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बापू@150: जन-जन की पसंद...भारतीय कम्युनिस्टों का गांधी से अनूठा संबंध

भारतीय कम्युनिस्टों का भारत के महानतम जननेता महात्मा गांधी से अनूठा संबंध रहा है। गांधी की धर्मनिरपेक्ष विचारधारा और जनता में उनके प्रति आकर्षण के कारण कम्युनिस्ट उनकी ओर आकर्षित होते रहे हैं। लेकिन...

बापू@150: जन-जन की पसंद...भारतीय कम्युनिस्टों का गांधी से अनूठा संबंध
लाइव हिंदुस्तान,नई दिल्लीTue, 24 Sep 2019 02:35 PM
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भारतीय कम्युनिस्टों का भारत के महानतम जननेता महात्मा गांधी से अनूठा संबंध रहा है। गांधी की धर्मनिरपेक्ष विचारधारा और जनता में उनके प्रति आकर्षण के कारण कम्युनिस्ट उनकी ओर आकर्षित होते रहे हैं। लेकिन आजादी की लड़ाई के दौरान कम्युनिस्टों ने उनके दर्शन की आलोचना की थी। 1925 में स्थापित भाकपा भारत छोड़ो आंदोलन के खिलाफ थी।

भारतीय कम्युनिस्ट रूसी क्रांतिकारी लेनिन के उग्र बोल्शेविक आंदोलन से प्रभावित थे। उन्होंने गांधी के अहिंसा के दर्शन का विरोध किया। यह श्रीपाद अमृत डांगे की 1921 में छपी किताब ‘गांधी बनाम लेनिन’ से स्पष्ट है। लेनिन और गांधी, दोनों साम्राज्यवाद से आजादी चाहते थे। लेकिन ‘समाज में क्रांति के लिए काम करने के तरीकों’ को लेकर उनमें अंतर था। विनोदी इतिहासकारों ने गांधीवाद को ‘हिंसा रहित साम्यवाद’ कहा।

1964 में गठित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माक्र्सवादी) के कई अगुआ गांधीवादी मूल्यों की उपज थे। इसके एक संस्थापक सदस्य ईएमएस नंबूदरीपाद व्यवहार और सिद्धांत में दृढ़ गांधीवादी थे। भगत सिंह की फांसी का विरोध और गांधी के सविनय अवज्ञा आंदोलन का समर्थन करने के कारण 1932 में वह गिरफ्तार किए गए थे। 1958 में उन्होंने ‘महात्मा और उनका वाद’ पुस्तक लिखी, जो गांधी के सर्वकालिक योगदान को समझने के लिए भारतीय वामपंथियों के बीच जरूरी किताब मानी जाती है। हालांकि गांधीवाद पर ईएमएस का रुख आलोचनात्मक था। वह आजादी, भारत की सामाजिक मुक्ति और वर्ग के बंधन से मुक्ति के सवाल पर असहमत थे। ज्योति बसु, जो 1977 से 2000 तक पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे, भी इसी प्रकार की राय रखते थे। 

कम्युनिस्टों की मौजूदा पीढ़ी गांधी का आदर करती है। सीताराम येचुरी कहते हैं, महात्मा गांधी के पास उन मुद्दों को पहचानने की शक्ति थी, जो लोगों को जागृत कर सकते थे। नमक से ऐतिहासिक आंदोलन खड़ा करने और दांडी मार्च करने के लिए प्रतिभा की आवश्यकता होती है। वह हर किसी को एकजुट करना चाहते थे। दक्षिणपंथियों से वैचारिक संघर्ष में गांधी का दर्शन वामपंथियों के लिए अहम हथियार है। येचुरी कहते हैं, गांधी समर्पित हिंदू थे, पर उन्होंने धर्मनिरपेक्षता का समर्थन किया। 

वह एक हिंदू कट्टरपंथी के हाथों मारे गए, क्योंकि उन्होंने भारत को पाकिस्तान की तरह एक धर्माधारित राज्य में बदलने का विरोध किया। गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन को जिस तरह आकार दिया, उसी की वजह से भारत एक धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य बना। हालांकि वामपंथी पार्टियों के कार्यालयों में गांधी की तस्वीर दिखाई नहीं देती, लेकिन उनके भाषणों में अब गांधी का जिक्र आम हो गया है। उनके कार्यालयों में अर्जेन्टीना के क्रांतिकारी चे ग्वेरा, लेनिन की पेंटिंग और यहां तक कि हरिकिशन सिंह सुरजीत की तस्वीर मिलती है।

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