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तमिल मानस पर छाए गांधी

वर्ष 1894 में बालासुंदरम नामक गिरमिटिया मजदूर, जिसके दांत उसके यूरोपीय मालिक ने तोड़ डाले थे, के अनुबंध को सफलतापूर्वक स्थानांतरित करवाकर मोहनदास करमचंद गांधी दक्षिण अफ्रीका के नटाल में बसे हजारों...

तमिल मानस पर छाए गांधी
लाइव हिन्दुस्तान टीम,नई दिल्ली Sat, 21 Sep 2019 09:36 AM
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वर्ष 1894 में बालासुंदरम नामक गिरमिटिया मजदूर, जिसके दांत उसके यूरोपीय मालिक ने तोड़ डाले थे, के अनुबंध को सफलतापूर्वक स्थानांतरित करवाकर मोहनदास करमचंद गांधी दक्षिण अफ्रीका के नटाल में बसे हजारों भारतीय मजदूरों के मसीहा बन गए थे। उसके बाद मद्रास प्रेसीडेंसी के कई गिरमिटिया न केवल नटाल इंडियन कांग्रेस में शामिल हुए, बल्कि दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह का शक्ति स्तंभ भी बने। दक्षिण अफ्रीका में उनके तमिल क्लर्क विंसेंट लजारस और उसके कर्मचारियों की बदौलत गांधी जी ने प्राचीन तमिल साहित्य, जैसे ‘तिरुकुरल’ को पढ़ा और उसके आरम (धर्म) को अहिंसावादी संघर्षों में अपनाया।

उधर दक्षिण अफ्रीका में गुजराती व्यापारियों ने अपने व्यापार को बचाने के लिए पृष्ठभूमि में रहकर गांधी को समर्थन देना चुना, ऐसे में तमिल व तेलुगूभाषी श्रमिकों ने ही सत्याग्रह को आगे बढ़ाया। वर्ष 1896 में गांधी कावेरी के डेल्टा में तरंगमपदी के समुद्र किनारे बसे गांव में सत्याग्रह के शहीदों की विधवाओं से मिलने गए तो उन्होंने श्रमिकों के योगदान को स्वीकार किया। यह पहले ट्रांकबार नामक दानिश बंदरगाह था, जहां से भारत से बड़ी संख्या में गिरमिटिया श्रमिक दक्षिण अफ्रीका के उपनिवेशों में पानी के जहाज से भेजे जाते थे।  

मदुरै का भिक्षु
सितंबर 22, 1921 के दिन मदुरै में, गांधी ने खादी कुर्ते और धोती के बजाय लंगोट धारण की, जो एक गज खादी के कपड़े की थी और चर्चिल ने उन्हें ‘अर्धनग्न फकीर’ तक कहा था। मदुरै में गांधी फकीर बन गए, यह बात तमिलों के लिए खास संकेत लिए हुए थी। ए रामासामी ने 1969 की किताब ‘तमिलनाटिल गांधी’ (तमिलनाडु में गांधी) में लिखा, ‘मदुरै महान मानिकावसागर (नौवीं शताब्दी के तमिल कवि, जिन्होंने तिरुवसकम नामक शिवभक्ति स्त्रोत रचा था)’ का शहर था, जिन्होंने शिव को भिक्षुओं का देवता बताया। यह एकदम सटीक बैठा कि उन्होंने गरीबों के गरीब के नेता के तौर पर भिक्षु का चोला धारण किया।’

मदुरै गांधीवादी गतिविधियों का बड़ा केंद्र बन गया। तमिलनाडु गांधी स्मारक निधि के अध्यक्ष और सर्वोदय आंदोलन में लंबे समय तक विनोबा भावे के साथी रहे केएम नटराजन ने जब 1946 में मदुरै में गांधी को देखा था, तब वे हाईस्कूल के छात्र थे। उन्होंने बताया,‘मुझसे कहा गया था कि वहां लगभग पांच लाख लोग उन्हें देखने आए थे, हालांकि उन्होंने सभा को संबोधित नहीं किया, लेकिन लोग उन्हें भगवान मानते थे और उनके दर्शन से ही संतुष्ट थे।’

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उसी यात्रा की बात है कि गांधी ने मदुरै के मीनाक्षीअम्मन मंदिर जाना स्वीकार किया, जब दशकों लंबे संघर्ष के बाद दलितों व निम्न जातियों को वहां प्रवेश की अनुमति मिली।
1930 में गांधी ने 15वीं सदी में हुए अपने प्रिय गुजराती भक्तिकालीन कवि नरसी मेहता से प्रेरित होकर दलितों को हरिजन (ईश्वर के बच्चे) कहना शुरू किया लेकिन उनका प्रभाव इतना गहरा था कि बहुत पहले से ही दक्षिण भारत अस्पृश्यता आंदोलन का गढ़ बन गया था।

1920 के आरंभ में गांधी अनुयायी ए.वैद्यनाथ अय्यर ने दलितों के मंदिरों में प्रवेश हेतु संघर्ष शुरू किया। 1938 में मद्रास प्रेसीडेंसी में हरिजन छात्रावास सेवालय बना। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गांधी की कोर टीम में सी. राजगोपालाचारी के अलावा नेहरू, पटेल, राजेंद्र प्रसाद और अबुल कलाम आजाद शामिल थे। 1916 के आरंभ में राजाजी ने ‘इंडियन रिव्यू’ में भारत के नाम गांधी का संदेश देते हुए लंबा लेख लिखा, जिसमें हिंदू-मुसलिम एकता व अहिंसा पर बल दिया गया था। सलेम में वकालत करने वाले राजाजी 1919 में गांधी से मिले तो इतने प्रभावित हुए कि न केवल गांधी के दक्षिणी सेनापति बने बल्कि गांधी ने उन्हें अपने अंत:करण का रक्षक भी कहा।

गांधी और पेरियार
कई लोग सामाजिक न्याय के संबंध में गांधी के सामने ईवी रामासामी (पेरियार) और बीआर आंबेडकर को खड़ा करते हैं। इस दृष्टि से पेरियार अपने दलों द्रविड़ कषगम (डीके)-द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (डीएमके), ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुन्नेत्रा कषगम (एआईडीएमके) की परंपरा के रूप में जीवित हैं, जो तमिलनाडु में 1967 में सत्ता में आए। वास्तव में राजाजी जैसे लोग टैंपल एंट्री बिल के निर्माता थे। राजाजी यरवदा जेल में गांधी से मिलने गए, ताकि सविनय अवज्ञा आंदोलन में थोड़ी  छूट मिल सके और मंदिर प्रवेश को लेकर काम कर सकें। गांधी ने उनसे कहा कि अगर वे सफलता को लेकर आश्वस्त हैं तो अवश्य इस संघर्ष को आगे बढ़ाएं।

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राजाजी के जीवनी लेखक, गांधी और राजाजी के पोते राजमोहन गांधी के अनुसार, कई कॉन्ग्रेसी जिनमें नेहरू और पटेल भी थे, मानते थे कि मंदिर प्रवेश विधेयक लाने से राष्ट्रवादी ऊर्जा को क्षति पहुंचेगी। इतिहासकार रामचंद्र गुहा  लिखते हैं, ‘कई लोग गांधी और पेरियार को राजनीतिक विरोधी मानते हैं पर उनके लक्ष्य समान थे। गांधी हिंदू सीमा में रहकर सुधार चाहते थे।’
मदुरै स्थित अमेरिकन कॉलेज में तमिल साहित्य के शिक्षक व दलित शोधकर्ता स्टालिन राजंगम कहते हैं, ‘मैं भी...मुदरै आने से पहले गांधी को आंबेडकर-पेरियार का विरोधी मानता था। आयोथी दास (थास) पंडिथर (19वीं- 20वीं सदी के तमिल दलित समाज सुधारक, जिन्होंने बाद में बौद्ध धर्म अपनाया) पर थीसिस के दौरान मैंने तमिल समाज के बदलाव में गांधी के योगदान को अनुभव किया।

मदुरै में गांधी स्मृति
मदुरै का गांधी मेमोरियल म्यूूजियम भारत के 6 राष्ट्रीय गांधी स्मारकों में से एक और दक्षिण में एकमात्र संग्रहालय है। यह एक महल में बना है, जिसे सन 1700 में मदुरै की रानी मंगाम्मल ने बनवाया था। यहां विशालकाय डायनासौर का मॉडल लगा है। इसका उद्घाटन 1959 में हुआ। 1948 में गांधी के अंतिम समय में पहने गए शॉल और धोती को भी कई अन्य वस्तुओं के साथ प्रदर्शित किया गया है। मदुरै से लगभग 70 किलोमीटर दूर डिंडीगुल कस्बे में गांधीग्राम है। इसकी स्थापना टीवीएस ग्रुप के संस्थापक टीवी सुंदरम आयंगर की डॉक्टर पुत्री टीएस सौंदरम ने 1947 में केरल के दलित गांधीवादी पति सी रामाचंद्रन के साथ मिल कर की। अब यह केंद्र सरकार के हाथ में है।

गांधीग्राम ट्रस्ट के वयोवृद्ध प्रबंधक के. शिवकुमार गांधी के ग्राम्य स्वराज्य के विचार को फैलाना चाहते हैं। राजाजी ने 1925 में तमिलनाडु के तिरुचेनगोड़े जिले में स्थित पुडुपालयम में गांधी खादी आश्रम की स्थापना की। इसे अस्पृश्य महिला बुनकरों को रोजगार देने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था। पुडुपालयम आश्रम का मतलब था त्याग-प्रायश्चित और तपस्या की एक जगह, जिसकी अपेक्षा गांधी सहायकों से करते थे। घास-फूंस वाली झोपड़ी पर अब लाल रंग की टाइल वाली छत है। प्रबंधक  आगंतुक पुस्तिका दिखाते हैं, जिनमें उन लोगों की संरक्षित हस्तलिपियां हैं, जो कभी यहां आए थे। (इनमें गांधी, कस्तूरबा, राजेंद्र प्रसाद व अन्य गणमान्य लोग शामिल हैं) आज आश्रम की हवा थकी और क्लांत प्रतीत होती है। छिटपुट पर्यटक अतीत की निशानियां देखते हैं। लाइब्रेरी, में मद्य-निषेध जर्नल के कई खंड तैयार हुए, वह (विमोचनम) चिथड़े होकर पड़ा है। तमिलनाडु में गांधी की विरासत के लिए यही उपमा दी सकती है।

‘पूर्वाग्रह की दीवार तोड़ दो’
त्रावणकोर रियासत वाले वायकॉम में दलितों और निम्न जातियों कोएक शिव मंदिर में प्रवेश पर रोक थी। 1924 में, समाज सुधारक नारायण गुरु के अनुयायी टी.के. माधवन और कांग्रेस सदस्य के के.पी. केशव मेनन ने अस्पृश्यता विरोधी समिति का गठन किया और सत्याग्रह की योजना बनाई। इन सत्याग्रहियों ने अनशन किया, गिरफ्तार हुए। ई.वी. रामासामी (पेरियार) दो बार गिरफ्तार हुए।

1936 में त्रावणकोर ने ऐलान किया कि वहां के मंदिर बिना किसी भेदभाव के समस्त हिंदुओं के लिए खोल दिए जाएंगे। गांधी जी ने ‘यंग इंडिया’ अखबार में वायकॉम सत्याग्रह के बारे में कई आलेख लिखे। उनमें से एक आलेख के अंश यहां प्रस्तुत है, जिसमें उन्होंने अस्पृश्यता के खिलाफ चले कई सत्याग्रहों में से एक पर विचार रखे हैं। यह अंश 17 अप्रैल 1924 का है, जो ‘द कलेक्टेड वर्क्स ऑफ महात्मा गांधी (वॉल्यूम 27) से लिया गया है-

“वायकॉम, जिसे त्रावणकोर के बाहर मद्रास प्रेसीडेंसी में लोग बहुत नहीं जानते थे, अचानक प्रसिद्ध हो गया क्योंकि वह सत्याग्रह का स्थान बन गया है। प्रेस इस आंदोलन की दैनिक प्रगति के बारे में रोज बुलेटिन निकालता है। इसे त्रावणकोर के अस्पृश्यों की ओर से शुरू किया गया है। इस आंदोलन ने दबे-कुचले वर्ग का हाल बयान करने के लिए हमें एक अन्य शब्द दिया है। यह है- दुलर्भ यानी अनएप्रोचेबिलिटी।

ये गरीब लोग अन्य जाति के हिंदुओं को छू नहीं सकते, उन्हें निश्चित दूरी बना कर रखनी होती है। आंदोलन के नेताओं ने, भेदभाव का केवल एक पहलू ही उठाया है और कोई संदेह नहीं कि यदि वे इससे निपटने में सफल होते हैं तो कम से कम भारत के उस हिस्से में इस कुरीति पर चोट कर सकेंगे, जहां अभी यह आंदोलन जारी है। इस अभियान के अभियोग में मालाबार के कुछ निष्ठावान कार्यकर्ता जेल में डाल दिए गए हैं, जिनमें मेरे पूर्ववर्ती जॉर्ज जोसेफ हैं, वहां अब पीछे नहीं हटा जा सकता। अगर रूढ़िवादी हिंदू आंदोलन का विरोध करते हैं तो संघर्ष लंबा खिंच सकता है। सत्यागही पूर्वाग्रह की दीवार को ध्वस्त करने के लिए दृढ़ हैं, चाहे वह कितनी मजबूत क्यों न हो। ऐसा संभव है, अगर वे दृढ़ किंतु विनम्र और अहिंसक बने रहें। उन्हें इन गुणों पर भरोसा रखना होगा, तभी वे जान सकेंगे कि इससे कठोर दिलों को भी पिघलाया जा सकता है।

 

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