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भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु एक विचार के रूप में जिंदा रहेंगे, कुछ यूं शहीदों को याद कर रहा देश

भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु एक विचार के रूप में जिंदा रहेंगे, कुछ यूं शहीदों को याद कर रहा देश
लाइव हिंदुस्तान,नई दिल्लीWed, 23 Mar 2022 01:41 PM

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देश के लिए हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूमने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को आज उनकी शहादत के लिए याद किया जा रहा है। 23 मार्च 1931 में इन तीनों भारत के सपूतों ने मां भारती के लिए प्राणों की आहुति दे दी थी। बेबद कम उम्र में उन्होंने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया था। इस मौके पर प्रधानमंत्री मोदी समेत कई राजनेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी है। 

प्रधानमंत्री मोदी ने ट्विटर पर लिखा, 'शहीद दिवस पर भारत माता के अमर सपूत वीर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को कोटि-कोटि नमन। मातृभूमि के लिए मर मिटने का उनका जज्बा देशवासियों को सदैव प्रेरित करता रहेगा। जय हिंद!'

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तीनों शहीदों की देशभक्ति को सलाम किया। उन्होंने कहा, 'विदेशी शासन के दौरान आजादी की अलग जगाने में इन तीनों शहीदों का अमूल्य योगदान है। आज भी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु युवाओं के प्रेरणास्रोत हैं।'

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट किया, 'देश के स्वतंत्रता आंदोलन के अमर प्रतीक शहीद भगत सिंह, सुखदेव एवं राजगुरु के शहीदी दिवस पर मैं उन्हें कोटि-कोटि नमन करता हूं। देश के इन वीरों के अमर बलिदान का हर देशवासी सदा ऋणी रहेगा।'

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को याद करते हुए कहा, ये तीनों एक विचार बन गए हैं और हमेशा जीवित रहेंगे। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु वो विचार हैं जो सदा अमर रहेंगे।  जब-जब अन्याय के ख़िलाफ़ कोई आवाज़ उठेगी, उस आवाज़ में इन शहीदों का अक्स होगा।  जिस दिल में देश के लिए मर-मिटने का जज़्बा होगा, उस दिल में इन तीन वीरों का नाम होगा

कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने मांग की है कि चंडीगढ़ इंटरनेशनल एयरपोर्ट का नाम शहीद भगत सिंह के नाम पर रखा जाए। उन्होंने पंजाब के सीएम भगवंत मान और अमित शाह ने इसको लेकर अपनी मांग रखी है। बता दें कि दिसंबर 1928 को भगत सिंह, राजगुरु औऱ सुखदेव ने मिलकर लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने के लिए ब्रिटिश अधिकारी जेम्स स्कॉट को लाहौर में मारने की योजना बनाई थी। 

गलती से इन तीनों युवाओं के हमले ममें सुपरिंटेंडेंट ऑफ पुलिस जॉन सॉन्डर्स की जान चली गई। इसके बाद तीनों सेनानियों को 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी गई।

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