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ममता बनर्जी के समर्थन में उतरे कांग्रेस सांसद जयराम रमेश, सीतारमण का जवाब- आप तो वहां थे ही नहीं

निर्मला सीतारमण ने कहा, 'जयराम आप तो वहां थे भी नहीं। हम सभी ने माननीय मुख्यमंत्री को सुना। उन्होंने अपने पूरे निर्धारित समय तक बोला। हमारी टेबल के सामने लगी स्क्रीन पर समय दिखता था।'

ममता बनर्जी के समर्थन में उतरे कांग्रेस सांसद जयराम रमेश, सीतारमण का जवाब- आप तो वहां थे ही नहीं
Niteesh Kumar लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीSat, 27 July 2024 04:03 PM
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केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के माइक वाले दावे को गलत बताया है। उन्होंने कहा कि शनिवार को नीति आयोग की बैठक में ममता का माइक्रोफोन बंद किए जाने का दावा सही नहीं है। उन्होंने कहा कि वह (ममता) विपक्षी इंडिया गठबंधन को खुश करने के लिए ऐसा कर रही हैं।  उन्होंने इस मामले पर कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश के सोशल मीडिया पर जारी बयान का भी जवाब दिया। इसमें उन्होंने कहा, 'अब जब वह बाहर बेबुनियाद बातें कह रही हैं, तो मैं केवल यही निष्कर्ष निकाल सकती हूं कि वह इंडिया गठबंधन को खुश रखने की कोशिश कर रही हैं।'

निर्मला सीतारमण ने कहा, 'जयराम आप तो वहां थे भी नहीं। हम सभी ने माननीय मुख्यमंत्री को सुना। उन्होंने अपने पूरे निर्धारित समय तक बोला। हमारी टेबल के सामने लगी स्क्रीन पर समय दिखता था। कुछ दूसरे मुख्यमंत्रियों ने अपने निर्धारित समय से ज्यादा समय तक बात की। उनके अपील पर बिना किसी शोर-शराबे के उन्हें अतिरिक्त समय दिया गया।' उन्होंने कहा कि माइक बंद नहीं किए गए, किसी के लिए नहीं। खास तौर पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के लिए नहीं। ऐसा लगता है कि ममता बनर्जी ने मिथ्या बातें फैलाने का मन बना लिया है।

आखिर जयराम रमेश ने क्या कहा 
दरअसल, कांग्रेस की ओर से कहा गया कि नीति आयोग की बैठक में ममता बनर्जी के साथ जो व्यवहार हुआ है, वो पूरी तरह अस्वीकार्य है। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह दावा भी किया कि नीति आयोग की बैठकें दिखावा मात्र होती हैं। यह संस्था पेशेवर और स्वतंत्र नहीं है। कांग्रेस नेता रमेश ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, '10 साल पहले स्थापित होने के बाद से नीति आयोग प्रधानमंत्री का अटैच्ड ऑफिस रहा है। यह नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री के लिए ढोल पीटने वाले तंत्र के रूप में काम करता है।' उन्होंने दावा किया कि नीति अयोग ने किसी भी रूप में सहकारी संघवाद को मजबूत नहीं किया है। इसका काम करने का तरीका स्पष्ट रूप से पक्षपात से भरा रहा है। यह पेशेवर और स्वतंत्र तो बिल्कुल भी नहीं है। उन्होंने कहा कि यह अलग तरह के और असहमति से भरे सभी तरह के दृष्टिकोणों को दबा देता है, जो एक खुले लोकतंत्र के मूलतत्व हैं। इसकी बैठकें महज दिखावा मात्र की होती हैं।
(एजेंसी इनपुट के साथ)

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