क्या कल होगी निर्भया के दोषियों को फांसी? SC ने खारिज की पवन की याचिका
दिल्ली में साल 2012 में हुए निर्भया गैंगरेप और हत्याकांड मामले में चारों दोषियों को फांसी तीन मार्च को होनी है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दोषी पवन कुमार गुप्ता की क्यूरेटिव याचिका खारिज कर दी। पवन...
दिल्ली में साल 2012 में हुए निर्भया गैंगरेप और हत्याकांड मामले में चारों दोषियों को फांसी तीन मार्च को होनी है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दोषी पवन कुमार गुप्ता की क्यूरेटिव याचिका खारिज कर दी। पवन के वकील ने फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने का अनुरोध करते हुए याचिका दायर की थी।
निर्भया के सभी दोषियों के लगभग सभी कानूनी विकल्प खत्म हो चुके हैं, लेकिन इसके बावजूद भी चारों दोषियों की फांसी तीन मार्च को टल सकती है। पवन गुप्ता के पास अभी दया याचिका का विकल्प बचा हुआ है। पवन की दया याचिका की वजह से निर्भया के सभी दोषियों की फांसी टल सकती है। मालूम हो कि दया याचिका खारिज होने के 14 दिनों बाद ही किसी को फांसी दी जाती है।
2012 Delhi gangrape case: One of the convict Pawan's curative petition has been dismissed by the Supreme Court. The petition had sought commutation of his death penalty to life imprisonment. pic.twitter.com/2KhruqyxVb
— ANI (@ANI) March 2, 2020
वहीं, एक दोषी अक्षय ने पिछले दिनों राष्ट्रपति के समक्ष फिर से दया याचिका दायर की है जबकि राष्ट्रपति अक्षय की इससे पहले दया याचिका खारिज कर चुके हैं। अक्षय के वकील एपी सिंह ने कहा है कि राष्ट्रपति ने जो दया याचिका खारिज की थी वह अपूर्ण थी। इसलिए दोबारा हमने राष्ट्रपति से दया की याचिका की है।
तीन बार जारी हुआ डेथ वारंट
मालूम हो कि दिल्ली की अदालत से चारों दोषियों के खिलाफ तीन बार डेथ वारंट जारी हो चुका है। अदालत ने सबसे पहले सात जनवरी को डेथ वारंट जारी किया, जिसमें फांसी के लिए 22 जनवरी की तारीख तय की गई थी। इसके बाद कोर्ट ने 17 जनवरी और फिर 17 फरवरी को डेथ वारंट जारी किया था। तीसरी बार डेथ वारंट जारी होने के बाद दोषियों के वकील एपी सिंह ने कहा था कि उनके पास अभी कानूनी विकल्प बाकी है और आर्टिकल 21 जीने का अधिकार देता है।
पुन: समीक्षा का कोई मामला नहीं बनता: SC
पवन की क्यूरेटिव याचिका को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति एन वी रमन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि कहा दोषी की दोषसिद्धि और सजा की पुन: समीक्षा का कोई मामला नहीं बनता है। पीठ के अन्य सदस्य न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति आर भानुमति और न्यायमूर्ति अशोक भूषण हैं।