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ST का दर्जा, पहाड़ और घाटी का संघर्ष; डिटेल में समझें क्यों जल रहा है मणिपुर

मणिपुर में हालिया विवाद आदिवासी दर्जे को लेकर शुरू हुआ है। राज्य के बहुसंख्यक मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का प्रस्ताव रखा गया है। इसी के विरोध में आदिवासियों में गुस्सा है।

ST का दर्जा, पहाड़ और घाटी का संघर्ष; डिटेल में समझें क्यों जल रहा है मणिपुर
Surya Prakashलाइव हिन्दुस्तान,नई दिल्ली इम्फालFri, 05 May 2023 10:01 AM
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मणिपुर में आदिवासी और मेइती समुदाय के बीच छिड़ी हिंसा ने राज्य में इमरजेंसी जैसे हालात पैदा कर दिए हैं। राज्य सरकार ने 8 जिलों में कर्फ्यू लगा दिया है और 5 दिनों के लिए मोबाइल इंटरनेट बंद है। गृह मंत्री अमित शाह भी हालात संभालने के लिए बैठकें कर रहे हैं। हालात इतने विकट हैं कि राज्य पुलिस के अलावा कई इलाकों में सेना और अर्धसैनिक बलों के जवान भी तैनात किए गए हैं। यहां तक कि दंगाइयों को देखते ही गोली मारने के आदेश दिए गए हैं। हालांकि हालात इसके बाद भी नहीं सुधर रहे और एक जगह तो लोगों ने भाजपा विधायक के साथ भी हिंसा की है। आइए जानते हैं, आखिर क्यों जल रहा मणिपुर...

यह पूरा विवाद आदिवासी दर्जे को लेकर शुरू हुआ है। राज्य के बहुसंख्यक मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का प्रस्ताव रखा गया है। इसी के विरोध में आदिवासियों में गुस्सा है और हजारों की संख्या में लोग हर जिले में सड़कों पर उतर आए हैं। मैतेई समुदाय के लोगों की राज्य में आबादी 53 फीसदी के करीब है और ज्यादातर इम्फाल घाटी में ही रहते हैं। फिलहाल हिंसा के लिए कोई आधिकारिक कारण सामने नहीं आया है, लेकिन एक वजह यह बताई जा रही है कि मार्च के दौरान एंग्लो कूकी वॉर मेमोरियल गेट पर आग लगा दी गई, जिससे लोगों में गुस्सा है।

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राज्य के प्रभावशाली संगठन ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर से जुड़े लोगों का कहना है कि मार्च तो शांति से पूरा हो गया था, लेकिन जब मेमोरियल में आग लगा दी गई तो लोगों का गुस्सा भड़क गया। इसके बाद मैतेई और आदिवासी आमने-सामने आ गए। इस हिंसा के दौरान मैतेई समुदाय से जुड़े लोगों की संपत्तियों और वाहनों को निशाना बनाया गया। खबर है कि चर्चों और कूकी समुदाय के लोगों के घरों और कारोबारी प्रतिष्ठानों पर भी हमले हुए हैं। इम्फाल और अन्य गैर-आदिवासी इलाकों में भी हिंसा का दौर चला है। 

कहां बसे हैं मैतेई और क्यों आदिवासी उनके खिलाफ

इसके अलावा उन क्षेत्रों में भी हिंसा हुई है, जहां मैतेई समुदाय के लोग अल्पसंख्यक हैं। मैतेई समुदाय के लोगों की ज्यादा आबादी इम्फाल घाटी में है, जो हिंदू हैं। इसके अलावा कूकी और नागाओं की आबादी पहाड़ी जिलों में अधिक है, जिनमें से ज्यादातर लोग ईसाई धर्म के अनुयायी हैं। मणिपुर की समझ रखने वालों का कहना है कि राज्य में घाटी और पहाड़ी के बीच का डिविजन भी रहा है, जो एक बार फिर से उभरा है। मैतेई समुदाय के लोग ज्यादातर इम्फाल वैली में बसे हैं, जो राज्य के 10 फीसदी हिस्से के बराबर है। 

विधानसभा में भी इम्फाल घाटी का बहुमत, आदिवासियों का कम

इसके अलावा नागा और कूकी जो राज्य की 40 फीसदी आबादी हैं, वे पहाड़ी इलाकों में रहते हैं, जिसके तहत मणिपुर का करीब 90 फीसदी क्षेत्र आता है। मैतेई और आदिवासियों के बीच असंतोष नया नहीं है। राजनीतिक प्रतिनिधित्व को लेकर भी आदिवासी वर्गों में असंतोष रहा है। राज्य में कुल 60 विधानसभा सीटें हैं और 40 अकेले इम्फाल घाटी क्षेत्र से आती हैं। इस तरह मैतेई समुदाय के लोगों की संख्या असेंबली में अधिक है। 

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