इस बार लोकसभा चुनाव (loksabha election) में हार जीत का निर्णायक फैसला गैर हिन्दी भाषी राज्यों से होने की संभावना है। जबकि पिछले चुनाव में हिन्दी भाषी नौ राज्यों के नतीजे निर्णायक साबित हुए थे। लेकिन इस बार समीकरण थोड़े बदले हुए हैं। हिन्दी क्षेत्र में कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों का प्रदर्शन इस बार अपेक्षाकृत बेहतर रहने की संभावना है। इसलिए दक्षिणी और गैर हिन्दी राज्य इस बार किंग मेकर साबित हो सकते हैं।
पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा (BJP) को मिले स्पष्ट बहुमत को देखें तो उसे नौ हिन्दी भाषी राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड तथा हिमाचल प्रदेश से सर्वाधिक सीटें मिली थी। इन राज्यों में कुल 211 सीटें हैं जिसमें अकेले भाजपा ने 174 सीटें जीत ली थी।
नौ हिन्दी भाषी राज्यों के अलावा जिन चार गैर हिन्दी राज्यों में भाजपा ने अच्छा प्रदर्शन किया था, उनमें गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक और असम शामिल हैं। इन चार राज्यों में कुल 116 सीटें हैं जिनमें से 70 सीटें भाजपा जीतने में सफल रही। इस प्रकार कुल 13 राज्यों में भाजपा ने कुल 244 सीटें जीती जबकि बाकी सीटें देश के अन्य हिस्सों से जीतीं। भाजपा को कुल 282 सीटें मिली थी।
राजनीतिक जानकारों के अनुसार हिन्दी क्षेत्र में इस बार स्थिति बदली हुई हैं। इसके दो कारण हैं। पिछली बार भाजपा का प्रदर्शन बेहतरीन था और वह अधिकतम सीटें जीतने में सफल रही। दूसरे, इस बार तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव भाजपा पहले ही हार चुकी है तथा वहां कांग्रेस की सत्ता है। उप्र में जहां सबसे ज्यादा सीटें आई थी, वहां सपा-बसपा ने हाथ मिलाकर चुनौती पैदा कर दी है। इसलिए राजनीति जानकारों का कहना है कि इस बार हिन्दी क्षेत्र में भाजपा और विपक्ष में जोरदार मुकाबला होगा। हिन्दी क्षेत्र में भाजपा की सीटें घटेंगी और विपक्ष बढ़त लेगा।
चार गैर हिन्दी राज्यों में जहां पिछली बार भाजपा का प्रदर्शन बेहतर था उनमें से महाराष्ट्र, असम और कर्नाटक में करीब-करीब स्थिति पिछली बार जैसी रहने की संभावना है। लेकिन गुजरात में कांग्रेस पहले से मजबूत हुई है इसलिए वहां सीटें घट सकती हैं।
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राजनीतिक जानकारों के अनुसार छह अन्य गैर हिन्दी राज्यों तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, ओडिसा, तमिलनाडु, केरल तथा आंध्र प्रदेश की सीटें केंद्र में भाजपा या विपक्ष की सरकार बनाने में अहम साबित होंगी। इन छह राज्यों में 163 सीटें हैं। जिनमें से अभी भाजपा के पास महज सात सीटें हैं। संभावना है कि पश्चिम बंगाल और ओडिसा में भाजपा की सीटें बढ़ेंगी। तमिलनाडु में उसने अन्नाद्रमुक से गठबंधन किया है।
पिछली बार तो उसका प्रदर्शन अच्छा था और 38 सीटें जीती थी। लेकिन इस बार यह देखना होगा कि भाजपा-अन्नाद्रमुक मिलकर कितनी सीटें जीतते हैं। केरल, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में स्थितियां भाजपा के अनुकूल नहीं हैं। इस प्रकार 10 अहिंदी राज्यों में कुल 279 सीटें हैं। माना जा रहा है कि जिस दल या गठबंधन के खाते में इनमें से ज्यादातर सीटें जाएंगी, उसके लिए केंद्र में सरकार बनाना आसान होगा।
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