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लोकसभा चुनाव: गठबंधन राजनीति राष्ट्रीय दलों पर पड़ रही है भारी 

गठबंधन राजनीति व सामाजिक समीकरणों के चलते देश के दोनों प्रमुख राष्ट्रीय दलों भाजपा व कांग्रेस को उम्मीदवार तय करने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ी है। भाजपा को अपने उम्मीदवार तय करने में एक महीने से ज्यादा...

लोकसभा चुनाव: गठबंधन राजनीति राष्ट्रीय दलों पर पड़ रही है भारी 
रामनारायण श्रीवास्तव ,नई दिल्लीSun, 28 Apr 2019 07:22 AM
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गठबंधन राजनीति व सामाजिक समीकरणों के चलते देश के दोनों प्रमुख राष्ट्रीय दलों भाजपा व कांग्रेस को उम्मीदवार तय करने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ी है। भाजपा को अपने उम्मीदवार तय करने में एक महीने से ज्यादा समय लगा और उसे इसके लिए 26 सूचियां जारी करनी पड़ी। वहीं, कांग्रेस को इससे भी ज्यादा समय लगा और उसे भी उम्मीदवारों की लगभग दो दर्जन सूची जारी करनी पड़ी है। भाजपा ने 437 और कांग्रेस ने 424 उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे हैं।

यह संभवत: पहला मौका है जबकि किसी राजनीतिक दल को उम्मीदवार तय करने में इतनी सूची जारी करनी पड़ी है। साल 2014 के चुनाव में भाजपा ने 428 उम्मीदवार उतारे थे और इसके लिए उसने 18 सूचियों में उम्मीदवारों के नाम घोषित किए थे। 2009 के आम चुनाव में भाजाप ने लगभग 15 सूचियों में उम्मीदवारों के नाम तय किए थे। लेकिन इस बार उसे विपक्ष के राज्यवार गठबंधनों, सामाजिक समीकरणों व अपने सांसदों के खिलाफ विरोधी माहौल को देखते हुए एक एक सीट के लिए नाम तय करने में कड़ी मेहनत करनी पड़ी है। भाजपा ने 21 मार्च को 184 उम्मीदवारों की पहली सूची जारी की थी और 23 अप्रैल को उसकी 26 वीं सूची जारी की गई। 

क्षात्रीय दलों ने प्रभावित किए समीकरण : 
दूसरी तरफ कांग्रेस की पहली सूची तो भाजपा से भी पहले आ गई थी। कांग्रेस ने पिछली बार 464 उम्मीदवार उतारे थे, जबकि इस बार वह 424 सीटों पर ही चुनाव लड़ रही है। भाजपा के उम्मीदवार बढ़े हैं, जबकि कांग्रेस के घटे हैं। दरअसल यह स्थिति इसलिए बनी है, क्योंकि मजबूत क्षेत्रीय दलों ने आपसी व राष्ट्रीय दलों के साथ राज्यवार गठबंधन कर अपनी ताकत बढ़ाई है। उत्तर प्रदेश में लंबे समय बाद सपा-बसपा साथ आए हैं। वहीं, दिल्ली में आम आदमी पार्टी व कांग्रेस के गठबंधन की अटकलों के चलते सभी दलों के उम्मीदवारों का मामला टलता रहा। 

बीते चुनाव से अलग है माहौल :
मिशन 2019 में देश का पिछला वाला मिजाज नजर नहीं आ रहा है। बीते चुनाव में विपक्ष राष्ट्रीय स्तर पर जितना बिखरा है, वहीं राज्यों के स्तर पर पिछली बार से मजबूत नजर आ रहा है। वहीं सत्तारूढ़ भाजपा ने इस बार राष्ट्रीय स्तर पर अपने गठबंधन को पूर्व से लेकर पश्चिम तक व उत्तर से लेकर दक्षिण तक मजबूत किया है। भाजपा ने अपने राष्ट्रीय विस्तार के साथ कई राज्यों में सरकारें बनाई है। उसके एक दर्जन मुख्यमंत्री तो अपने हैं। राजग सरकारों में कुछ उप मुख्यमंत्री भी हैं। इसके बावजूद मजबूत क्षेत्रीय दलों के समीकरण इस बार ज्यादा हावी हैं। 

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