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इंटरव्यू: मुख्य चुनाव आयुक्त बोले, EVM को आसान टारगेट मानती हैं राजनीतिक पार्टियां

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव का समय नजदीक आ रहा है। ऐसे में चुनाव आयेाग तीन मुख्य मुद्दों पर फोकस कर रहा है। इसमें एक पोलिंग में पैसों का गलत इस्तेमाल, फेक और पेड न्यूज और राजनैतिक दलों की चिंताएं।...

इंटरव्यू: मुख्य चुनाव आयुक्त बोले, EVM को आसान टारगेट मानती हैं राजनीतिक पार्टियां
स्मृति काक रामचंद्रन, हिन्दुस्तान टाइम्स, नई दिल्लीMon, 01 Oct 2018 12:18 PM
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पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव का समय नजदीक आ रहा है। ऐसे में चुनाव आयेाग तीन मुख्य मुद्दों पर फोकस कर रहा है। इसमें एक पोलिंग में पैसों का गलत इस्तेमाल, फेक और पेड न्यूज और राजनैतिक दलों की चिंताएं। ऐसा मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत का कहना है। हमारे सहयोगी अंग्रेजी अखबार हिन्दुस्तान टाइम्स की स्मृति काक रामचंद्रन ने ओपी रावत से बात की है। पढ़ें इंटरव्यू: 

सवाल: पिछले कुछ विधानसभा चुनावों के दौरान प्राप्त रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि चुनावों में अवैध धन का उपयोग लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित कर रहा है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने मतदाताओं को रिश्वत देने को अपराध में लाने वाली एक याचिका को खारिज कर दिया। ऐसे में चुनाव आयोग का क्या एक्शन रहेगा?

जवाब: हम यह देख रहे हैं कि कैसे जब्त रिपोर्टों के मामलों को एक तार्किक निष्कर्ष पर लाया जा सकता है। हम यह पता कर रहे हैं कि कितने मामलों में सजा हुई है और कितना जब्त किया गया है। 

इसके अलावा हम नई एप सी विजिल के जरिए से शिकायत करने के तरीके को और आसान बना रहे हैं। वहीं, संवेदनशील निर्वाचन क्षेत्रों में फ्लाइंग स्कवायड्स की संख्या में बढ़ोतरी और बंद सर्किट टीवी और स्थिर निगरानी टीमों का उपयोग भी किया जा रहा है। वहीं, सर्व दलीय बैठक में पार्टी के खर्चों को लेकर एक सुझाव दिया गया है। उम्मीदवारों के ऑडिट इंस्पैक्शन के बारे में भी बहुत ध्यान से सोचा जा रहा है। चुनाव आयोग ने व्यय-निरीक्षण टीमों को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि उनका प्रशिक्षण पूरा हो।

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सवाल: क्या चुनाव आयोग कोई कानूनी सहारा लेने की भी योजना बना रहा है?

यही वह है जिसके लिए हम पूछ रहे हैं। यदि काफी पैसा वितरित किया गया है तो फिर चुनाव आयोग को चुनावों के लिए कानूनी शक्तियां दी जानी चाहिए, जैसे बूथ कैप्चरिंग के लिए कानून में प्रावधान है।

सवाल: सुप्रीम कोर्ट ने संसद पर छोड़ दिया है कि वह दोषी उम्मीदवारों को लेकर कानून बनाए। कई पूर्व सीईसी और कार्यकर्ताओं ने चिंता व्यक्ति की है और कहा है कि उन्हें लगता है कि अदालत को यह कहना चाहिए था कि इसे कैसे करना है, क्योंकि नेताओं पर स्वयं ऐसा करने पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। आपका विचार क्या है?

जवाब: मैं सोचता हूं कि जब आपने उनपर देश चलाने के लिए विश्वास किया है तो फिर आप आखिर इस मामले में उनपर कैसे विश्वास नहीं कर सकते हैं? जब भी हमें लगेगा कि कानून का उल्लंघन किया जा रहा है और प्रक्रिया में बाधा डाली जा रही है तो फिर हमारे पास आर्टिकल 324 के तहत कई कानून हैं। हम उसे लागू करने में कभी नहीं सोचेंगे। तीन चुनावों में हमने भारी पैसे के वितरण का सामना किया है और इसे सु्प्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा है। कमीशन का एक फायदा है कि जब भी आपको लगता है कि कानून का पालन नहीं हो रहा है तो फिर हमारे पास काफी ताकत है, हम वापस उनपर जाएंगे। 

सवाल: अपराधिक पृष्ठभूमि होने का विज्ञापन में जिक्र किए जाने वाले सुप्रीम कोर्ट के सुझाव पर पैसे खर्च करने को उम्मीदवार कैसे सहमत होंगे?

जवाब: हमने इस निर्णय की समीक्षा की है और इस बारे में योजना जल्द ही सार्वजनिक डोमेन में होंगे।

सवाल: आयोग ने सरकार से उम्मीदवारों के दो सीटों से चुनाव लड़ने से रोकने को लेकर कानून में संशोधन करने को कहा है। या फिर कम से कम कोई उम्मीदवार एक सीट छोड़ता है तो उसे राज्य के खजाने में उचित राशि जमा करने के लिए कहा जाना चाहिए। सरकार ने इन मांगों का विरोध किया है।

जवाब: हमने यह सुझाव दिया था और इस मुद्दे पर समीक्षा भी जारी रखी जाएगी। इसके अलावा, मुझे नहीं लगता कि और कुछ करने की आवश्यकता है। ये वे क्षेत्र हैं जो ज्यादातर राजनीतिक डोमेन में हैं और वे सबसे अच्छे से जानते हैं कि इन्हें किया जाना चाहिए या फिर नहीं। पहले उम्मीदवार कई सीट से चुनाव लड़ सकते थे जिसे वे दो सीटों तक लेकर आए हैं। ऐसे में वे बदल रहे हैं।

सवाल: हमने देखा है कि कुछ दलों ने चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किए हैं। आयोग ने जब गुजरात चुनाव के लिए तारीखों का ऐलान किया तो फिर उसके पक्षपाती होने का आरोप लगाया गया। इसमें से आम आदमी पार्टी शामिल है जिसने चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए हैं।

जवाब: मैं एक किताब पढ़ रहा था जिसका नाम 'हाउ डेमोक्रेसीस डाई'। इसमें लेखकों ने लिखा है कि दल आयोग पर सवाल खड़े करने लगते हैं और तकनीक पर भी। यह ऐसा समय होता है जब सभी को चिंता करनी चाहिए। जहां तक चुनाव आयोग का सवाल है, यह इस तरह की आलोचना में पड़ता है क्योंकि एक मैच का रेफरी होने पर आप हार जाते हैं, तो आप डंप में हैं। हमें एक पंचिंग बैग की तरह होना चाहिए। ऐसे में इसे सहन करना होगा।

सवाल: ऐसी ही पंचिंग ईवीएम पर भी की गई थी और अब वीवीपीएटी पर भी की जा रही है। ईवीएम के बदले में VVPAT बेहतर मानी जा रही थी।

जवाब: वीवीपैट पूरी तरह से नई मशीनें हैं और पहली बार इस्तेमाल की जा रही हैं। ऐसे में चुनौतियां होंगी। शुरुआत में ईवीएम बड़ी संख्या में फेल रहे थे लेकिन 20 साल बाद भी फेल होने का रेट महज 0.7% ही है। मतदानकर्मियों के सीखने की अवस्था पर उच्च स्तर तक पहुंचने के बाद, चीजें और बेहतर हो जाएंगी। राजनैतिक दल मशीनों को आसान टारगेट मानते हैं।

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