शिवसेना-एनसीपी के गठजोड़ से कार्यकर्ता सहज नहीं, जमीनी राजनीति को पहुंचेगा नुकसान
भाजपा के मैदान छोड़ने के बाद महाराष्ट्र में शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस की सरकार बनने का रास्ता तो साफ हो गया है। लेकिन शिवसेना-एनसीपी गठबंधन को लेकर निचले स्तर पर अच्छी खबर नहीं है। दोनों दलों के निचले...
भाजपा के मैदान छोड़ने के बाद महाराष्ट्र में शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस की सरकार बनने का रास्ता तो साफ हो गया है। लेकिन शिवसेना-एनसीपी गठबंधन को लेकर निचले स्तर पर अच्छी खबर नहीं है। दोनों दलों के निचले स्तर के कार्यकर्ताओं में इस बेमेल गठबंधन को लेकर सहमति नहीं है। वे इसे जमीनी राजनीति के लिए अच्छा नहीं मान रहे हैं। दोनों दलों में यह सोच है कि भाजपा से गठबंधन कहीं ज्यादा बेहतर विकल्प होता।
महाराष्ट्र की राजनीति को समझने वाले लोगों का कहना है कि शिवसेना-एनसीपी का गठबंधन कुछ-कुछ उत्तर प्रदेश के सपा-बसपा गठबंधन जैसा है। दोनों क्षेत्रीय दल हैं तथा क्षेत्रीय राजनीति में एक-दूसरे के खिलाफ हावी हैं। दोनों की विचारधारा भी अलग है। शिवसेना हिंदुओं को केंद्र में रखकर राजनीति करती है तो एनसीपी की राजनीत के केंद्र में धर्मनिरपेक्षता है, मुस्लिमों में अच्छी पैठ है। दोनों दल सूबे की राजनीति में एक दूसरे के खिलाफ लड़ते आ रहे हैं।
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कहा जा रहा है कि शिवसेना-एनसीपी के कार्यकर्ता इस गठबंधन को लेकर असहज हैं। गठबंधन सरकार बनाने के लिए है, स्पष्ट नहीं है कि पांच साल के बाद जब चुनाव होंगे तो वह साथ लड़ेंगे या नहीं, साथ सरकार बनाने के बाद ये दल साथ चुनाव में उतरते हैं तो यूपी की भांति उनका भी वोट एक दूसरे को ट्रांसफर नहीं हो पाएगा।
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एक साथ चुनाव में जाने का फायदा मिलना मुश्किल
महाराष्ट्र से जुड़े एक राजनीतिक विशेषज्ञ ने कहा कि भले ही यह गठबंधन सरकार चला ले जाए, लेकिन एक साथ चुनाव में जाने का फायदा मिलना मुश्किल है। एनसीपी के भीतर कार्यकर्ता भाजपा के साथ जाने में कहीं सहज महसूस करता है। भले ही अजीत पवार का दांव नहीं चल पाया हो, एनसीपी में यह सोच है कि शिवसेना के बजाय भाजपा के साथ सरकार बनाना उसके लिए कहीं बेहतर विकल्प होता।