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अयोध्या मामले की सुनवाई में सबसे बड़ा रोड़ा हटा

सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को मस्जिद में नमाज के मुद्दे पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि सभी धर्म और धार्मिक स्थलों का समान रूप से सम्मान होना चाहिए। उन्होंने कहा कि मौर्य शासक अशोक के...

अयोध्या मामले की सुनवाई में सबसे बड़ा रोड़ा हटा
नई दिल्ली | विशेष संवाददाताFri, 28 Sep 2018 09:31 AM
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सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को मस्जिद में नमाज के मुद्दे पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि सभी धर्म और धार्मिक स्थलों का समान रूप से सम्मान होना चाहिए। उन्होंने कहा कि मौर्य शासक अशोक के समय के शिलालेखों में भी दूसरे धर्मों के प्रति सहिष्णुता की बात कही गई है।

जस्टिस अशोक भूषण ने कहा कि हमें मस्जिद को लेकर 1994 में पांच जजों की बेंच ने इस्माइल फारुकी के केस में जो फैसला सुनाया था, उसके संदर्भ को देखना होगा। मस्जिद और इस्लाम के बारे में 1994 का संविधान बेंच का फैसला भूमि अधिग्रहण के संदर्भ में था। वहीं, अयोध्या विवाद पर फैसला तथ्यों के आधार पर होगा। इसके लिए पिछले फैसले प्रासंगिक नहीं होंगे।

जस्टिस नजीर ने फैसले से असहमति जताई: पीठ के तीसरे सदस्य जस्टिस एस अब्दुल नजीर ने दोनों जजों से असहमति व्यक्त करते हुए कहा कि धार्मिक आस्था को ध्यान में रखते हुए यह फैसला करना होगा कि क्या मस्जिद इस्लाम का अंग है। इसके लिए विस्तार से विचार की आवश्यकता है।

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जस्टिस नजीर ने मुसलमानों के दाऊदी बोहरा समुदाय में बच्चियों के खतने के मामले में शीर्ष अदालत के हालिया आदेश का जिक्र किया जिसमें यह संविधान पीठ को भेज दिया गया था और कहा कि मौजूदा मामला भी वृहद पीठ को सुनना होगा। न्यायमूर्ति नजीर ने कहा कि 1994 की टिप्पणी ने ही भूमि विवाद मामले में उच्च न्यायालय के फैसले में पैठ बनाई थी। उन्होंने उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एस ए खान की इस टिप्पणी का जिक्र किया कि मस्जिद इस्लाम का अंग नहीं है। मुस्लिम समूह ने इस्माइल फारूकी मामले में 1994 में कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणी को चुनौती दी थी और उस टिप्पणी पर पुनर्विचार करने की मांग की थी जिसमें कहा गया था कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है। मुस्लिम समूह ने पुनर्विचार का अनुरोध किया था कि इसने भूमि विवाद में हाईकोर्ट के फैसले को प्रभावित किया।

अयोध्या विवाद में मस्जिद-नमाज मुद्दा नहीं - सुप्रीम कोर्ट

- 20 जुलाई 2018 को उच्चतम न्यायालय ने फैसला सुरक्षित कर दिया।
- 06 अप्रैल 2018 को उच्चतम न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दायर की गई।

- 03 जजों की पीठ ने मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में इस मामले की सुनवाई की और 1994 के फैसले को बरकरार रखा।

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बांटी थी जमीन

- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद पर फैसले में विवादित जमीन को तीन हिस्से में बांट दिया था।
- अदालत की तीन सदस्यीय पीठ ने 30 सितंबर, 2010 को 2:1 के बहुमत वाले फैसले में कहा था कि 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों निर्मोही अखाड़ा, रामलला विराजमान और सुन्नी वक्फ बोर्ड में बराबर-बराबर बांट दिया जाए।
- इस फैसले के खिालफ सभी पक्ष सुप्रीमकोर्ट आ गए और कोर्ट ने इस फैसले को स्टे कर दिया।

- 29 अक्तूबर से अयोध्या के जमीन विवाद संबंधी मुख्य मामले की सुनवाई शुरू होगी.

क्या था इस्माइल फारूकी फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने 1994 में दिए फैसले में कहा था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है। इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला 1994 के जजमेंट के आलोक में था और 1994 के संवैधानिक बेंच के फैसले को आधार बनाते हुए फैसला दिया था जबकि नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न अंग है और जरूरी धार्मिक गतिविधि है और ये इस्लाम का अभिन्न अंग है।

खास तारीखें 

06 दिसंबर 1992
अयोध्या में कार सेवकों ने एक बड़े आंदोलन के दौरान विवादित बाबरी मस्जिद ढांचे को गिरा दिया।

07 जनवरी 1993
केंद्र ने अध्यादेश लाकर अयोध्या में 67 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर लिया था। इसमें विवादित जमीन का 120 गुणा 80 फीट हिस्सा भी अधिग्रहित कर लिया गया था।.


1993 
केंद्र के इसी फैसले को इस्माइल फारूकी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए अपनी याचिका में कहा था कि किसी धार्मिक स्थल का सरकार कैसे अधिग्रहण कर सकती है। .


1994 
फैसले पर पुनर्विचार करने को सुप्रीम कोर्ट में एक पुनर्विचार याचिका दायर की गई। अयोध्या मामले के एक मूल वादी एम सिद्दीकी ने इस्माइल फारूकी के मामले में 1994 के फैसले के खास निष्कर्षों पर ऐतराज जताया। .

05 दिसंबर 2017
सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा कि नमाज पढ़ने का अधिकार है उसे बहाल करना चाहिए। नमाज धार्मिक प्रैक्टिस है उससे वंचित नहीं किया जा सकता। .

06 जुलाई 2018
यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि कुछ मुस्लिम संगठन 1994 के फैसले पर पुनर्विचार की मांग कर सुनवाई में देरी कराने की कोशिश कर रहे हैं।

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