ट्रेंडिंग न्यूज़

Hindi News देशनीतीश कुमार के फैसले से गिरी नहीं लड़खड़ाई है भाजपा, सियासी 'आपदा' में बने ये 4 'अवसर'

नीतीश कुमार के फैसले से गिरी नहीं लड़खड़ाई है भाजपा, सियासी 'आपदा' में बने ये 4 'अवसर'

Bihar Politics: मुद्दों पर मतभेद होने का ताजा उदाहरण अग्निपथ योजना के दौरान बिहार में हुए हंगामे के दौरान देखने को मिला। खास बात है कि केंद्र सरकार के इस फैसले को लेकर नीतीश ने चुप्पी साध रखी थी।

नीतीश कुमार के फैसले से गिरी नहीं लड़खड़ाई है भाजपा, सियासी 'आपदा' में बने ये 4 'अवसर'
Nisarg Dixitलाइव हिंदुस्तान,नई दिल्लीWed, 10 Aug 2022 01:00 PM

इस खबर को सुनें

0:00
/
ऐप पर पढ़ें

बिहार में भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड यानी नीतीश कुमार की राहें अलग हो चुकी हैं। उन्होंने राष्ट्रीय जनता दल समेत कई अन्य पार्टियों के साथ मिलकर सियासत चलाने का फैसला किया है। कहा जा रहा है कि इससे भाजपा को बड़ी चोट पहुंची हैं, लेकिन अगर मौजूदा सियासी हाल को देखें तो थोड़े समय के लिए मुश्किल में आई बीजेपी के लिए बिहार में कई फायदे भी इंतजार कर रहे हैं।

पहला फायदा, चुनाव में ज्यादा सीटों पर लड़ सकेगी भाजपा
बिहार विधानसभा की 243 सीटों में से साल 2020 में भाजपा ने 110 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। जबकि, उस दौरान जदयू के 115 नेता मैदान में थे। वहीं, 2010 में भाजपा को चुनाव लड़ने के लिए केवल 102 सीटें मिली थीं, लेकिन नीतीश की पार्टी ने 141 सीटों पर दावेदारी पेश की थी। अब जब पार्टी बगैर नीतीश के साथ के चुनाव में उतरेगी, तो उसके पास सीटों का दायरा भी बढ़ जाएगा।

अचानक साथ नहीं आए नीतीश कुमार - तेजस्वी यादव, 2020 चुनाव से बदले हालात; मिल रहे थे 4 संकेत

दूसरा फायदा, सत्ता विरोधी लहर से कुछ राहत
जदयू के पूर्व प्रवक्ता डॉक्टर अजय आलोक मंगलवार रात ट्वीट करते हैं, 'एक अनैतिक व्यक्ति द्वारा गठबंधन तोड़े जाने पे भाजपा  को अफ़सोस नहीं करना चाहिए बल्कि कल बिहार में लड्डू बंटवाने चाहिए क्यों इस सरकार की विफलता का ठीकरा अब आपके सर नहीं फूटेगा। अपने अंत की और अग्रसर आदमी का आप कुछ नहीं कर सकते।'

2017 में नीतीश ने महागठबंधन से नाता तोड़कर बीजेपी से हाथ मिलाया था। बिहार में नीतीश कुमार और भाजपा की सरकार को 5 वर्ष हो चुके हैं। इस लिहाज से इस जोड़ी को सरकार चलाते हुए साल 2024 तक 7 साल हो जाते। ऐसे में नीतीश के शासन से अलग होकर भाजपा के सिर से राज्य में सत्ता विरोधी लहर की परेशानी भी कुछ हद तक दूर हो सकती है।

नीतीश कुमार के पालाबदल पर बोले प्रशांत किशोर, 115 विधायकों वाली पार्टी अब 43 पर आ गई

तीसरा फायदा, अपने मुद्दों पर खुलकर बात करेगी भाजपा
मुद्दों पर मतभेद होने का ताजा उदाहरण अग्निपथ योजना के दौरान बिहार में हुए हंगामे के दौरान देखने को मिला। खास बात है कि केंद्र सरकार के इस फैसले को लेकर नीतीश ने चुप्पी साध रखी थी। जबकि, पूरे राज्य में सशस्त्र बलों में भर्ती के लिए लाई गई इस नई प्रक्रिया का विरोध हो रहा था। इसके अलावा कहा जाता है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर भी जदयू की राय भाजपा से अलग है। अब जदयू के अलग होने के बाद एनडीए की अगुवा भाजपा अपनी नीतियों पर स्वतंत्र महसूस कर सकती है।

चौथा फायदा, बढ़ेगा सियासी कद
प्रदर्शन के मुकाबले में बीते कुछ विधानसभा चुनावों में भाजपा का प्रदर्शन जदयू से अच्छा रहा है। साल 2010 में भाजपा ने 102 सीटों में से 91 पर जीत हासिल की थी। जबकि, 141 सीटों पर उतरी जदयू 115 पर जीती थी। हालांकि, 2015 विधानसभा चुनाव में भाजपा को 157 में से 53 पर जीत मिली और जदयू 101 में से 71 पर जीती थी।

2020 विधानसभा चुनाव में 110 सीटों पर उतरी भाजपा को 74 पर जीत मिली। वहीं, नीतीश की पार्टी को 115 में से महज 43 सीटों पर ही जीत मिली थी। अगर आगामी लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भाजपा का प्रदर्शन ठीक रहता है, तो अब तक नीतीश के नेतृत्व में सरकार में शामिल रही भाजपा का सियासी कद बढ़ने में मदद मिलेगी।

भाजपा के सामने एक चुनौती भी
बेहतर चुनावी प्रदर्शन के बाद पार्टी के पास नीतीश जितने कद का बड़ा नेता नहीं है। जानकार कहते हैं कि जदयू नेता ने राज में काम करने के बीच भाजपा अपना खुद का बड़ा नेता स्थापित करने में असफल रही है। हालांकि, अब पार्टी के पास यह मौका भी है।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें