अदालत के किसी आदेश का जानबूझकर उल्लंघन हो रहा हो या अदालत पर कोई अपमानजनक हमले कर रहा हो, तो उससे आहत होकर कोई निजी व्यक्ति इस अपमान के लिए उस व्यक्ति के खिलाफ अवमानना याचिका दायर नहीं कर सकता। यहां तक कि जिला अदालतों को भी कानून में ये कार्यवाही करने की इजाजत नहीं है।
निजी व्यक्ति अदालत को अवमानना की कार्यवाही शुरू करने के लिए देश के शीर्षस्थ विधि अधिकारी (अटॉर्नी जनरल) की संस्तुति चाहिए। ये संस्तुति सुप्रीम कोर्ट के मामले में की जाती है, जबकि हाईकोर्ट में अवमानना की कार्यवाही शुरू करने के लिए राज्य के महाधिवक्ता ( एडवोकेट जनरल) की सिफरिश चाहिए। यही वजह है कि मजाकिए कुणाल कामरा के खिलाफ अवमानना की कारवाही शुरू करने के लिए वकीलों ने अटॉर्नी जनरल से सिफारिश हासिल की है।
न्यायालय की अवमानना कानून, 1971 की धारा 15 में आमजन को किसी के खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्यवाही शुरू करने का अधिकार है लेकिन ये अटॉर्नी जनरल की सिफारिश पर निर्भर करता है। हाल ही में अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी के खिलाफ अवमानना कि कार्यवाही शुरू करने की अनुमति से इंकार कर दिया था। ये अनुमति एक वकील अश्वनी उपाध्याय ने मांगी थी। रेड्डी ने सुप्रीम कोर्ट के एक सिटिंग वरिष्ठतम जज के खिलाफ पत्र लिखकर जांच की मांग की थी।
आलोचना फैसलों की अवमानना नहीं:
फैसलों की रचनात्मक आलोचना या व्याख्या या सामान्य आलोचना अदालत का अपमान नहीं है। यदि जजों या अदालत के बारे कहीं गई कोई बात सत्य है तो ये अवमानना के दायरे में नहीं आयेगा।
निचली अदालत कार्यवाही नहीं कर सकती
जिला अदालतों के अपमान पर ये अदालतें खुद अवमानना कार्यवाही नहीं कर सकती। उसके लिए वे अपने संबद्ध हाईकोर्ट को शिकायत भेजती हैं। शिकायत सही पाने पर हाईकोर्ट अवमानना की कार्यवाही करता है।
कैसे होती है अवमानना कार्यवाही
अदालत अवमानना की कार्यवाही स्वतः संज्ञान लेकर कर सकती है। ये अधिकार संविधान अदालतों जैसे सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट को ही है। किसी की शिकायत पर संज्ञान लेकर भी ये कार्यवाही शुरू की जा सकती है। ऐसी कार्यवाही भी स्वत: संगीन वाली मानी जाएगी। पिछले दिनों वकील प्रशांत भूषण पर अवमानना की कार्यवाही एक वकील की शिकायत के आधार पर ही की गई थी। उसमें कोर्ट ने प्रशांत को दंडित किया था और एक रुपये का जुर्माना लगाया था।
दंड और प्रक्रिया
अवमानना याचिका दाखिल होने पर कोर्ट आरोपी को समन जारी करता है जिस पर उसे व्यक्तिगत रूप से पेश होना पड़ता है। इस मामले में अटॉर्नी जनरल चार्जशीट बनाता है और आरोपी का पक्ष सुनने के बाद फैसला दिया जाता है। अवमानना में दोषी ठहराए जाने पर अधिकतम छह महीने की सजा या 2000 हजार रुपये जुर्माना या दोनों किए जा सकते है।
कब होती है अवमानना
- जब अदालत के किसी आदेश/डिक्री/फैसले/ रिट का जनबूझकर पालन नहीं करने पर
- अदालत के आदेश पर ऐसी टिप्पणियां प्रकाशित, प्रसारित करने पर जिनसे उसकी गरिमा को क्षति पहुंची हो
- अदालत को विवाद में घसीटा जाए और पक्षपात का आरोप लगाकर अपमान किया जाए
- फैसलों की आलोचना करते हुए उसे देने वाले सिटिंग जजों का अपमान किया जाए
- अदालत की कार्यवाही में बाधा डालने पर और वादे या आश्वासन से मुकरने पर