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'हाथ खुद में हो सकता है हथियार' जानें नवजोत सिंह सिद्धू को सजा सुनाते वक्त SC ने क्या कहा

नवजोत सिंह सिद्धू को 1988 के रोडरेज के एक मामले में एक साल की सजा सुनाई गई है। सजा सुनाने से पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक संस्कृत श्लोक सुनाया। कोर्ट ने कहा कि गुस्से में हाथ भी हथियार हो जाता है।

'हाथ खुद में हो सकता है हथियार' जानें नवजोत सिंह सिद्धू को सजा सुनाते वक्त SC ने क्या कहा
लाइव हिंदुस्तान,नई दिल्लीThu, 19 May 2022 10:28 PM

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कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू को सुप्रीम कोर्ट ने रोडरेज के एक मामले में 1 साल कैद की सजा सुनाई है। यह मामला 1988 का है। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट पहले सिद्धू पर एक हजार रुपये का जुर्माना लगा चुका था। हालांकि पीड़ित परिवार इससे संतुष्ट नहीं था और उसने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका फाइल की थी। साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने सिद्धू को इस मामले में दोषी पाया था लेकिन केवल एक हजार का जुर्माना लगाकर छोड़ दिया था।

प्रॉसिक्यूशन के मुताबिक सिद्धू और रूपिंदर सिंह सांधू पटियाला में शेरांवाला गेट के पास बीच रोड पर खड़ी जिप्सी में बैठे थे। तभी 65 साल के गुरनाम सिंह और दो अन्य लोग वहां पहुंच गए। गुरनाम सिंह कार चला रहे थे। उन्होंने सिद्धू से कार हटाने को कहा। इसे बाद बहस होने लगी। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस एसके कौल की बेंच ने 24 पेज का फैसला सुनाया। 

बेंच ने कहा, गुस्सा किसी को भी आ सकता है लेकिन फिर गुस्से के दुष्परिणाम उठाने केलिए भी तैयार रहना चाहिए। जब किसी की चोट लगने की वजह से मौत हो जाए तो सजा में कमी नहीं करना चाहिए, इसके अलावा ट्रायल में भी देरी नहीं करनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि जिस व्यक्ति की मौत हुई है वह भी 65 साल का था, उस वक्त सिद्धू की उम्र उसकी आधी रही होगी। 

कोर्ट ने कहा, जब एक 25 साल का इंटरनैशनल क्रिकेटर अपने से दोगुनी उम्र के व्यक्ति पर खाली हाथ से भी वार करता है तो उसके सिर पर चोट लग सकती है। ऐसे में कई अनचाहे नुकसान भी हो सकते हैं। हाथ खुद अपने में आप में हथियार की तरह काम कर सकता है। इस मामले में देखा जा सकता है कि पीड़िता लाचार और असुरक्षित था। 

सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि केवल जुर्माना लगाकर सिद्धू को बिना कोई सजा दिए छोड़ना ठीक नहीं था। उनपर रहम नहीं दिखाना चाहिए था। हल्की सजा मिलने पर पीड़ित निराश होता है। जो व्यक्ति घायल है उसपर ध्यान देना चाहिए वरना उसका न्याय प्रणाली में विश्वास खत्म हो जाएगा। 

कोर्ट ने संस्कृत श्लोक का दिया हवाला
कोर्ट ने संस्कृत के एक श्लोक का हवाला दिया और कहा, प्राचीन धर्मशास्त्र कहते हैं कि पापी को उसकी उम्र, समय और शारीरिक क्षमता के अनुसार दंड देना चाहिए। दंड ऐस न हो कि उसकी मृत्यु हो जाए बल्कि दंड ऐसा हो जो उसके विचार को शुद्ध कर सके। अपराधी के प्राणों को संकट में डालने वाला दंड देना उचित नहीं है। 

क्या है वह श्लोक

यथावयो यथाकालं यथाप्राणं च ब्राह्मणे।
प्रायश्चितं प्रदातव्यं ब्राह्मणैर्धपाठकैं।।
येन शुद्धिमवाप्रोति न च प्राणैर्विज्युते।
आर्ति वा महती याति न चैतद् व्रतमहादिश।।

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