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मध्य प्रदेश के बाद महाराष्ट्र हो सकता है बीजेपी का नया मिशन

कोरोना महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित महाराष्ट्र अब सियासी दांवपेच में भी उलझ गया है। राज्य की उद्धव ठाकरे की गठबंधन सरकार के अपने अंतर्विरोध गहरे हुए हैं तो भाजपा वहां पर मौके की तलाश में जुट गई...

 मध्य प्रदेश के बाद महाराष्ट्र हो सकता है बीजेपी का नया मिशन
विशेष संवाददाता,नई दिल्लीThu, 28 May 2020 08:35 AM
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कोरोना महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित महाराष्ट्र अब सियासी दांवपेच में भी उलझ गया है। राज्य की उद्धव ठाकरे की गठबंधन सरकार के अपने अंतर्विरोध गहरे हुए हैं तो भाजपा वहां पर मौके की तलाश में जुट गई है। भाजपा सीधे तौर पर तो सामने नहीं आई है लेकिन उसके नेता दूसरे दलों में सेंध लगाने की संभावनाएं जरूर तलाश रहे हैं। ऐसे में वह देर-सवेर सफलता की उम्मीद जरूर लगाए है।

मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार गिराकर सत्ता में आने वाली भाजपा के लिए महाराष्ट्र नया मिशन हो सकता है। राज्य में शिवसेना के नेतृत्व वाले गठबंधन में राकांपा और कांग्रेस शामिल हैं, लेकिन कोरोना से निपटने को लेकर सरकार के ऊपर कई सवाल खड़े हुए हैं, जिससे अंदरूनी मतभेद उभरने लगे हैं। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने एक दिन पहले कहा था कि कांग्रेस महाराष्ट्र में निर्णय प्रक्रिया में हिस्सेदार नहीं है लेकिन जब इसे लेकर विवाद उठा तो उन्होंने उद्धव ठाकरे से बात भी की। इसके बाद उद्धव ने सभी सहयोगी दलों के नेताओं के साथ बैठक भी की है। 

पवार पर नजर 
दरअसल भाजपा को महाराष्ट्र में लगे सियासी झटके को पचा पाना अभी तक मुश्किल हो रहा है। वह किसी तरह वहां पर सत्तारूढ़ गठबंधन में सेंध लगाकर अपनी सरकार की संभावनाएं तलाश रही है। हालांकि, इसमें सबसे बड़ा रोड़ा राकांपा ही है। इसके नेता शरद पवार की रणनीति अभी तक पहेली की तरह है। भाजपा उसका बड़ा झटका भी खा चुकी है। ऐसे में वह मराठा कार्ड खेल सकती है। मराठा नेतृत्व के नाम पर उसके नेता नारायण राणे सामने आ सकते हैं। हालांकि, अंकगणित में वह काफी दूर है। वहां पर भाजपा को अपने विरोधी तीन दलों में से किसी एक दल में बड़ी सेंध लगानी होगी या हर दल में तोड़फोड़ करनी होगी। यह सब बहुत आसान नहीं है। 

उम्मीद की किरण
सत्तारूढ़ गठबंधन में असंतोष बड़ा है और वही भाजपा की उम्मीद की किरण भी है। सूत्रों के अनुसार भाजपा नेतृत्व इस मामले में जल्दबाजी नहीं करना चाहता है। वह पहले विभिन्न दलों के असंतुष्ट नेताओं की पहचान कर लेना चाहता है ताकि अजित पवार जैसा झटका उसे दोबारा ना लगे। इस बार वह फूंक-फूंककर कदम रखेगी भले ही कितना भी समय क्यों न लग जाए। केंद्रीय नेतृत्व फिलहाल इस मूड में नहीं है कि वहां पर बड़े पैमाने पर तोड़फोड़ की जाए, लेकिन वह गठबंधन को अस्थिर करने का कोई मौका नहीं छोड़ेगा।

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