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इंटरव्यू: कांग्रेस के प्रति देश के लोगों की सोच बदली है- कपिल सिब्बल

पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल कांग्रेस के उन वरिष्ठ नेताओं में हैं जो दो टूक बात कहने के लिए जाने जाते हैं। इसके चलते कई बार वह विपक्ष के निशाने पर होते हैं। लेकिन सिब्बल कहते हैं कि वह जो कहते...

इंटरव्यू: कांग्रेस के प्रति देश के लोगों की सोच बदली है- कपिल सिब्बल
मदन जैड़ा ,नयी दिल्ली। Wed, 13 Mar 2019 09:32 AM
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पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल कांग्रेस के उन वरिष्ठ नेताओं में हैं जो दो टूक बात कहने के लिए जाने जाते हैं। इसके चलते कई बार वह विपक्ष के निशाने पर होते हैं। लेकिन सिब्बल कहते हैं कि वह जो कहते हैं, दावे के साथ कहते हैं और आखिर में उनकी बात सच निकलती है। तमाम राजनीतिक मुद्दों पर सिब्बल से हिन्दुस्तान के ब्यूरो चीफ मदन जैड़ा की बातचीत-

क्या कांग्रेस के प्रति लोगों की सोच बदल रही है?
बिल्कुल, मैं मानता हूं कि सोच बदली है। अगर नहीं बदली होती तो तीन राज्यों में नहीं जीतते। आने वाले चुनावों में भी इसका असर दिखेगा। आज समाज का हर वर्ग भाजपा से दुखी है। किसान, व्यवसायी सब। सरकार में कुछ गिने-चुने लोग ही फायदा उठाते हैं। समाज में भी तनाव पैदा किया जा रहा है। 

 

’प्रियंका गांधी के सक्रिय राजनीति में आने से असर पड़ेगा?
उनका व्यक्तित्व लोगों को आकर्षित करता है। वह लोगों की भावनाओं से जुड़ी हैं। उनके आने से जो उत्साह कांग्रेस कार्यकर्ताओं में आया है, उसका फायदा निश्चित रूप से पार्टी को मिलेगा।  

 

’राहुल गांधी के नेतृत्व में क्या बदलाव आया है?
राहुल गांधी के नेतृत्व में बहुत मजबूती आई है। आम जनता को पता चल गया है कि वह एक सुलझे इंसान हैं। उन्होंने राफेल मुद्दे को आक्रामक तरीके से उठाया है। जनता भी मान रही है कि राहुल में प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने की क्षमता है।

 

’क्या उन्हें प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में पेश किया जाएगा?
ये फैसला मैं नहीं कर सकता। पार्टी निर्णय करेगी। लेकिन उनकी क्षमता पर कोई शक नहीं है। 

 

’राफेल चुनावी मुद्दा बनेगा?
राफेल को क्लीन चिट नहीं मिली है। कई खुलासे सामने आए हैं। यह बड़ा चुनावी मुद्दा बन चुका है।

 

’विपक्षी एकजुटता रंग लाएगी?
जब जनता भाजपा के खिलाफ है तो इसका फायदा विपक्ष को ही मिलेगा। कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी है, इसलिए सबसे ज्यादा फायदा उसे होगा। 

 

’लेकिन नेतृत्व पर आपके सहयोगियों में एकराय नहीं है?
ऐसा नहीं है। सबने यही कहा कि पीएम पर फैसला चुनाव बाद करेंगे।

 

’प्रधानमंत्री ने विपक्षी गठबंधन को महामिलावट कहा है।
उनका गठबंधन महारुकावट है। वही उन्हें प्रधानमंत्री बनने से रोकेगा। वैसे संघ एक वरिष्ठ मंत्री को पीएम बनाने के पक्ष में है।  

मंदिर निर्माण को लटकाने, ईवीएम हैकर के कार्यक्रम में मौजूदगी, सवर्ण आरक्षण आदि को लेकर आप विपक्ष के निशाने पर हैं ?

यह उनकी नासमझी है। मैं सच को देश के सामने लाता हूं। जैसे मैंने पहले कहा था कि टूजी में कोई आर्थिक नुकसान नहीं हुआ। अब यह बात कोर्ट में साबित हो चुकी है। मैंने जो मंदिर पर कहा, वही बात अब आरएसएस खुद कहने लगा है। और भी जो मैं कहता हूं वह बाद में सच निकलता है। ईवीएम पर भी मेरी बात सच होगी।

आपकी सरकार आती है तो क्या करेंगे, सौदा रद्द कर देंगे ?

बात करेंगे फ्रांस के साथ। असलियत क्या है, यह जानेंगे। कौन सा लेन-देन हुआ है, किसको फायदा हुआ है। यह पता करेंगे। बड़ी जांच बैठनी चाहिए।

क्या मंदिर मामले का हल निकलेगा, अब तो मध्यस्थ भी नियुक्त हो गए हैं ?

देखिए, मैं दिसंबर 2017 के बाद इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में पेश नहीं हुआ। मैं तब पेश हुआ था और मुझ पर भाजपा ने आरोप लगाया कि मैं सुनवाई में रोड़े अटका रहा हूं। लेकिन, अब साफ है कि देरी मैं नहीं कर रहा बल्कि खुद संघ परिवार कर रहा है। संघ कह रहा है कि अब राम मंदिर मामला महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि पुलवामा का आतंकी हमला ज्यादा महत्वपूर्ण है। क्योंकि, यह देश की अखंडता का मामला है। संघ के बयान के बाद सरकार को जनता को बताना चाहिए कि वह क्या चाहती है ?

केंद्र सरकार ने 67 एकड़ भूमि राम जन्मू भूमि न्यास और उसके अन्य स्वामियों को लौटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई है, इसे किस रूप में देखते हैं ?

मैं इस पर कुछ कहूंगा तो भाजपा वाले फिर कहेंगे कि सिब्बल साहब के बोलने की वजह से मामला आगे नहीं बढ़ पा रहा है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट को तय करने दीजिए।

क्या इस मुद्दे पर भाजपा राजनीतिक लाभ लेना चाहती है ?

यहां दो बातें हैं, हमने कभी नहीं कहा कि सुनवाई नहीं हो। दूसरे, इस मामले में कांग्रेस कोई पक्षकार भी नहीं है। सरकारी पक्ष खुद बयानबाजी करता है। जबकि सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर लगे स्टे पर सरकारी पक्ष बयानबाजी नहीं करे। लेकिन वे लोग लगातार कर रहे हैं। उन्हें कोर्ट की परवाह नहीं। वे कभी नहीं कहते हैं कि कोर्ट का जो भी फैसला होगा, उसे मानेंगे। बल्कि यह कहा जा रहा है कि कोर्ट का फैसला आने के बाद अध्यादेश या विधेयक का विकल्प देखेंगे। यानी साफ है कि यदि फैसला पंसद के अनुरूप नहीं आता है, तो उसे बदला जाएगा।

कानून मंत्री सुनवाई में देरी पर चिंता भी जता चुके हैं ?

यह सरासर कोर्ट की अवमानना है। वे यह क्यों नहीं कहते हैं कि नोटबंदी से जुड़ी याचिकाओं पर जल्दी फैसला हो। बाबरी मस्जिद ढहाने का मामला 26 सालों से लंबित हैं, उस पर जल्द सुनवाई की मांग क्यों नहीं करते।

केंद्र सरकार ने हाल में कई अध्यादेश जारी किए हैं। इनमें से तीन तीसरी बार जारी हुए हैं। सरकार के कार्यकाल में कोई संसद सत्र नहीं बचा है, ऐसे में क्या अध्यादेश लाना संवैधानिक है?

सरकार अध्यादेश ला सकती है क्योंकि अभी सरकार कायम है, इसलिए अध्यादेश लाना गलत नहीं है। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पीएन भगवती ने अपने एक फैसले में कहा था कि दोबारा-दोबारा अध्यादेश लाना असंवैधानिक हो सकता है। हालांकि उन्होंने किसी अध्यादेश को रद्द नहीं किया था। अध्यादेश लाना सरकार का अधिकार है। लेकिन अध्यादेश लाने के पीछे सरकार की मानसिकता कुछ और है।

तीन तलाक संबंधी विधेयक का आपने विरोध किया था, आगे इस पर आपका रुख क्या रहेगा ?

हमारा रुख आगे भी वहीं रहेगा। हम विवाह संबंधों को आपराधिक बनाए जाने के खिलाफ हैं। इसलिए इस अध्यादेश का आगे भी वही हश्र होगा, जो अब तक होता आया है।

एनडीए के पांच साल के कार्यकाल को आप कैसे देखते हैं ?

एक लाइन में कहूं तो भाषण ज्यादा, शासन कम। अब फिर कहा जा रहा है कि जनता को पांच साल की स्थिर सरकार चाहिए। इन्हें तो पांच साल मिले थे। कितने वर्षों के बाद किसी सरकार को पूर्ण बहुमत मिला था। इन्होंने क्या दिया। इस स्थिर सरकार ने देश को क्या दिया। नोटबंदी दी। जीएसटी दिया जिसे बिना सोचे समझे लागू किया गया। छह रेट रखे गए और अब रेट कम कर रहे हैं। सरकार के आर्थिक सलाहकार कहते रहे कि एक रेट होना चाहिए। इस दौरान कई विवाद हुए। घर वापसी, दलितों पर हमले, विवि में माहौल खराब करना आदि। दूरसंचार क्षेत्र की हालत खराब है। राजकोषीय घाटे में भारी बढ़ोत्तरी हुई है। आरबीआई से पैसे मांगे जा रहे हैं। एक लाख व्यवसायी भागकर दूसरे देशों में चले गए। सोशल मीडिया की आवाज दबाने की कोशिश हो रही है। उनके प्रमुखों को तलब किया जा रहा है, क्योंकि सोशल मीडिया के जरिये लोग सरकार के खिलाफ मुखर हो रहे हैं।

सवर्ण आरक्षण को लेकर भी आपके तेवर तल्ख थे, क्या आर्थिक रूप से कमजोर तबके को आरक्षण संविधान सम्मत है ?

दस फीसदी आरक्षण को धरातल पर लागू करना संभव नहीं है। क्योंकि जो आठ लाख की आय सीमा रखी गई है, उसमें 90 फीसदी से भी ज्यादा लोग आ जाते हैं। इसलिए यह एक जुमला है। वैसे भी अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है। जहां तक आर्थिक रूप से कमजोर तबके को आरक्षण देने का सवाल है, उस पर मैं यही कहूंगा कि हमारे संविधान बनाने वालों के मन में यह बात नहीं थी।

कश्मीर में पुलवामा हमले और फिर वायुसेना की एयर स्ट्राइक के मुद्दे पर आपकी पार्टी सरकार के साथ खड़ी क्यों नहीं दिखती?

हम इस मामले पर हमेशा अपनी सेनाओं के साथ खड़े हैं। पुलवामा में जब हमला हुआ था, तो हम मानते थे कि देश के समक्ष कठिन घड़ी है। इसलिए हम सरकार के साथ भी खड़े हुए। लेकिन हमें पता चला कि जब हमला हुआ, तो पीएम उत्तराखंड में फोटो खिंचा रहे थे। रैली कर रहे थे। हम वायुसेना पर सवाल नहीं उठा रहे हैं। हम शाह से सिर्फ यह पूछ रहे हैं कि वह किस आधार पर तीन सौ लोगों के मारे जाने की बात कहते हैं। उनकी जानकारी का स्रोत क्या है, क्योंकि वायुसेना ने कोई संख्या नहीं बताई है। दूसरे, मैं यह भी याद दिलाना चाहता हूं जब मुंबई पर आतंकी हमला हुआ था और मोदी तब गुजरात के मुख्यमंत्री थे। तब वे मुंबई पहुंचे थे और सरकार की आलोचना की थी। इसलिए सरकार और उसके मंत्रियों को कोई हक नहीं कि वे हमें बताएं कि देशभक्ति क्या होती है?

एनडीए शासन में कश्मीर की स्थिति को आप किस रूप में देखते हैं, क्या वह पहले से बिगड़ी है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब तब मुख्यमंत्री रहते हुए 26/11 हमले की आलोचना की थी। तो फिर उन्होंने अपने शपथ ग्रहण समारोह में नवाज शरीफ को क्यों आमंत्रित किया। फिर वे झप्पियां लेने खुद पाकिस्तान क्यों पहुंच गए। वे कभी कहते रहे कि पाकिस्तान से बातचीत करेंगे और कभी बोलते रहे कि नहीं करेंगे। यही रुख उनका हुर्रियत को लेकर भी रहा। कहने का तात्पर्य यह है कि कश्मीर को लेकर उनकी कोई ठोस नीति नहीं रही।

भाजपा ने पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनाई, इसे आप कैसे देखते हैं ?

मैं मोदी जी को फिर याद दिलाना चाहता हूं। वे पहले बाप-बेटी की सरकार कहकर पीडीपी की आलोचना करते थे। लेकिन जब भाजपा को लगा पीडीपी से हाथ मिलाने से जम्मू एवं लद्दाख में फायदा होगा, तो उन्होंने तुरंत सरकार बना ली। यह पूरी तरह से सिद्धान्तविहीन समझौता था। भाजपा का एक ही लक्ष्य था-जम्मू एवं लद्दाख में फायदा लेना।

आज कश्मीर से संबंधित धारा 370 और अनुच्छेद 35ए को खत्म करने की मांग उठने लगी है, आपको लगता है कि ऐसा संभव है ?

संभव है या नहीं, यह तो मैं नहीं कह सकता। लेकिन कश्मीर में कोई ऐसी पार्टी नहीं है, जो इसका साथ दे। दूसरे, ये दोनों मामले अब सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन है। इसलिए फैसला सुप्रीम कोर्ट करेगा।

 

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