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कैसे इनाम के लालच में गुरु गोबिंद सिंह के रसोइये ने की मुखबिरी, मासूम साहिबजादों तक की हुई शहादत

  • गुरु गोबिंद सिंह जी के साहिबजादों की शहादत एक लालची रसोइये की वजह से हुई है। आइए जानते हैं कि कैसे इनाम के लालच में उनके रसोइये गंगू ने धोखा दिया और उनकी मुखबिरी करके मासूमों को मौत के मुंह में धकेल दिया।

Himanshu Tiwari लाइव हिन्दुस्तानThu, 26 Dec 2024 10:19 AM
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सिख धर्म के इतिहास में ऐसी कई घटनाएं हैं, जो त्याग और बलिदान की मिसाल पेश करती हैं। ऐसी ही एक घटना 1705 की है, जब गुरु गोबिंद सिंह जी के दो मासूम साहिबजादे - बाबा जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह अपनी अडिग आस्था और धर्म के प्रति निष्ठा के लिए शहीद हो गए। उनकी इस शहादत की याद में आज 26 दिसंबर को बाल वीर दिवस मनाया जाता है। गुरु गोबिंद सिंह जी के साहिबजादों की शहादत के एक लालची रसोइये की वजह से हुई है। आइए जानते हैं कि कैसे इनाम के लालच में उनके रसोइये गंगू ने धोखा दिया और उनकी मुखबिरी करके मासूमों को मौत के मुंह में धकेल दिया।

लालच में आकर रसोइये ने की मुखबिरी

1705 में आनंदपुर साहिब से निकलते समय गुरु गोबिंद सिंह जी का परिवार सिरसा नदी पार करते हुए बिछड़ गया। तब साहिबजादे जोरावर सिंह, फतेह सिंह और उनकी दादी माता गुजरी जी को गंगू अपने घर ले गया। रात के समय उसने गुरु परिवार की पोटली में रखे धन को देखकर लालच में आकर उन्हें सरहिंद के अधिकारियों को सौंपने की योजना बनाई। अगले दिन उसने अधिकारियों को सूचना दे दी और मासूम साहिबजादों और माता गुजरी जी को गिरफ्तार कर लिया गया।

7 दिसंबर 1705 को जब गुरु गोबिंद सिंह जी चामकौर की लड़ाई में व्यस्त थे, उसी दिन साहिबजादों और माता गुजरी को सरहिंद के अधिकारियों ने पकड़ लिया। उन्हें सरहिंद ले जाकर ठंडे बुर्ज में रखा गया, जहां कड़कड़ाती सर्दी ने उनके धैर्य और विश्वास की परीक्षा ली। 9 दिसंबर को फौजदार नवाब वजीर खान ने शहजादों को इस्लाम कबूल के बदले धन और सत्ता का लालच दिया। लेकिन साहिबजादों ने अपने धर्म पर अडिग रहते हुए इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। इसके बाद नवाब ने उन्हें दीवार में जिंदा चुनवाने की सजा सुनाई।

11 दिसंबर को दीवार बनानी शुरू हुई लेकिन जब दीवार उनकी छाती तक पहुंची, तो यह ढह गई। फिर उन्हें एक और रात ठंडे बुर्ज में बिताने के लिए मजबूर किया गया। अगले दिन 12 दिसंबर 1705 को जब उन्होंने फिर से इस्लाम अपनाने से इनकार कर दिया, तो उन्हें दीवार में जिंदा चुनवाकर शहीद कर दिया गया। उनकी मासूमियत और अटल साहस ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया। माता गुजरी जी ने भी अपने पोतों की मौत का समाचार सुनते ही प्राण त्याग दिए।

साहिबजादों की याद में लगता है मेला

साहिबजादों की शहादत ने धर्म और साहस के प्रतीक के रूप में एक नई मिसाल कायम की। उनके बलिदान को सम्मान देने के लिए फतेहगढ़ साहिब में स्मारक बनाए गए, जहां हर साल 25 से 28 दिसंबर तक मेले का आयोजन किया जाता है। यह स्थल आज भी उन मासूम शहीदों की याद दिलाता है, जिन्होंने धर्म और सत्य की खातिर अपनी जान दी।

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