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HINDUSTAN EXCLUSIVE | NYAY का बोझ मिडिल क्लास पर नहीं पड़ेगा: प्रियंका गांधी

लोकसभा चुनाव की बिसात बिछने के बाद देश के राजनीतिक फलक पर बतौर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्राके आगमन ने सियासी माहौल में नई हलचल पैदा कर दी। रोड शो और जनसभाओं में प्रियंका हरेक मुद्दे पर...

HINDUSTAN EXCLUSIVE | NYAY का बोझ मिडिल क्लास पर नहीं पड़ेगा: प्रियंका गांधी
शशि शेखर,नई दिल्लीSat, 11 May 2019 12:00 PM
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लोकसभा चुनाव की बिसात बिछने के बाद देश के राजनीतिक फलक पर बतौर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्राके आगमन ने सियासी माहौल में नई हलचल पैदा कर दी। रोड शो और जनसभाओं में प्रियंका हरेक मुद्दे पर बेबाकी के साथ अपनी बात रख रही हैं। इसी चुनावी व्यस्तता के बीच हिन्दुस्तान के प्रधान संपादक शशि शेखर ने उनसे विस्तार से बातचीत की। 

देश की समझदार जनता सब समझती है: प्रियंका गांधी

- कांग्रेस न्याय, किसानों की समस्या और बेरोजगारी को मुद्दा बना रही है। पार्टी की चुनाव रणनीति न्याय योजना के ईद-गिर्द है। क्या यह योजना ‘गेम चेंजर’ साबित होगी? कैसे?

न्याय एक ऐसी योजना है, जो गेमचेंजर साबित हो सकती है, क्योंकि आज की जो स्थिति है, उसमें किसान, गरीब, और जो बेरोजगार नौजवान हैं- पूरी तरह से प्रताड़ित और त्रस्त हैं। उनके लिए जो सरकारी सपोर्ट सिस्टम होते थे, जो किसानों के लिए योजनाएं थीं, जो मनरेगा जैसी योजनाएं थीं, उनको कमजोर किया गया। ऐसे समय में अगर उनको एक बेसिक आय और बेसिक समर्थन मिले, जिसके जरिए गरीबी के दलदल से कोई परिवार ऊपर उठ पाए, तो कम से कम वह शुरुआत तो कर सकता है। विकास की आशा तो कर सकता है। इसलिए यह योजना गेम चेंजर साबित होगी। भाजपा ने जान-बूझकर यह दुष्प्रचार किया है कि न्याय योजना के लिए मध्यवर्ग पर करों का बोझ लादा जाएगा। यह एकदम गलत प्रचार है और मैं स्पष्ट करना चाहती हूं कि ऐसा कोई बोझ मिडिल क्लास पर नहीं पड़ेगा। पांच साल में गरीबों, किसानों, महिलाओं, नौजवानों के साथ जो अन्याय हुआ है, उस अन्याय को मिटाने के लिए यह न्याय योजना बहुत ही महत्वपूर्ण है।

- आपके सक्रिय राजनीति में प्रवेश से शुरू करते हैं। आप लंबे समय से अमेठी-रायबरेली की जिम्मेदारी संभालती रही हैं। कार्यकर्ता आपको बड़ी जिम्मेदारी देने की मांग करते रहे,पर आपने कुछ माह पहले ही संगठन में जिम्मेदारी संभाली। चुनावी वक्त में सियासत में कदम रखने की खास वजह?

खास वजह यह थी कि मैंने सोचा कि अभी जब लोकतंत्र, संविधान और संस्थाओं पर हमला हो रहा है, तो इस समय घर पर बैठना और राजनीति में न आना कायरता होगी़, और मैं इस कायरता के साथ नहीं जी सकती।

- पार्टी महासचिव के तौर पर आपके पास पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी है, पर आपने गांधी नगर, सिलचर और वायनाड के भी दौरे किए। क्या आगे भी आप अन्य प्रदेशों में प्रचार की जिम्मेदारी संभालेंगी?

अगर पार्टी चाहेगी, तो जरूर जाऊंगी। अभी तक तो मैं उत्तर प्रदेश में इसलिए सीमित रही हूं, क्योंकि वहां काम इतना है, जिम्मेदारी इतनी है, खासतौर से अब जब पूर्वी उत्तर प्रदेश के चुनाव शुरू हो रहे हैं, तो सारे उम्मीदवार चाह रहे हैं कि मैं उनके यहां आऊं और उनके लिए थोड़ा प्रचार करूं। समय की थोड़ी कमी है, लेकिन मैं सबके यहां जाने की कोशिश कर रही हूं। अगर समय निकल पाई, तो जरूर जाऊंगी।

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- पार्टी के अंदर कई लोग यह मानते हैं कि आपने सक्रिय राजनीति में आने में देर की। प्रशांत किशोर ने यूपी चुनाव में आपको चेहरा बनाने की बात की थी। क्या आपको नहीं लगता कि उस वक्त राजनीति में कदम रख देतीं, तो आज तस्वीर दूसरी होती?

जी मैं बिल्कुल मानती हूं कि उस समय जब कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जी कह रहे थे कि मैं पार्टी में महासचिव या फिर प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल लूं, तब मैंने मना कर दिया। मुझसे उस समय गलती हुई। लेकिन इंसान आखिर अपने अनुभवों से ही सीखता है। इसलिए मैंने भी अपने अनुभव से सीखा और जब अध्यक्षजी ने अभी कहा, तो मैंने तुरंत निर्णय लिया। मैंने सोचा कि उस समय गलती की थी, लेकिन मैं अब जिम्मेदारी लूंगी।

- उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए कितनी संभावनाएं देखती हैं?

काफी सारी सीटों पर हम पूरी मजबूती के साथ लड़ रहे हैं। हमारे उम्मीदवार अच्छे हैं, संगठन उत्साहित है। कार्यकर्ता पूरी तरह से लगे हुए हैं। किसी संगठन में आमतौर पर जो कमियां होती हैं, उनको एक साथ तो दूर नहीं कर सकते, लेकिन सबकी कोशिश यही है कि एक साथ मिलकर अच्छी लड़ाई लड़ें।

- क्या हम अगले यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की तरफ से मुख्यमंत्री पद की उम्मीदवार से बात कर रहे हैं?

मैं अभी संगठन की महासचिव हूं। मैं पार्टी को मजबूत करने के लिए यहां आई हूं। मुझे न तो किसी पद की इच्छा है और न लालच, तो कैसे कह सकती हूं कि मैं आने वाले चुनाव में मुख्यमंत्री की उम्मीदवार बनूंगी।

- सियासत पर नजर रखने वाले लोगों का यह मानना है कि यूपी में कांग्रेस के मजबूती से चुनाव लड़ने से सपा-बसपा-रालोद गठबंधन की जीत की संभावनाओं पर असर पडे़गा और भाजपा मजबूत होगी?

ऐसा कतई नहीं है। हम पूरी मजबूती से चुनाव लड़ रहे हैं। हमारा कोई प्रत्याशी गठबंधन का नुकसान नहीं कर रहा है। हमने ऐसे प्रत्याशी दिए हैं, जो भाजपा को नुकसान पहुंचा रहे हैं। 

HINDUSTAN EXCLUSIVE: देश की समझदार जनता सब समझती है: प्रियंका गांधी

- कर्नाटक के विधानसभा चुनाव के बाद  देश में भाजपा के खिलाफ महागठबंधन की उम्मीद जगी थी। ऐसा लगता था, कांग्रेस इस मुहिम का नेतृत्व करेगी, लेकिन दिल्ली, पश्चिम बंगाल, यूपी में गठबंधन नहीं हो सका। क्या इससे विपक्ष की जीत की संभावनाएं कम नहीं हुईं?

देखिए, अगर सब एकजुट लड़ते, जैसे उत्तर प्रदेश में यदि हम सब एक साथ लड़ते, तो यह बिल्कुल संभव था कि वहां पर भाजपा 5-10 सीटों तक सिमट जाती। यही बात दूसरे प्रदेशों के लिए भी सच है। हमेशा एक साथ मिलकर लड़ने से मजबूती ज्यादा होती है, लेकिन हर प्रदेश की पार्टी की अपनी मजबूरी होती है,उनको अपने कार्यकर्ताओं को भी जवाब देने पड़ते हैं। तो जिन्होंने ये निर्णय लिए हैं, उन्होंने सोच-समझकर ही लिए होंगे। 

- जिन प्रदेशों में कांग्रेस गठबंधन में है, जैसे तमिलनाडु, महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड, वहां पार्टी का दायरा सिमटता जा रहा है। जमीनी तौर पर संगठन की मजबूती के लिए आपकी क्या रणनीति है?

जमीनी तौर पर प्रदेश के चुनावों के लिए कांग्रेस पार्टी को अकेले लड़ना पड़ेगा। संगठन को ब्लॉक स्तर से लेकर प्रदेश स्तर तक मजबूत बनाना पडेे़गा। निष्ठा और समर्पण से कार्य करने वाले कार्यकर्ताओं को मजबूत बनाना होगा। जिनका प्रतिनिधित्व पार्टी संगठन में नहीं या कम है, उसे बढ़ाना पड़ेगा। तभी पार्टी प्रदेश के चुनावों में अलग लड़कर अपने संगठन को मजबूत बना सकेगी।

- क्या आपको नहीं लगता कि भविष्य में अपने बूते सत्ता तक पहुंचने के लिए कांग्रेस का सभी प्रदेशों में अधिक से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ना जरूरी है, लेकिन उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे बड़े प्रदेशों में पार्टी में युवा कार्यकर्ताओं की कमी है? नौजवानों के देश में आखिर इस विरोधाभास से आप कैसे जूझेंगी?

मेरा तो पूरा प्रयास रहेगा कि इस चुनाव के बाद मैं नौजवानों को पार्टी संगठन से जोड़ूं। आप बिल्कुल सही कह रहे हैं कि देश का भविष्य युवाओं के हाथ में है और जब तक उनका पूरा प्रतिनिधित्व पार्टी संगठन में न हो, जब तक नई लीडरशिप न दिखे, न जुड़े, तब तक संगठन मजबूत नहीं हो सकता।

- भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रवाद को मुद्दा बना रही है। क्या कांग्रेस के मुद्दे चुनाव में भाजपा के राष्ट्रवाद से जुडे़ मुद्दों का सामना कर पाएंगे?

राष्ट्रवाद की बात तो हम भी कर रहे हैं। भाजपा के राष्ट्रवाद में लोगों का कोई महत्व नहीं है। हम कह रहे हैं कि राष्ट्र के लोगों की सुनो- किसानों की बात, जवानों की बात, नौजवानों की बात, मजदूरों की बात, महिलाओं की बात, ये सब मिलकर राष्ट्रवाद बनाते हैं। हम तो उनकी उनसे सुनकर उनके लिए काम कर रहे हैं। भाजपा का राष्ट्रवाद शुरू मोदी नाम से होता है, खत्म मोदी के नाम पर होता है। तभी तो ‘मोदी की सेना’ जैसा अपमानित करने वाला लहजा होता है इनका।

- भाजपा कांग्रेस पर पाकिस्तान की भाषा बोलने के आरोप लगा रही है। राष्ट्रवाद के मुद्दे पर कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की जा रही है। इस पर आपकी क्या राय है?

भाजपा के सभी नेता अपने हर भाषण में पाकिस्तान की बात करते हैं। कांग्रेस का हर नेता अपने हर भाषण में हिन्दुस्तान की बात करता है, हिन्दुस्तान की समस्याओं की बात करता है, नौजवानों की समस्याओं की बात करता है। किसानों की समस्याओं की बात करता है, महिलाओं की समस्याओं की बात करता है, गरीबों की समस्याओं की बात करता है। इस सवाल का यही जवाब है।

- कांग्रेस के नारे ‘चौकीदार चोर है’ के जवाब में भाजपा ने ‘मैं भी चौकीदार’ अभियान छेड़ दिया। आपने ‘चौकीदार बडे़ लोगों के होते हैं’ कहकर इस विवाद को नया मोड़ दे दिया। लाभ मिलेगा?

मुझे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक किसान ने यह बात कही थी और देखिए, देश की जनता सच्चाई को बहुत अच्छी तरह से समझती है। यह बात जनता के विवेक से उभरी है और यही सच्चाई है। चौकीदार अमीरों के यहां होते हैं, गरीबों के यहां नहीं होते। 

- आपके पति रॉबर्ट वाड्रा के खिलाफ भी सरकार जांच कर रही है। आप उनके साथ पूरी मजबूती से खड़ी हैं। आपको डर नहीं लगता?

कभी नहीं। 

- आपके चुनाव प्रचार में लोगों की भीड़ जुटती है। कार्यकर्ता भी उत्साहित हैं। भीड़ को देखकर आपको क्या एहसास होता है, जिम्मेदारी का या गर्व का?

जिम्मेदारी का बोध होता है। इसमें गर्व वाली कोई बात नहीं है। हमारे लिए जो विश्वास और प्रेम की भावना है उनके दिल में, उसका एहसास होता है, और यही जिम्मेदारी है। देखिए, जब लोग आपसे प्रेम करते हैं, तो फिर आपको भी लोगों के प्रति जिम्मेदार बनना पड़ता है।

- लोग आपमें इंदिरा गांधी की छवि देखते हैं। इससे आपको लोगों तक पहुंचने में आसानी होती है या फिर आपकी चुनौतियां बढ़ जाती हैं?

दोनों बातें हैं। यह सम्मान है मेरे लिए कि लोग मुझमें उनको देखते हैं, लेकिन इसके साथ ही मेरी जिम्मेदारी भी इस बात से बढ़ जाती है। 

- कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी आपको अपना सबसे अच्छा दोस्त कहते हैं। क्या आप दोनों हरेक राजनीतिक विषय पर आपस में चर्चा करते हैं? कभी दोनों के बीच किसी मुद्दे पर मतभेद हुए?

हम भाई-बहन हैं। कई ऐसे मुद्दे होते हैं, जिन पर हम सहमत नहीं होते। कई ऐसे मुद्दे भी हैं, जिन पर हम पूरी तरह से एकराय होते हैं। यह बहुत स्वाभाविक बात है बहन-भाई के रिश्ते में। मैंने कहा है कि मेरे भाई मेरे ऐसे दोस्त हैं, जो हमेशा मुझसे सच बोलते हैं और कभी-कभी उनकी सच्चाई मुझे कड़वी भी लग सकती है। लेकिन मैंने हमेशा देखा है कि जब भी मैं उनके पास कोई सलाह लेने जाती हूं, वह सच बोलते हैं और उस सलाह से मुझे हमेशा फायदा होता है। मैं उनसे सीखती हूं।

- पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक बार कहा था कि राजनीति में हिस्सा लेने वाली मां को दोगुना काम करना पड़ता है। आप अब सक्रिय राजनीति में हैं, क्या आपको भी ऐसा लगता है?

जी, यह बिल्कुल सच है कि दोगुना काम करना पड़ता है। और सिर्फ राजनीति में सक्रिय महिलाओं को नहीं, बल्कि किसी भी प्रोफेशन में सक्रिय होने वाली महिला को घर-गृहस्थी, परिवार और अपने प्रोफेशन, दोनों मोर्चे को संभालना पड़ता है। 

कुछ खास बातें 

- राहुल के प्रधानमंत्री बनने का सवाल

एक बहन होने के नाते मैं यही चाहूंगी कि मेरा भाई खुश हो। मैं चाहूंगी कि मेरे भाई जिस भी तरह से अपनी लाइफ को पूर्णता के साथ जी सकते हैं, वह सब उन्हें मिले, वह सफल हों। 

- जीवन के सबसे दुखद अनुभव 

बचपन में मुझे जैसी हिंसा का अनुभव हुआ, जबमेरी दादी और मेरे पिताजी की हत्या हुई, उससे मेरे जीवन में काफी बदलाव आए और उसका काफी प्रभाव पड़ा। वैसी हिंसा से मैं अपने बच्चों को जरूर दूर रखना चाहती हूं। और मैं हमेशा चाहती थी कि मेरे बच्चों का एक साधारण और नॉर्मल जीवन हो। मैं चाहती थी कि उनकी निजी जिंदगी इस राजनीतिक ताम-झाम से तब तक दूर रहे, जब तक कि वे इसको पूरी तरह से समझने लायक न हो जाएं।

- हिंदी-अंग्रेजी भाषा पर समान अधिकार 

बचपन में हमसे सब हिंदी में बोलते थे। मैंने और राहुल ने बचपन में हिंदी में ही बात की। मेरे बच्चे जब तक स्कूल नहीं गए, तब तक मैं उनसे हिंदी में ही बात करती थी। स्कूल की अध्यापिका ने बोला कि आप अपने बच्चों से इंग्लिश में बात किया करें, क्योंकि इंग्लिश उन्हें समझ में आती नहीं, तब मैंने उनसे अंग्रेजी में बात की। दादी ने एक नियम बनाया था कि खाते समय हिंदी में बोला जाएगा, ताकि मेरी मां की हिंदी अच्छी हो सके।

- पसंद के घरेलू काम

जैसे ही समय मिलता है, मैं घर की सफाई शुरू कर देती हूं। किचन की सफाई, किताबें इधर-उधर पड़ी हैं, तो उनको ठीक करना, कपड़ों को तह लगाना। यही करती हूं सबसे पहले।

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