.twitter.com/YiLyxVS6ul
— ANI (@ANI) October 1, 2020
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण को 15 सितंबर तक जुर्माने की राशि शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री में जमा कराने का आदेश दिया था और स्पष्ट किया था कि ऐसा नहीं करने पर उन्हें तीन महीने की साधारण कैद की सजा भुगतनी होगी और तीन साल तक वकालत करने पर प्रतिबंध रहेगा। पुनर्विचार याचिका में भूषण ने कहा कि दोषी ठहराना और सजा देना आपराधिक प्रक्रिया के दो स्वतंत्र चरण हैं और इस न्यायालय ने पहले दोषसिद्धी का फैसला सुनाने और सजा के लिये अलग सुनवाई करने की कार्यवाही अपना कर सही किया था।
14 सितंबर के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता प्रत्येक फैसले के लिये अलग अलग पुनर्विचार याचिका दायर करने का हकदार है और इस न्यायालय के पुनर्विचार के अधिकार पर लागू होने वाला कोई भी सांविधानिक या विधायी कानून इस अधिकार को सीमित नहीं करता है।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में प्रशांत भूषण को कोर्ट की अवमानना का दोषी ठहराया था। प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट और मुख्य न्यायधीश एस ए बोबडे की आलोचना करते हुए दो ट्वीट किए थे। जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए 31 अगस्त को सजा के रुप में एक रुपये का जुर्माने लगाया था।