लोकसभा चुनाव के नतीजे भले ही चाहे जो हो पर देशभर की नजर यूपी पर है। यूपी में 23 साल बाद एक गिले-शिकवे भुलाकर साथ हुए सपा-बसपा गठबंधन को मिलने वाली सीटों को लेकर हर किसी में खासी उत्सुकता है। लोकसभा चुनाव में गठबंधन को मिलने वाली सीटों से यूपी में भविष्य की राजनीति का भी रास्ता खुलेगा या कहें कि इससे काफी हद तक राजनीतिक पार्टियों के कद का भी पता चलेगा।
लोकसभा चुनाव इस बार यूपी के लिए देश के अन्य राज्यों से काफी हटकर रहा। भाजपा के खिलाफ पहली बार सपा, बसपा व रालोद एक साथ आए। इस गठबंधन ने जहां अपने लिए जीत के समीकरण बनाने के प्रयास किए वहीं कांग्रेस की प्रतिष्ठा वाली सीटों रायबरेली व अमेठी पर भाजपा से सीधी लड़ाई का रास्ता खोला। यूपी की राजनीति में 23 साल बाद ऐसा मौका आया जब सपा-बसपा फिर एक साथ आकर भाजपा को टक्कर देने रणनीति बनाई। अगर देखा जाए तो जातीय समीकरण के आधार पर गठबंधन सीधी लड़ाई में उभर कर सामने आई।
दलित, यादव व मुस्लिम वोटबैंक के आधार पर गठबंधन ने सीटवार उम्मीदवारों की गोटें बिछाईं। बसपा सुप्रीमो मायावती व अखिलेश ने अपना-अपना वोटबैंक एक-दूसरे को ट्रांस्फर कराने में कोई कसर भी नहीं छोड़ी। अब इसके रिजल्ट का समय आ चुका है। राजनीतिक दल हो या आम जन हर किसी की नजर गुरुवार को होने वाली मतगणना पर है। एग्जिट सर्वे रिपोर्ट ने भले ही यह बताने की कोशिश की हो कि कौन कितने पानी में है, लेकिन रिजल्ट का इंतजार सभी को है। हर किसी में यह उत्सुकता है कि भाजपा को कितनी सीटें मिलेंगी और गठबंधन क्या गुल खिलाता है। गठबंधन की रणनीति कितना कारगर साबित हुई।
लोकसभा चुनाव 2019: अब रिजल्ट की बारी, पूर्वांचल के बनारस और आजमगढ़ पर पूरे देश की निगाहें