बीजेपी ने पीडीपी से तोड़ा नाता: अर्श पर भी अकेली, फर्श पर भी अकेली महबूबा
जम्मू कश्मीर में बीजेपी की समर्थन वापसी के बाद आखिरकार महबूबा मुफ्ती को मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके साथ ही पिछले करीब 40 महीने से चला आ रहा बीजेपी-पीडीपी गठबंधन खत्म होने बाद...
जम्मू कश्मीर में बीजेपी की समर्थन वापसी के बाद आखिरकार महबूबा मुफ्ती को मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके साथ ही पिछले करीब 40 महीने से चला आ रहा बीजेपी-पीडीपी गठबंधन खत्म होने बाद वहां पर राज्यपाल शासन शुरू हो चुका है। लेकिन, इन सबसे इतर जब बात इस गठबंधन से महबूबा के नफा और नुकसान की है तो उसके लिए आपको पृष्ठभूमि में जाना होगा कि आखिर किन मुद्दों पर पीडीपी ने घाटी में चुनाव लड़ा था और इस वक्त वे कहां पर खड़ी है। आइये शुरू 2014 के विधानसभा चुनाव से करते हैं-
जिस वक्त महबूबा मुफ्ती साल 2014 के विधानसभा का प्रचार कर रही थी, वह एक बात को लेकर बिल्कुल साफ थी कि किसी भी कीमत पर भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करना है। उन्होंने कहा था- “बीजेपी के साथ गठबंधन का सवाल ही नहीं उठता। हमारे बीच कुछ भी कॉमन नहीं है।”
‘महबूबा क्यों हमेशा पहनती है काला चश्मा’
चुनाव प्रचार के दौरान जब भी महबूबा अपनी कार से उतरती वह काला चश्मा लगाए बाहर निकलती। हमारे अंदर ये बात जानने की उत्सुकता थी। इसलिये हमने जब उनसे पूछा कि आखिर क्यों हमेशा वह काला ग्लास लगाती हैं? क्यों नहीं अपने विधानसभा क्षेत्र के लोगों के साथ सीधे आंख में आंख मिलाकर बात करती हैं? तो इसके जवाब में महबूबा ने कहा- “लोग हमारे ऊपर टॉफियां फेंकते हैं, ऐसे में कहीं चोट ना लग जाए इसलिए एहतियात के तौर पर मैं ऐसा करती हूं।”
बीजेपी के खिलाफ था महबूबा का चुनाव प्रचार
जल्द ही लोगों के हाथ की यह टॉफी पत्थर में बदल गया। महबूबा हर रैली में जाकर मतदाताओं से यह अपील करती थी- “बड़ी तादाद में घरों से बाहर निकलकर वोट दें ताकि यह जरूरी है कि बीजेपी घाटी में अपना खाता ना खोल पाए।” जैसे ही चुनाव के नतीजे आए पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने कई दलों के साथ गठबंधन पर बातचीत की।
तेज़ तर्रार पॉलिटिशियन महबूबा फौरन उन लोगों परिजनों तक पहुंच जाती थी जिनके यहां पर किसी की जान चली जाती थी या कोई गंभीर रूप से घायल हो जाता था। उन्हें घाटी में अलग-थलग पड़ी पार्टी को उठाने का जरूर क्रेडिट दिया जाना चाहिए। महबूबा में यह राजनीतिक सूझबूझ थी जिसकी बदौलत उन्होंने एक से ज्यादा बार पार्टी को चुनाव में जीत दिलाई।
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क्यों फेल हुई महबूबा मुफ्ती
लेकिन, उनका राजनीतिक जादू उस वक्त फीका पड़ गया जब उन्होंने राज्य में बीजेपी के साथ सत्ता में साझेदारी की।उनके पास यह मौका था पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन के बाद नुकसान की क्षतिपूर्ति करे। लेकिन उन्होंने राज्य की राजनीति के केन्द्र में आते हुए जम्मू कश्मीर की पहली महिला मुख्यमंत्री पद का शपथ लिया। जिसके बाद राज्य में अलगाववादियों के प्रति नरम रुख रखने वाली महबूबा को कश्मीर में ‘अल्ट्रानेशनलिस्ट’ कहा जाने लगा।
महबूबा के हाथों निकला दक्षिणी कश्मीर
पाकिस्तान के साथ सीमा पर शांति की पैरोकार करने और राज्य में आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर्स एक्ट (आफ्सपा) को हटाने की वकालत कर राजनीतिक फायदा लेनेवाली महबूबा के पैरों के नीचे से जल्द ही उसके मजबूत गढ़ दक्षिण कश्मीर निकलते हुए दिखाई दिया। जिसकी पहली बानगी उनके पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद की अंतिम विदाई के वक्त दिखाई दी जब काफी कम लोग शरीक हुए थे।
दक्षिण कश्मीर बना आतंकियों का नया गढ़
दक्षिण कश्मीर अब नए आतंकियों का गढ़ बन चुका है। यह वो इलाका है जहां से आतंकी बुरहान वानी को सफाया किया गया। ये वो पर्वतीय इलाका है जहां पर सबसे ज्यादा युवा गायब हो रहे हैं और हाथों में बंदूक थामें सोशल मीडिया पर प्रकट हो रहे हैं। पैलेट गन के छर्रों के बीच उनके पार्टी से नेताओं ने एक बार को यह सलाह दी कि उसे अपनी सहयोगी बीजेपी के साथ गठबंधन खत्म कर लेना चाहिए। उनके एक सहयोगी ने बताया कि जब पिछले साल एक सहयोगी ने उनसे पूछा कि उन्होंने इस्तीफा क्यों नहीं दिया तो वो आश्चर्य के भाव से देखने लगी।
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महबूबा ने माना- फैसले में बहुत हो गई देर
महबूबा मुफ्ती ने इस बात का एहसास किया कि अब काफी देर हो चुकी है। ना ही महबूबा खुद और ना ही उनके चुने गुए विधायक पत्थरबाजों या हमले से बेखौफ होकर अपने विधानसभा क्षेत्र में जाने की हिम्मत जुटा पा रहे थे। बुरहानी वानी की साल 2016 में मौत के बाद गुस्साए लोगों का यही कहना था- “कहां पर है महबूबा? उन्हें यहां भेजो। हम यह पूछना चाहते हैं कि क्यों हमसे वोट मांगा और उसके बाद जाकर बीजेपी के साथ मिल गई।”
महबूबा के चलते बीजेपी के दो मंत्रियों को देना पड़ा था इस्तीफा
महबूबा को अब हर कदम पर अपनी सहयोगी सवाल पूछा जाने लगा और उसका विरोध होने लगा। जब महबूबा ने अलगाववादियों और पाकिस्तान बातचीत की बात कही तो उन्हें धमकी दी गई। लेकिन, जब कठुआ गैंगरेप और हत्या का मामला सामने आया। उसके बाद उन्होंने अपना स्टैंड लिया जिसके चलते बीजपी के दो मंत्रियों को इस्तीफा देना पड़ा जो अपराध के संदिग्ध के बचाव में आयोजित रैली में हिस्सा लेने गए थे।
महबूबा सबसे बड़ी पॉलिटिकल लूजर
आखिर में, उनके सहयोगी ने राजनीतिक खेल में महबूबा को मात दे दी। बीजेपी ने उस वक्त गठबंधन सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया जब महबूबा इसकी ना के बराबर उम्मीद कर रही थी। बीजेपी ने अपने इस राजनीतिक फायदे की उम्मीद से ऐसा कदम उठाया है ताकि जम्मू में अपने आपको बचा सके जहां पर उसने 25 सीटों पर शानदार जीत दर्ज की है। ऐसे में महबूबा इस वक्त राजनीतिक रूप से सबसे बड़ी लूजर हैं। वह अर्श पर भी अकेली थी और फर्श पर भी अकेली हैं।
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