पाकिस्तान में सिर्फ सरकार बदली, नीयत नहीं : मोहन भागवत
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार को पाकिस्तान की ओर संकेत करते हुए कहा कि पड़ोसी देश में सिर्फ सरकार बदली है, लेकिन उसकी नीयत में कोई बदलाव नहीं आया है। उसकी हरकतें जारी...
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने गुरुवार को पाकिस्तान की ओर संकेत करते हुए कहा कि पड़ोसी देश में सिर्फ सरकार बदली है, लेकिन उसकी नीयत में कोई बदलाव नहीं आया है। उसकी हरकतें जारी हैं।
विजयादशमी के मौके पर यहां अपने वार्षिक संबोधन में भागवत ने देश के रक्षा बलों को सशक्त बनाने और पड़ोसी देशों के साथ शांति स्थापना के बीच संतुलन बनाए रखने की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने पाकिस्तान का नाम लिए बिना कहा, वहां नई सरकार आ जाने के बावजूद सीमा पर हमले बंद नहीं हुए हैं। जबकि भारत की विदेश नीति हमेशा शांति, सहिष्णुता और सरकारों से निरपेक्ष मित्रवत संबंधों की रही है।
शहरी माओवाद राष्ट्रविरोधी :
भागवत ने माओवादियों पर निशाना साधते हुए कहा, माओवाद की प्रकृति हमेशा से शहरी रही है। उसने अपने एजेंडे के लिए समाज के वंचित तबकों का इस्तेमाल किया है। शहरी माओवादियों के नव-वामपंथी सिद्धांत का मकसद एक राष्ट्रविरोधी नेतृत्व स्थापित करना है। शहरी माओवाद समाज में नफरत और गलत चीजों को बढ़ावा दे रहा है।
उन्होंने कहा, दृढ़ता से वन प्रदेशों में या अन्य सुदूर क्षेत्रों में दबाए गए हिंसात्मक गतिविधियों के कर्ता-धर्ता एवं पीछे रहकर समर्थन करने वाले अब शहरी माओवाद के पुरोधा बनकर राष्ट्रविरोधी आंदोलनों में अग्रपंक्ति में दिखाई देते हैं।
सबरीमाला मामले में भावनाओं की अनदेखी हुई :
सबरीमाला मंदिर में रजस्वला आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश की अनुमति दिए जाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ प्रदर्शन करने वालों का समर्थन करते हुए आरएसएस प्रमुख ने कहा, अदालत ने इस मामले में जन भावनाओं और लंबी परंपराओं की अनदेखी करते हुए फैसला दिया। इसने शांति, स्थिरता एवं समानता की बजाय समाज में अशांति, संकट और विभाजन को जन्म दिया है।
भागवत ने कहा, 10 से 50 साल तक की स्त्रियों के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश पर मनाही की परंपरा को समाज ने काफी पहले स्वीकार किया था। वर्षों से उसका पालन किया जा रहा है। लेकिन इस पहलू को ध्यान में नहीं रखा गया। धर्म प्रचारकों और करोड़ों श्रद्धालुओं के विश्वास को ध्यान में नहीं रखा गया। महिलाओं का एक बड़ा तबका इस प्रथा का पालन करता है। लेकिन उनकी भावनाओं पर विचार नहीं किया गया। उच्चतम न्यायालय में याचिकाएं दाखिल करने वाले वे लोग नहीं हैं जो मंदिर जाते हैं।
उन्होंने कहा, यह स्थिति समाज की शांति एवं सेहत के लिए अनुकूल नहीं है। इससे बदलते वक्त में नई सामाजिक व्यवस्था बनाने में मदद नहीं मिलेगी। भागवत ने कहा कि लोगों के दिमाग में यह सवाल पैदा होता है कि सिर्फ हिंदू समाज को ही अपनी आस्था के प्रतीकों पर बार-बार हमलों का सामना क्यों करना पड़ता है।
समाज के हर तबके के सम्मान पर जोर देते हुए उन्होंने कहा, हमारी पहचान हिंदू पहचान है जो हमें सबका आदर करना, सबको स्वीकार करना, सबसे मेलमिलाप रखना और सबका भला करना सिखाती है।
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