लखवार परियोजना पर 6 राज्यों में अगले सप्ताह समझौता, बनेगा 204 मीटर ऊंचा बांध
चार दशक पुरानी लखवार बहुउद्देश्यीय राष्ट्रीय परियोजना आखिरकार परवान चढ़ने जा रही है। अगले सप्ताह 28 अगस्त को परियोजना से जुड़े छह राज्यों के मुख्यमंत्री दिल्ली में इस बारे में एक समझौते पर हस्ताक्षर...
चार दशक पुरानी लखवार बहुउद्देश्यीय राष्ट्रीय परियोजना आखिरकार परवान चढ़ने जा रही है। अगले सप्ताह 28 अगस्त को परियोजना से जुड़े छह राज्यों के मुख्यमंत्री दिल्ली में इस बारे में एक समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे। लगभग चार हजार करोड़ लागत वाली इस परियोजना से तीन सौ मेगावाट बिजली उत्पादन होगा। बिजली पर पूरा अधिकार उत्तराखंड का होगा, जबकि पानी छह राज्यों- उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली व राजस्थान के बीच बांटा जाएगा। परियोजना के तहत 204 मीटर ऊंचा बांध बनाया जाएगा।
15 फरवरी को दिल्ली में अपर यमुना रिवर बोर्ड की केंद्रीय जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी की अध्यक्षता में हुई बैठक में संबंधित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बीच परियोजना पर सहमति बनी थी। सूत्रों के अनुसार, अब 28 अगस्त को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल व दिल्ली के मुख्यमंत्री अर्रंवद केजरीवाल समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे। दिक्कत राजस्थान से आ रही थी, जो नहरों के लिए अतिरिक्त पैसा मांग रहा था। इन मुद्दों को सुलझा लिया गया है। राज्यों में 1994 के समझौते के तहत पानी का बंटवारा होगा।
साल 2008 में राष्ट्रीय परियोजना घोषित हुई थी
इस परियोजना को 1976 में योजना आयोग ने मंजूरी दी थी। दस साल बाद 1986 में पर्यावरणीय मंजूरी मिलने के बाद 1987 में जेपी समूह ने उत्तर प्रदेर्श ंसचाई विभाग के पर्यवेक्षण में 204 मीटर ऊंचे बांध का निर्माण शुरू किया गया। 1992 में जब लगभग 35 फीसदी काम पूरा हो गया तो जेपी समूह पैसा न मिलने को लेकर परियोजना से अलग हो गया। बाद में 2008 में केंद्र सरकार ने इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया, जिसके तहत 90 फीसद धन केंद्र सरकार खर्च करेगी और बाकी दस फीसदी राज्य करेंगे। बिजली को इससे अलग रखा गया।
1400 करोड़ रुपये बिजली पर
परियोजना के तहत बनने वाली पूरी 300 मेगावाट बिजली उत्तराखंड को मिलेगी, जिस पर लगभग 1400 करोड़ रुपये खर्च होंगे। यह खर्च उत्तराखंड उठाएगा। बाकी पैर्सा ंसचाई व पेयजल पर खर्च होगा। दिल्ली को इससे पेयजल मिलेगा, जबकि अन्य राज्यों र्को ंसचाई के लिए पानी मिलेगा।