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दार्जिलिंग की चाय के लिए खतरा बनी नेपाली चाय, जानिए क्यों बढ़ रहा है संकट

दार्जिलिंग चाय अपने खास स्वाद और सुगंध के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। इन खासियतों की वजहों से ही इस चाय को जीआई टैग भी मिला है। लेकिन अब पड़ोसी नेपाल से आने वाली...

दार्जिलिंग की चाय के लिए खतरा बनी नेपाली चाय, जानिए क्यों बढ़ रहा है संकट
Admin डॉयचे वेले, दिल्लीFri, 15 Oct 2021 05:08 AM
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दार्जिलिंग चाय अपने खास स्वाद और सुगंध के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। इन खासियतों की वजहों से ही इस चाय को जीआई टैग भी मिला है। लेकिन अब पड़ोसी नेपाल से आने वाली ‘घटिया’ क्वॉलिटी की चाय इसकी पहचान के लिए खतरा बन रही है। नेपाल से मुक्त व्यापार समझौते के तहत आने वाली चाय भारतीय बाजारों में दार्जिलिंग चाय के नाम पर बेची जा रही है। दार्जिलिंग के चाय उत्पादकों ने इस समस्या पर अंकुश लगाने के लिए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के अलावा टी बोर्ड को भी पत्र भेजा है। कुछ उत्पादकों का आरोप है कि नेपाल चीन से आयातित घटिया किस्म की चाय भारतीय बाजारों में भेज रहा है। नेपाल से चाय की बढ़ती आवक और उपलब्धता ने प्रतिष्ठित दार्जिलिंग चाय की कीमतों पर सीधा असर डाला है।

एक साल के दौरान इसकी कीमतों में 20 से 25 प्रतिशत तक की गिरावट आई है। उद्योग से जुड़े लोगों का आरोप है कि खास तौर पर व्यापारियों का एक तबका नेपाल की चाय को दार्जिलिंग चाय के रूप में बेच रहा है। कानूनी तौर पर मुक्त व्यापार समझौते के तहत भारत में कोई भी नेपाल से स्वतंत्र रूप से चाय का आयात कर सकता है। हालांकि थोक बिक्री में दार्जिलिंग चाय की कीमत प्रति किलोग्राम औसतन 320 से 360 रुपये के बीच रहती है। लेकिन नेपाल की परंपरागत किस्म वाली चाय की कीमत इसकी आधी से भी कम होती है।

क्यों ग्राहक नहीं पहचान पाते कि वह कौन सी चाय पी रहे हैं

दार्जिलिंग में बागान चलाने वाली एक चाय कंपनी के एक अधिकारी बताते हैं, 'उपभोक्ता के लिए यह समझना संभव नहीं होता कि वह नेपाल की चाय पी रहा है या दार्जिलिंग की। इन दोनों का स्वाद और सुगंध काफी हद तक समान होता है।' उद्योग के सूत्रों का कहना है कि हर साल करीब 1.6 करोड़ किलोग्राम नेपाली चाय भारत में आती है जिसमें से लगभग 30 से 40 लाख किलोग्राम चाय परंपरागत किस्म वाली होती है। चाय की यह किस्म दार्जिलिंग चाय की बिक्री को प्रभावित करती है। स्वाद, सुगंध और दिखने के लिहाज से नेपाल की खास तौर पर इलाम किस्म वाली चाय दार्जिलिंग चाय की नजदीकी विकल्प होती है। 

नेपाली चाय पर रोक लगाना क्यों हो रहा है मुश्किल

दार्जिलिंग के 87 चाय बागान सालाना 80-85 लाख किलो चाय का उत्पादन करते हैं। इस उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि वर्ष 2017 में दार्जिलिंग में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के आंदोलन के चलते चाय बागान चार महीने बंद रहे थे। उसी दौरान भारत में नेपाली चाय की बिक्री बढ़ गई थी। डीटीए के अध्यक्ष बीके सरिया कहते हैं, 'नेपाली चाय पर रोक लगाना मुश्किल है, क्योंकि नेपाल के साथ भारत का फ्री-ट्रेड एग्रीमेंट है।' उन्होंने कहा कि हमने टी बोर्ड से नेपाली चाय पर निगरानी बढ़ाने को कहा है ताकि घरेलू बाजार में उसे दार्जिलिंग चाय के नाम पर बेचा न जा सके। वह बताते हैं कि वर्ष 2017 में अनियमित सप्लाई के बाद जापानी खरीददारों ने भी हाथ खींच लिए। वे पहले 10 लाख किलो दार्जिलिंग टी खरीदते थे। टी एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय से नेपाली चाय के बढ़ते दबदबे की वजह से दार्जिलिंग चाय की बिक्री और उसकी साख को होने वाले नुकसान का मुद्दा उठाते हुए इस समस्या पर अंकुश लगाने की दिशा में ठोस पहल करने की अपील की है।

नेपाल में पैदा होने वाली आधी चाय का भारत में होता है निर्यात

नेशनल टी ऐंड कॉफी डेवलपमेंट बोर्ड नेपाल के आंकड़ों के मुताबिक, देश (नेपाल) के 157 चाय बागानों में सालाना पैदा होने वाली 2.52 करोड़ किलोग्राम चाय का आधे से ज्यादा हिस्सा भारत को निर्यात कर दिया जाता है। दार्जिलिंग इलाके के 87 चाय बागान मालिकों के संगठन दार्जिलिंग टी एसोसिएशन (डीटीए) ने हाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को पत्र भेज कर उद्योग को बचाने के लिए नेपाल से आयात होने वाली सस्ती और घटिया किस्म की चाय के आयात पर पूरी तरह पाबंदी लगाने की मांग की है। संगठन के अध्यक्ष बीकेसरिया ने पत्र में कहा है, "वर्ष 2017 में पर्वतीय क्षेत्र में आंदोलन की वजह से दार्जिलिंग चाय का उत्पादन 9.5 मिलियन किलो से घटकर 2020 में छह मिलियन किलो रह गया। इस दौरान कर्मचारियों का वेतन करीब 50 फीसदी बढ़ गया" उसके बाद कोरोना के कारण लॉकडाउन के दौरान घरेलू और विदेशी बाजारों पर असर पड़ा।

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