आईटी एक्ट की धारा 66-ए निरस्त होने के बाद भी कर सकते हैं कार्रवाई, समझें कैसे
आईटी एक्ट की धारा 66-ए 2015 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द होने के बाद इंटरनेट और सोशल मीडिया पर गाली गलौज की बाढ़ आई गई है। लेकिन, इस धारा के रद्द होने के बावजूद लोग ऐसी हरकत करने वालों के खिलाफ...
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आईटी एक्ट की धारा 66-ए 2015 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द होने के बाद इंटरनेट और सोशल मीडिया पर गाली गलौज की बाढ़ आई गई है। लेकिन, इस धारा के रद्द होने के बावजूद लोग ऐसी हरकत करने वालों के खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं। यह अलग बात है कि इसके लिए उन्हें आईटी एक्ट के बजाए अन्य कानूनों का सहारा लेना पड़ेगा।
आईटी एक्ट की धारा 66-ए में सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक / उत्तेजक / भावनाएं भड़काने वाली सामग्री डालने पर गिरफ्तारी का प्रावधान था। शीर्ष अदालत ने इसे बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी के मौलिक अधिकार(संविधान के अनुच्छेद 19.1.ए) खिलाफ पाकर निरस्त कर दिया था। सोशल मीडिया पर अपमानजनक तथ्य प्रसारित / प्रकाशित करने पर आईपीसी की धारा 499, 500 और 501 (आपराधिक मानहानि) का सहारा लिया जा सकता है। यदि कोई आपके विरुद्ध सोशल मीडिया या इंटरनेट पर झूठी टिप्पणी कर रहा या आपके खिलाफ झूठ फैला रहा है, या आपके सम्मान को जानूझकर धूमिल कर रहा है तो उसके खिलाफ मजिस्ट्रेट के यहां मानहानि का दावा किया जा सकता है। इसमें कम से कम दो वर्ष की सजा का प्रावधान है।
धारा 469 में भी दो वर्ष की सजा का प्रावधान
आपराधिक कानून विशेषज्ञ वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. एचपी शर्मा के अलावा आईपीसी की धारा 469 (सम्मान को चोट पहुंचाने के उद्देश्य से फर्जी कार्य करना या दस्तावेज बनाना) के तहत भी ऐसे लोगों के खिलाफ शिकायत की जा सकती है। यदि वह झूठे दस्तावेजों के आधार पर जानूझकर कर झूठे और भ्रामक तथ्य सोशल मीडिया पर लिख / प्रकाशित कर रहा है। सोशल मीडिया पर लिखे यह तथ्य प्रकाशन माने जाएंगे, जो मानहानि और झूठे तथ्य फैलाने के लिए शिकायत करने की पहली जरूरत है। इस धारा में भी दो वर्ष की सजा का प्रावधान है।
धारा 153 ए में पांच वर्ष की सजा का प्रावधान
इसके अलावा आईपीसी की धारा 153 ए (सामाजिक, वर्ग, लिंग, जन्म स्थान, भाषा को लेकर और धार्मिक सौहार्द्र बिगाड़ने के लिए अफवाह फैलाना) के तहत भी पुलिस में शिकायत की जा सकती है। सोशल मीडिया में इस तरह की अफवाह फैलाने पर पुलिस काफी कार्रवाई की है। यह संज्ञेय अपराध है और इसमें जमानत नहीं मिलती। इसमें पांच वर्ष की अधिकतम सजा का प्रावधान है।
धारा 298 के तहत भी कार्रवाई संभव
आईपीसी की धारा 298 (जानबूझकर धार्मिक भावनाएं आहत करना) के तहत भी कार्रवाई संभव है। यदि कोई जानबूझकर धार्मिक भावनाओं को आहत कर रहा है तो पुलिस उसके खिलाफ शिकायत लेकर कार्रवाई कर सकती है। इसके सिद्ध होने पर दोषी एक साल के लिए जेल जा सकता है।
मानहानि का केस भी कर सकते हैं
इसके साथ ही मुआवजे या माफी मंगवाने के लिए हाईकोर्ट या निचली कोर्ट में दीवानी प्रक्रिया संहिता के तहत मानहानि का मुकदमा भी दायर किया जा सकता है। मांगे गए मुआवजे की 1.75 फीसदी राशि कोर्ट फीस के रूप में कोर्ट में जमा करनी आवश्यक है। इसके अलावा मानहानि कर्ता को कानूनी नोटिस भी देना जरूरी है।