जजों से बोला सुप्रीम कोर्ट- आपराधिक मामलों में नजीर नहीं बनने वाले आदेश उचित नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अदालतों के इस व्यवहार की निंदा की जिनमें उनके दिए गए आदेशों में कहा जाता है कि उन्हें समता के आधार पर एक मिसाल के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। पीठ ने कहा कि यह जज की...
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अदालतों के इस व्यवहार की निंदा की जिनमें उनके दिए गए आदेशों में कहा जाता है कि उन्हें समता के आधार पर एक मिसाल के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। पीठ ने कहा कि यह जज की अपने स्वयं के आदेश में विश्वास की कमी को दर्शाता है। यदि जजों को लगता है कि कोई आदेश कमजोर है, तो इसे पारित नहीं करना चाहिए।
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एम आर शाह की पीठ पांच लोगों की व्यक्तियों की हत्या के एक मामले में छह सह-अभियुक्तों को अलग-अलग आदेशों में गुजरात उच्च न्यायालय की समन्वित बेंचों द्वारा दी गई नियमित जमानत को रद्द करने की मांग के लिए दायर विशेष अनुमित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जिसमें आईपीसी की धारा 302, 143, 144, 147, 147, 148, 149, 341, 384, 120बी, 506 और 34, आर्म्स एक्ट की धारा 25 (1 बी) ए, 27 और 29 के तहत और गुजरात पुलिस एक्ट की धारा 135 के तहत दंडनीय अपराध पर चार्जशीट दाखिल की गई थी। ये आदेश अभियुक्तों को जमानत देने से संबंधित थे।
कोर्ट ने कहा कि आपराधिक मामलों में जज ऐसे आदेश पारित नहीं कर सकते, या तो वे नजीर बनेंगे या नहीं। लेकिन यह कहकर तदर्थ आदेश पारित नहीं किया जा सकता कि इन्हें नजीर न माना जाए। कोर्ट ने कहा कि सिविल मामलों में ऐसा कहा जा सकता है क्योंकि वहां पक्ष आपस में बात कर कोर्ट से आदेश पारित करने के लिए कह सकते हैं। ये आदेश उस केस विशेष में ही लागू रहेगा लेकिन आपराधिक मामलों में इसकी अनुमति नहीं है।