प्रदूषण की रोकथाम में मदद करेगा आईआईटी का नाॅलेज नेटवर्क
शहरों में प्रदूषण की रोकथा के लिए नेशनल नालेज नेटवर्क के जरिये राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की क्षमता में इजाफा किया जाएगा। नेटवर्क के समन्वयक एवं आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर सच्चिदानंद त्रिपाठी के...

शहरों में प्रदूषण की रोकथा के लिए नेशनल नालेज नेटवर्क के जरिये राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की क्षमता में इजाफा किया जाएगा। नेटवर्क के समन्वयक एवं आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर सच्चिदानंद त्रिपाठी के अनुसार नेटवर्क में सीपीसीबी, पर्यावरण मंत्रालय के अलावा तीन स्वतंत्र विशेषज्ञ भी काम करेंगे।
देश में प्रदूषण की स्थिति को लेकर क्लाईमेट ट्रेंडस द्वारा आयोजित वेबिनार को संबोधित करते हुए त्रिपाठी ने कहा कि राष्ट्रीय स्वच्छ हवा कायक्रम के क्रियान्वयन के लिए नेशनल नालेज नेटवर्क में आईआईटी कानपुर के अलावा बांबे, दिल्ली, मद्रास, रुड़की तथा गुवाहाटी भी शामिल हैं। यह नेटवर्क राज्य प्रदूषण बोर्डों के साथ-साथ अन्य हितधारकों की क्षमता में भी इजाफा करेगा। कार्यक्रम के क्रियान्वयन में एकरुपता लाना, वैज्ञानिक ज्ञान आधारित दस्तवेजीकरण, आंकड़ों का विश्लेषण एवं फील्ड स्टडी एवं गाइडेंस डाक्यूमेंट तैयार करेगा। त्रिपाठी ने कहा कि सरकार ने प्रदूषण कम करने को लेकर जो भी प्रतिबद्धताएं व्यक्त की थीं, उन पर प्रगति हो रही है। पांच साल के इस कार्यक्रम में हम अपने सही रास्ते पर हैं। इस वक्त चीजों को और जवाबदेही पूर्ण बनाया जा रहा है। वित्त आयोग के दिशानिर्देशों पर राज्य सरकारों तथा नगरीय निकायों को प्रदूषण नियंत्रण कार्यक्रमों के लिये वित्तींय अनुदान दिया गया है। वित्तीय आयोग की सिफारिशों के मुताबिक इस अनुदान को सरकारों और निकायों के कार्य प्रदर्शन से जोड़ा जाएगा। हम बहुत विस्तृत कार्य योजना बना रहे हैं। प्रदर्शन के मूल्यांगकन में कई सुनिश्चित प्रक्रियाओं को शामिल किया गया है, जिसमें ह्यआउटपुटह्ण और ह्यआउटकमह्ण पर जोर दिया गया है।
बेहतर निगरानी नेटवर्क :
उन्होंने बताया कि प्रक्रियाओं का मतलब इस बात से है कि अनुदान हासिल करने वाले नगरीय निकाय कौन से बदलाव ला रहे हैं जिनसे लक्ष्य हासिल किया जा सके। आउटपुट का मतलब इस बात से है कि क्या वे निकाय प्रदूषण निगरानी नेटवर्क को बेहतर बनाने पर काम कर रहे हैं और आउटकम का मतलब यह है कि क्या वे आने वाले वर्षों में पीएम-10 को कम करके वायु की गुणवत्ता सुधारने जा रहे हैं। यह तीनों ही चीजें इस कार्य योजना का हिस्सा होंगी। कुल वेटेड परफॉर्मेंस के हिसाब से अनुदान जारी किया जाएगा। यह एक बहुत महत्वपूर्ण कदम है। निकायों के प्रदर्शन को मापने के लिये तकनीकी संस्थाणनों, विश्वेविद्यालयों और नेशनल क्लीसन एयर प्रोग्राम में योगदान देने की क्षमता रखने वाली प्रयोगशालाओं की मदद ली जा रही है। खासकर नॉन अटेनमेंट शहरों में थर्ड पार्टी एसेसमेंट किया जा रहा है।
प्रभाव की परख जरूरी :
क्लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने इस मौके पर कहा कि प्रदूषण नियंत्रण के लिये सरकार की तरफ से विज्ञान आधारित नीतिगत काम किये जा रहे हैं, मगर उनकी प्रभावशीलता की परख होना अभी बाकी है। बेहतर होगा अगर प्रदूषण पर नियंत्रण के लिये जमीनी स्तर पर भी प्रयास किये जाएं। ऐसा लगता है कि सिविल सोसायटी पिछले कुछ वर्षों से वायु की गुणवत्ता की मांग को लेकर आवाज बुलंद कर रही है।
आंकड़ों का अभाव :
सीएसई की इंडस्ट्रियल पलूशन यूनिट के कार्यक्रम निदेशक निवित कुमार यादव ने एनसीआर में औद्योगिक वायु प्रदूषण के आकलन पर एक रिपोर्ट पेश करते हुए कहा कि सरकार प्रदूषण की समस्या् से निपटने के तमाम प्रयास कर रही है। लेकिन आधे-अधूरे आंकड़ों और व्यातपक स्त्र पर जवाबदेही तय नहीं किये जाने से वे कोशिशें उतनी सफल नहीं हो पा रही हैं। उन्होंने कहा कि खासकर उद्योग जगत के प्रदूषण संबंधी आंकड़े अपर्याप्त, अपूर्ण और खराब गुणवत्ता वाले हैं। उद्योगों के मालिक यह नहीं बताते हैं कि उनके यहां कितने घंटे काम हुआ, कितनी मात्रा में ईंधन का इस्तेमाल किया गया, कचरा कितना निकला और उनके प्रबंधन की क्या योजना है। उत्तर प्रदेश में 18000 में से 12000 ईंट-भट्टे अवैध रूप से चल रहे हैं। इनकी जवाबदेही कौन तय करेगा। अगर आप इसकी अनदेखी करते हैं तो पूरा का पूरा उद्देश्य ही विफल हो जाता है। यादव ने कहा कि प्राकृतिक गैस को अभी भी जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है। गैस लगभग कोयले के मुकाबले लगभग ढाई गुना महंगी हो गई है, मगर कुछेक उदाहरणों को छोड़ दें तो गैस अपनाने वाले उद्योगों को कोई भी प्रोत्साहन नहीं दिया गया है। देश के अनेक शहरों में अब भी पर्याप्त मात्रा में वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन नहीं हैं। वर्ष 2009 में देश में 2000 एयर मॉनिटरिंग स्टेशन लगाने की जरूरत थी लेकिन हम सिर्फ 1300 को ही लगा सके। देश में बड़ी संख्या में उद्योगों के उत्सर्जन पर नजर रखने के लिए निगरानी केन्द्रों पर स्टामफ नहीं है। उन्होने कहा कि प्रदूषण नियंत्रण के इस महत्वखपूर्ण काम में लघु उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषण पर कम ध्यान दिया जा रहा है। बहुत बड़ी संख्या में ऐसी इकाइयां हैं जो अवैध रूप से चल रही हैं। छोटे बॉयलर और भट्टियों का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिन पर निगरानी रखना लगभग नामुमकिन है।
वायु प्रदूषण का स्वास्थ्य पर असर :
क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज वेल्लोर के प्रोफेसर डॉक्टजर डीजे क्रिस्टोफर ने भी इस मौके पर एक अध्ययन साझा करते हुए कहा कि वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य के बीच संबंध अब जगजाहिर हो चुका है। दुनिया भर में 10 में से 9 लोग प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर हैं। अध्ययन से पता चला है कि वायु प्रदूषण और शारीरिक अनुभूति की क्षमता के बीच एक संबंध है। पीएम2.5 की वजह से खासतौर पर बच्चों और बुजुर्गों में महसूस करने की क्षमता घट रही है। उन्होंने बताया कि वायु प्रदूषण के प्रभावों के लिहाज से बच्चे कहीं ज्यादा खतरे में हैं। बच्चों के फेफड़े हवा में मौजूद रसायन और प्रदूषणकारी तत्वों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। वायु प्रदूषण के खराब प्रभाव दरअसल बच्चे के पैदा होने से पहले ही उस पर पड़ने लगते हैं। शोध के मुताबिक गर्भनाल के रक्त में 287 प्रदूषणकारी तत्व रसायन और अन्य नुकसानदेह चीजें पाई गई हैं। इसके अलावा बुजुर्ग महिलाओं में मस्तिष्क का आकार घटने के पीछे वायु प्रदूषण को भी एक कारण के तौर पर माना गया है।
बजट से उम्मीदें :
सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के फेलो डॉक्टर संतोष हरीश ने कहा कि आने वाले कुछ दिनों के बाद सरकार अपना वार्षिक बजट पेश करेगी। उम्मीद है कि इस साल नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम, घरेलू वायु प्रदूषण और उद्योगों से निकलने वाले प्रदूषण को एक विस्तृदत मसले के तौर लिया जाएगा।