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कर्नाटकः ये हैं कांग्रेस के 'चाणक्य', जिनकी वजह से येदियुरप्पा को बहुमत परीक्षण से पहले ही देना पड़ा इस्तीफा

कर्नाटक चुनाव संपन्न होने के बाद सबसे पहले एक्जिट पोल ने इस बात के संकेत दे दिये थे कि राज्य में त्रिशंकु विधानसभा आ सकती है। कर्नाटक की जनता ने किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं दिया। हालांकि ये जरूर हुआ...

कर्नाटकः ये हैं कांग्रेस के 'चाणक्य', जिनकी वजह से येदियुरप्पा को बहुमत परीक्षण से पहले ही देना पड़ा इस्तीफा
नई दिल्ली, लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 20 May 2018 04:38 PM
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कर्नाटक चुनाव संपन्न होने के बाद सबसे पहले एक्जिट पोल ने इस बात के संकेत दे दिये थे कि राज्य में त्रिशंकु विधानसभा आ सकती है। कर्नाटक की जनता ने किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं दिया। हालांकि ये जरूर हुआ कि इस चुनाव में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी रही और बहुमत से सिर्फ 8 सीट कम रह गई। वहीं कांग्रेस को सिर्फ 78 सीटों पर संतोष करना पड़ा जबकि जनता दल (सेक्यूलर) को 38 सीटें मिली। इसके अलावा दो सीटें अन्य को गई। 

चुनाव में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं हुआ, बावजूद इसके लोग इस बात को लेकर आश्वस्त थे कि भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले अमित शाह की रणनीति किसी न किसी तरह से बीजेपी को सत्ता में ले ही आएगी। हालांकि, ऐसा हुआ भी, मगर कांग्रेस के 'चाणक्य' के सामने अमित शाह की रणनीति फेल हो गई और बीजेपी की येदियुरप्पा सरकार ढाई दिन में ही गिर गई। 

बेसक कर्नाटक का नाटक अब अपने मुकाम को हासिल करने की राह पर है। लेकिन अभी भी सबकी दिलचस्पी इस बात को जानने में है कि आखिर वो कौन है जिसने भाजपा के विजयी रथ को रोकने में कामयाबी हासिल की और येदियुरप्पा को बहुमत परीक्षण के पहले ही इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया।

कठिन डगरः कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस के लिए सरकार चलाना बड़ी चुनौती 

डी.के. शिवकुमार : अभेद्य किले के शिल्पकार 

DK ShivaKumar
दरअसल, कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर बीजेपी को सत्ता में बने रहने से रोका है, तो उसका सारा क्रेडिट कांग्रेस के विधायक और कद्दावर नेता डी. के. शिवकुमार को जाता है। कांग्रेस के डी.के. शिवकुमार ने अपने दांव-पेंच और चाणक्य नीति से ऐसा बंदोबस्त किया कि बहुमत न होने के बाद भी आनन-फानन में सरकार बनाने वाली बीजेपी को सत्ता से हटना पड़ा और सीएम की कुर्सी कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के लिए छोड़नी पड़ी। डी. के. शिवकुमार ने ही संकटमोचक की भूमिका निभाई और विधायकों को बीजेपी के संपर्क से दूर रखने और टूटने से बचाने का जिम्मा अपने कंधे पर लिया। 

विधायकों को टूटने से बचाया

DK ShivaKumar
कांग्रेस नेता डी.के. शिवकुमार को अपनी पार्टी के विधायकों भाजपा से बचाने के जिम्मा दिया गया था, जिसे उन्होंने बखूबी अंजाम दिया। शिवकुमार ने न सिर्फ अपने विधायकों को टूटने से बचाया बल्कि उन्हें भाजपा के संपर्क में भी नहीं आने दिया। जब बीजेपी बहुमत के आंकड़े को छूने के लिए एक-एक विधायक की जुगत में थी, तब कांग्रेस के लिए संकटमोचक की भूमिका में डी. के शिवकुमार ने पार्टी की नैया को संभाले रखा और बीच मझधार में डूबने से बचाया। 

हैदराबाद से बेंगलुरु तक निभाया अपना कर्तव्य 

DK ShivaKumar
शिवकुमार की चाणक्य नीति पर कुछ समय के लिए फ्लोर टेस्ट के दिन यानी शनिवार को संशय पैदा हुआ, जब कांग्रेस के दो विधायक प्रताप गौड़ा पाटिल और आनंद सिंह लापता हो गये। मगर शिवकुमार लगातार उन लोगों के कॉन्टैक्ट में थे। यही वजह है कि शिवकुमार ने दोपहर के बाद कहा कि विधानसभा में प्रताप गौड़ा पहुंच चुके हैं और विधायक के रूप में शपथ लेंगे। साथ ही उन्होंने यह भी आश्वस्त किया कि वो कांग्रेस के लिए वोट करेंगे। शिवकुमार के चाणक्य नीति का सटिक अंदाजा उस वक्त लगा, जब विधानसभा में आनंद सिंह के साथ वह दिखे। यानी कि पूरे ढाई दिन तक के घटनाक्रम में शिवकुमार ने कांग्रेस के लिए बड़ी भूमिका निभाई। हैदराबाद के होटल से लेकर बेंगलुरु तक में वह लगातार कांग्रेस विधायकों के साथ थे और अपनी जिम्मेवारी का पूरी तरह से निर्वहन करते दिखे। 

राज्यसभा चुनाव में भी निभाई थी अहम भूमिका
डी के शिवकुमार ने इससे पहले गुजरात से राज्यसभा सीट के लिए हुए चुनाव के दौरान भी कांग्रेस विधायकों को टूटने से बचाने में अहम भूमिका निभाई थी। गुजरात राज्यसभा चुनाव के दौरान जब अहमद पटेल की जीत पर संशय के बादल मंडरा रहे थे, तब भी कांग्रेस विधायकों को बीजेपी के टूट से बचाने की जिम्मेवारी डी. के. शिवकुमार ने ही निभाई। बेंगलुरु के इग्लेटन गोल्फ रिसोर्ट में जब कांग्रेस के 44 विधायकों को रखा गया था, ताकि बीजेपी किसी तरह से उनसे संपर्क न कर पाए और विधायक टूटने से बच जाए। तब डी. के. शिवकुमार ने ही संकटमोचक की भूमिका निभाई थी और सभी विधायकों को अपनी देख-रेख में रखा था। 

बिलासराव की सरकार को भी बचाया
डीके शिवकुमार ने सिर्फ कर्नाटक या गुजरात राज्यसभा चुनाव में ही नहीं बल्कि इससे पहले भी कांग्रेस के लिए संकटमोचक की भूमिका निभा चुके हैं। इससे पहले 0002 में भी उन्होंने ऐसी ही भूमिका निभाई थी। उस वक्त शिवकुमार ने महाराष्ट्र की बिलासराव देशमुख की सरकार को बचाया था। उन दिनों में भी विधायकों को शिवकुमार के ही बेंगलुरु स्थित रिसॉर्ट ईग्लटन में रखा गया था। 

कुमारास्वामी से प्रतिद्वंदिता
डी. के. शिवकुमार कर्नाटक की राजनीति में कांग्रेस के लिए बड़ा नाम है। सिद्धारमैया की सरकार में शिवकुमार ऊर्जा मंत्री भी रह चुके हैं। वह कनकपुरा विधानसभा से विधायक हैं। कांग्रेस की ओर से जेडीएस को समर्थन देने के बाद कयास लग रहे थे कि वह बगावत का बिगुल फूंक देंगे। इसकी वजह एच.डी. कुमारस्वामी से प्रतिद्वंद्विता थी। लेकिन एक बार फिर वह कांग्रेस के लिए संकटमोचक बने। 
 


 

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